चल चल रे नौजवान, चल चल रे नौजवान,
जीना तेरा काम नही मरना तेरी शान,
चल चल रे नौजवान,
परबत पे चढ़े जा, बिन मौत मरे जा,
जायेगी तेरी जान मगर, होगा तेरा नाम,
चल चल रे नौजवान….
मोहम्द रफी और आशा भोसले के स्वर में यह गीत फिल्म एक फूल दो माली में गूंजा तो सन 1969 में था, लेकिन उसका प्रभाव आज भी उसी तेवर और ताब में है। वही जब 'ऐ मेरे वतन के लोगों' को 27 जनवरी 1963 की शाम राजधानी दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में लता मंगेशकर ने गाया था तो तत्कांलीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की आंखें नम हो गई थीं। तत्कालीन राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन, समूची कैबिनेट मंत्रियों के अलावा दिलीप कुमार, देव आनंद, राज कपूर, राजेंद्र कुमार, गायक मोहम्मद रफ़ी और हेमंत कुमार समेत बॉलीवुड की लगभग पूरी हस्तियां मौजूद थी। लेकिन इन गीतों के रचयिता प्रदीप ही न थे। बाद में नेहरू ने विशेष आग्रह कर तीन महीने बाद 21 मार्च 1963 को मुंबई में कवि प्रदीप से मिले और उन्हीं की आवाज़ में इस गीत को सुना।
आज उन्हीं प्रदीप की जयंती है। जिनका असली नाम रामचन्द्र नारायण द्विवेदी था। रूह से तर होकर जिनके कंठ से फूटे 1700 गीत संसार में गुंजायमान हैं। 1943 में फ़िल्म 'क़िस्मत' के लिए उनके लिखे गीत 'दूरो हटो ऐ दुनियावालों...' के कारण ब्रिटिश सरकार ने प्रदीप केख़िलाफ़ वारंट जारी कर दिया था। उन्हें कई दिनों तक नजरबंद रहना पड़ा था। फ़िल्म 'जागृति' के गीत 'आओ बच्चों तुम्हे दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की', 'दे दी हमें आज़ादी', 'हम लाएं हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के' आदि रचनाएं लिखकर प्रदीप अमर हो गए। बाकी लेखक-कवि ध्रुव गुप्त के इस लेख में जानिये:
सूरज रे जलते रहना!
ध्रुव गुप्त
हिंदी कविता और हिंदी सिनेमा में भी देशप्रेम, भाईचारे और मानवीय मूल्यों का अलख जगाने वाले गीतकारों में कवि प्रदीप उर्फ़ रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी का बहुत ख़ास मुक़ाम रहा है। वे अपने दौर में हिंदी कविता के एक अलग-से शख्सियत रहे। तत्कालीन कवि सम्मेलनों का उन्हें ज़रूरी हिस्सा माना जाता था। उनकी जनप्रियता ने सिनेमा के लोगों का ध्यान उनकी तरफ खींचा। सिनेमा में उनकी पहचान बनी 1943 की फिल्म 'किसमत' के गीत 'दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है' से। इस गीत के लिए तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने उनकी गिरफ्तारी का आदेश दिया था जिसकी वज़ह से प्रदीप को अरसे तक भूमिगत रहना पड़ा था। उसके बाद के पांच दशकों में प्रदीप ने इकहतर फिल्मों के लिए सैकड़ों गीत लिखे। उनके लिखे कुछ बेहद लोकप्रिय गीत हैं - चल चल रे नौजवान, हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के, दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल, आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की, देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, बिगुल बज रहा आज़ादी का, आज के इस इंसान को ये क्या हो गया, ऊपर गगन विशाल, चलो चलें मां सपनों के गांव में, तेरा मेला पीछे छूटा राही चल अकेला, अंधेरे में जो बैठे हैं ज़रा उनपर नज़र डालो, दूसरों का दुखड़ा दूर करने वाले, इंसान का इंसान से हो भाईचारा यही पैगाम हमारा, सूरज रे जलते रहना, मुखड़ा देख ले प्राणी जरा दर्पण में, पिंजरे के पंछी रे तेरा दरद न जाने कोय। अपने अलग मिजाज और अंदाज़ की वजह से शैलेंद्र, हसरत, शकील बदायूंनी, राजेन्द्र कृष्ण, साहिर, मजरूह, कैफ़ी आज़मी, एस एच बिहारी जैसे उस दौर के प्रमुख गीतकारों के बीच भी उनकी एक सम्माननीय जगह बनी रही। अपने लिखे दर्जनों गीत उन्होंने खुद गाए भी थे। गायिकी का उनका अंदाज़ भी सबसे जुदा था। उनके लिख़े और लता जी के गाए गैरफिल्मी गीत 'ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आंख में भर लो पानी' को राष्ट्र गीत जैसी मक़बूलियत हासिल है। सिनेमा में अप्रतिम योगदान के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1998 में उन्हें सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान 'दादासाहब फाल्के अवार्ड' से नवाज़ा था।

(लेखक सीनियर आइपीएस अधिकारी रहे हैं। त्यागपत्र देने के बाद लगातर सृजनरत हैं। कई किताबें प्रकाशित। समसामयिक विषयों पर नियमित लेखन-प्रकाशन। फिलहाल पटना में रहकर स्वतंत्र लेखन।)