द फॉलोअप टीम, गोड्डा:
सड़क किनारे आम बेचते जिस आदमी को आप देख रहे हैं वो प्रवीण हैं। प्रवीण पेशेवर फल विक्रेता नहीं हैं। परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने के लिए प्रवीण को आम बेचना पड़ रहा है। तो प्रवीण फिर हैं कौन। दरअसल, प्रवीण एक शिक्षक हैं। उनका काम बच्चों को पढ़ाना है ना कि सडक किनारे आम बेचना। तो, ऐसा क्या हुआ कि प्रवीण को आम बेचने पर मजबूर होना पड़ा।
कोचिंग संस्थानों पर महामारी की मार
गौरतलब है कि कोरोना महामारी की सबसे ज्यादा मार शैक्षणिक संस्थानों पर पड़ी है। बीते 1 साल से तमाम स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, कोचिंग और प्राइवेट ट्यूशन बंद हैं। जो सरकारी शिक्षक हैं उनको तो वेतन मिल रहा है। स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई भी हो जाती है लेकिन आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा है कोचिंग संस्थानों को। प्रवीण भी 2 साल पहले तक एक कोचिंग संस्थान चलाते थे।
कोचिंग संचालक को बेचना पड़ा है आम
गोड्डा जिला के बंका घाट के रहने वाले प्रवीण कुमार दरअसल एक कोचिंग संचालक हैं। उनकी कोचिंग में 200 बच्चे पढ़ते थे। कोचिंग के साथ-साथ प्रवीण हॉस्टल भी चलाते थे। हॉस्टल में तकरीबन 17 बच्चे रहते थे। बाकी बच्चों को कोचिंग तक लाने के लिए वाहन का भी इंतजाम था। 17 मार्च 2020 को लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई। तमाम शैक्षणिक संस्थान भी बंद हो गये। प्रवीण का कोचिंग सेंटर भी इसमें शामिल था। समय के साथ बाकी तमाम प्रतिष्ठान तो खुले लेकिन कोचिंग संस्थान नहीं। 1 साल तक तो प्रवीण कोचिंग खुलने का इंतजार करते रहे।
प्रवीण को कोचिंग संस्थान खुलने का इंतजार
कोचिंग संस्थान अभी तक नहीं खुले हैं। आर्थिक स्थिति खराब होती जा रही थी। मजबूरन 2 वक्त की रोटी का जुगाड़ करने के लिए प्रवीण को सड़कों पर आम बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा। प्रवीण कहते हैं कि आम बेचकर होने वाली कमाई से केवल रोटी का इंतजाम हो जाता है। उन्हें अब भी इस बात का इंतजार है कि हालात सामान्य होंगे। कोचिंग संस्थान खुलेंगे और वे दोबारा बच्चों को पढ़ा पायेंगे।