संजय कृष्ण, हजारीबाग:
अवलोकितेश्वर महायान संप्रदाय के सबसे लोकप्रिय बोधिसत्वों में से एक माने जाते हैं। अवलोकितेश्वर अपनी असीम करुणा में कोई भी रूप धारण कर के किसी दुखी प्राणी की सहायता के लिए आ सकते हैं। महायान बौद्ध ग्रंथ सद्धर्मपुंडरीक में अवलोकितेश्वर बोधिसत्व के माहात्म्य का काफी चमत्कारपूर्ण वर्णन मिलता है। चीनी यात्री फाहियान जब भारत आया था तब सभी जगह उसने अवलोकितेश्वर की पूजा होते देखी थी। अवलोकितेश्वरों में महत्वपूर्ण सिंहनाद की 11वीं सदी की प्रतिमा लखनऊ के संग्रहालय में सुरक्षित है। अवलोकितेश्वर को कमल का फूल पकड़े हुए दर्शाया जाता है और कथाओं में उनकी कमल-प्रकृति का वर्णन मिलता है।
हज़ारीबाग की एक और उपलब्धि
डॉ हरेंद्र प्रसाद सिन्हा कहते हैं कि अवलोकितेश्वर का कर्तव्य है दुनिया के दुखी परेशान लोगों की तरफ ध्यान देना, दिशाओं का अवलोकन करना। इसलिए इन्हें अवलोकितेश्वर कहा जाता है। यह माना जाता है कि बुद्ध के अवसान के उपरांत और भविष्यत बुद्धा मैत्रेय के आने से पूर्व तक यही बुद्ध के रूप में बौद्ध धर्म में विद्यमान रहेंगे।हाथों में कमल फूल पकड़े रहने के कारण इन्हें पद्मपाणि अवलोकितेश्वर भी कहा जाता है। ये जटा मुकुट में दिखते हैं।

अजंता की गुफाओं में इनकी छठी शताब्दी की सुंदर सी तस्वीर अंकित है। हार्वर्ड कला संग्रहालय में 5'.6" की मूर्ति रखी हुई है। गांधार कला में भी इनकी तीसरी सदी की मूर्तियां मिलती हैं।कंबोडिया से 7 फीट की मूर्ति पाई गई है जो 12वीं 13वें शताब्दी की है। चीन में इन्हें स्त्री रूप में भी बनाया गया है। नालंदा, विक्रमशिला आदि की खुदाईयों में भी अवलोकितेश्वर की कई मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। चतरा जिला के बुध नदी के तट पर एक शिव मंदिर में अवलोकितेश्वर की मूर्ति रखी हुई है जिसे शिव के रूप में पूजा जाता है। इसपर दो पंक्तियों में लंबा अभिलेख भी है। कौलेश्वरी पहाड़ी पर चढ़ने के क्रम में बीच राह में नकटी देवी के नाम से एक मूर्ति स्थापित है जिसे लोग पूजते हैं पर वस्तुतः यह मूर्ति अवलोकितेश्वर की ही है।