द फॉलोअप टीम, रांची:
झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार गौतम चौधरी लिखते हैं कि दिवाली के दूसरे दिन जब शेष भारत गोवर्धन पूजा करता है, उसी दिन से आदिवासियों का सोहराय पर्व प्रारंभ हो जाता है। पांच दिनों तक चलने वाले इस पर्व का संबंध सृष्टि की उत्पत्ति से जुड़ा हुआ है। आदिवासी समाज के इस महान पर्व को लेकर झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा आदि राज्यों में बहुत पहले से तैयारी प्रारंभ हो जाती है।
जनजातीय समाज में इस पर्व का बेहद महत्व है। जनजातीय समाज इस पर्व को उत्सव की तरह मनाता है। आदिवासी समाज की संस्कृति काफी रोचक है। शांत चित्त स्वभाव के लिए जाना जाने वाला आदिवासी समुदाय मूलतः प्रकृति पूजक है। इसी सोहराय या सोहराई पर केंद्रित सांस्कृतिक आयोजन ऑड्रे हाउस में हुआ। जिसमें आदिवासी गीत-संगीत और नृत्य की गुंजलक रही।
आयोजन सांस्कृतिक कार्य निदेशालय, पर्यटन ,कला संस्कृति, खेलकूद एवं युवा कार्य विभाग ने किया था। जिसमें डाॅ. रामप्रसाद एवं डाॅ. संजय कुमार सारंगी ने सोहराय परब की महत्ता, मनाने की मूल परंपरा और वर्तमान समय में इसकी प्रासंगिकता पर विस्तृत रूप से परिचय कराया।
सांस्कृतिक आयोजन में मनपूरन नायक, विनोद कुमार महतो, किशोर नायक,सरिता कच्छप, राजेश कुमार भगत, लालू उरांव, नेपाल महतो, गुरुपदो पुराण, अमिताभ श्रीवास्तव, राजेंद्र अहीर ने सोहराई गीतों और नृत्य की पारंपरिक आकर्षक प्रस्तुतियां दीं। मंच संचालन डाॅ. सरस्वती गागराई ने किया।
सभी प्रस्तुतियों को सांस्कृतिक निदेशालय के सोशल मीडिया हैंडल्स पर ऑनलाइन प्रसारित किया गया। जिसे कला प्रेमियों ने बहुत पसंद किया।कार्यक्रम में विशेष रूप से पद्मश्री मुकुंद नायक, देवदास विश्वकर्मा, शिवशंकर महली, बंदी उरांव एवम् निदेशालय के पदाधिकारीगण उपस्थित रहे।