द फ़ॉलोअप टीम, रांची:
अगर आपसे पूछा जाए कि भारत के सबसे महान विकेट कीपर कौन हैं तो , महेंद्र सिंह धोनी का नाम याद आएगा। लेकिन अगर शुरुआती दौर के विकेटकीपर्स का ज़िक्र आता है तो फारूक इंजीनियर, सैयद किरमानी और किरन मोरे जैसे टीम इंडिया की शान रहे खिलाड़ी याद आते हैं। फारूक से भी पहले एक ऐसा विकेटकीपर टीम इंडिया में आया, जिसने भारतीय क्रिकेट में अहम योगदान दिया। सिर्फ 20 साल की उम्र में टीम इंडिया में एंट्री करने वाले बुधी कुंदरन। बुधी ने 1960 से लेकर 1967 तक इंडिया के लिया विकेट कीपिंग की। उन्होंने टीम इंडिया के लिए 18 टेस्ट खेले और 981 रन बनाए साथ ही 30 शिकार किए। बुधी कुंदरन एक गरीब परिवार से आते थे। उनके पिता को क्रिकेट का खेल बकवास लगता था और उस दौर के बहुत सारे परिवारों की तरह ही उनके पिता भी अपने बच्चों को क्रिकेट खेलने से रोकते थे। लेकिन बुधी के शानदार खेल की वजह से जब उन्हें स्कूल टीम में चुना गया, तो उनकी मां ने चुपचाप उनके पिता के कपड़ों को बुधी के साइज़ का करके मैच के लिए ड्रेस तैयार कर दी। इसके बाद जब बुधी ने इंटर स्कूल मैच में पहली बार ये सफेद कपड़े पहने, तो ताबड़तोड़ 219 रन ठोक दिए।
डोमेस्टिक खेले बिना मिला टीम इंडिया से खेलने का मौका
बुधी ने शुरुआती क्रिकेट मुंबई में खेला था। उस वक्त नरेन्द्र तमहाने मुंबई रणजी टीम के विकेटकीपर बल्लेबाज़ होते थे, जो कि इंडिया के लिए खेल रहे थे। इस वजह से वो मुंबई टीम छोड़ रेलवे टीम के ट्रायल्स के लिए चले गए। उस वक्त लाला अमरनाथ रेलवे टीम के मेंटोर थे। साथ ही साथ लाला जी भारतीय क्रिकेट टीम के चयनकर्ता भी थे। उन्हें बुधी का खेल बहुत काफी पसंद आया। वो उनसे इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने रेलवेज़ की बजाए बुधी को सीधे भारतीय टीम में खेलने का ऑफर दे दिया। लेकिन उस वक्त बुधी के पास न तो अपने गलव्स थे और न ही पैड। उस वक्त टीम इंडिया के विकेटकीपर नरेन्द्र तमहाने ने बड़ा दिल दिखाते हुए बुधी को अपना किट बैग दे दिया।
पहले मैच पार्क में सो कर गुजारे 5 दिन
इंडियन क्रिकेट का ये वो दौर था, जब स्थानीय खिलाड़ियों को इंडियन टीम के साथ होटल में नहीं रोका जाता था। मैच से पहले वाली रात वो अपने घर पर ही थे। उनका घर बाज़ार गेट इलाके की एक चॉल में था। लेकिन भारतीय टीम के लिए पहला मौका कहिए या फिर सफोकेशन जो भी वजह हो, उन्हें मैच से पहले वाली रात नींद नहीं आ रही थी। बुधी का डेब्यू ऑस्ट्रेलिया के साथ मुंबई के ब्रेबॉर्न क्रिकेट स्टेडियम में होना था। वो तकिया और चादर लेकर बॉम्बे के विक्टोरिया पार्क में जाकर सो गए। वहां पर पूरी रात मच्छरों ने उन्हें परेशान कर दिया। सुबह हुई और वो टीम इंडिया के लिए खेलने के लिए मैदान पर पहुंच गए। उन्होंने अपने पहले मैच ही लगभग 150 ओवरों तक विकेटकीपिंग की। लेकिन किसी को भी ये अंदाज़ नहीं था कि वो मैच के पांचों दिन पार्क में सो रहे थे।
उधार के सामान ले कर खेले थे बुधी
करियर की दूसरी पारी में ही बुधी को कप्तान रामचन्द ने नंबर तीन पर प्रमोट कर दिया। लेकिन वो इआन मेकिफ की गेंद पर सिर्फ तीन रन पर ही हिट विकेट हो गए। इस मैच तक उनके पास अपना किट बैग और सामान भी नहीं था। वो नरेन तमहाने के गलव्स से कीपिंग कर रहे थे। जबकि जिस कैप को पहनकर वो मैच खेल रहे थे, वो उन्हें भर्दा हाई स्कूल के प्रिंसिपल बेहराम मुर्ज़बन ने दिया। यहां तक की जिस बैट और पैड से वो खेले, वो उन्हें अपने क्लब, फोर्ट विजय से मिला था।
ऐसा रिकॉर्ड बनाया इंग्लैंड के खिलाफ जो 50 साल तक नई टूटा
साल 1963-64 में मद्रास में इंग्लैंड के पेस अटैक के सामने कुंदरसन ने 192 रनों की शानदार पारी खेली। लगभग 50 साल तक ये स्कोर किसी भी भारतीय विकेटकीपर का सबसे बड़ा स्कोर रहा। धोनी ने चेन्नई में 224 रन बनाकर इसे तोड़ा। इस पारी में बुधी ने 31 बाउंड्री लगाई। बाउंड्री का ये रिकॉर्ड भी 38 साल बाद वीवीएस लक्ष्मण ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ तोड़ी। बुधी इस सीरीज़ में लगातार शानदार खेले। दिल्ली टेस्ट में उन्होंने शतक जमाया। जबकि इसके बाद कानपुर में उन्होंने 55 रनों की पारी के साथ सीरीज़ का अंत किया। इस शानदार सीरीज़ के साथ वो क्रिकेट इतिहास के पहले ऐसे विकेटकीपर बने, जिन्होंने एक सीरीज़ में 500 रन बनाए।
हमेशा के लिए स्कॉटलैंड चले गए बुधी
साल 1967 में टीम से छुट्टी के बाद बुधी की फिर कभी टीम में एंट्री नहीं हुई। टीम से छुट्टी के बाद उन्होंने टीम ऑफिशियल्स और बोर्ड पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि खिलाड़ियों को ऐसा महसूस करवाया जाता है जैसे कि वो अधिकारियों की मेहरबानी से टीम में खेल रहे हैं। उनके इस कमेंट की वजह से बोर्ड के साथ उनकी तकरार बनी रही। इसके बाद वो ग्लास्गो शिफ्ट हो गए और साल 1970 में उन्होंने स्कॉटलैंड में स्कॉलिश लीग ड्रम्पेलियर के साथ कॉन्ट्रेक्ट किया। 80 के दशक में वो स्कॉटलैंड क्रिकेट टीम के लिए बेन्सन एंड हेजिस कप में भी खेले। इसके बाद वो लगातार स्कॉटलैंड में ड्रम्पेलियर के लिए साल 1995 तक यानी 56 साल की उम्र तक क्रिकेट खेलते रहे, जो कि स्कॉटलैंड क्रिकेट के इतिहास में सबसे अधिक समय तक रहा। साल 2006 में लंग्स कैंसर की वजह से बुधी का ग्लासगो में ही देहांत हो गया।
(इंटर्न तरुण कुमार की कॉपी))