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जब हेल्थ सेक्टर की उपलब्धियां गिना रही थी हेमंत सरकार तभी इलाज के अभाव में गर्भवती महिला ने दम तोड़ दिया

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द फॉलोअप टीम, गिरिडीह: 
राज्य की हेमंत सरकार ने स्वास्थ्य सुविधा के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया है। कोरोना महामारी से अच्छी तरह निपटी है। राज्य के सभी सदर अस्पतालों में डायलिसिस की सुविधा देने की तैयारी की जा रही है। गर्भवती महिलाओं का सुरक्षित प्रसव सुनिश्चित करने के साथ ही उनके पोषण का खयाल रखा जा रहा है। गिरिडीह में मेडिकल कॉलेज के लिए जमीन की पहचान कर ली गयी है। 
झारखंड विधानसभा में राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू अपने अभिभाषण में जिस समय राज्य सरकार की ये उपलब्धियां गिना रही थीं, उसी समय राजधानी रांची से 181 किमी दूर गिरिडीह में एक गर्भवती महिला ने इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया। 

गर्भवती महिला को खाट में ले गये हॉस्पिटल
गर्भवती महिला की मौत इसलिए हो गयी क्योंकि उसे वक्त पर हॉस्पिटल नहीं पहुंचाया जा सका। महिला वक्त पर हॉस्पिटल नहीं पहुंच सकी क्योंकि उसे एंबुलेंस या ममता वाहन नहीं मिला। परिजन खाट में लिटाकर उसे हॉस्पिटल ले जाने की कोशिश कर रहे थे। गर्भवती महिला ने हॉस्पिटल पहुंचने से पहले ही बच्चे को जन्म दिया। मां और नवजात बच्चा दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं। ये पूरा मामला गिरिडीह जिले के तिसरी प्रखंड के सुदूरवर्ती गांव लक्ष्मीबथान का है। 
जिला या प्रखंड मुख्यालय तक जाने के लिए इस गांव में पक्की सड़क नहीं है। कोई भी बड़ा वाहन यहां तक नहीं पहुंच सकता। शुक्रवार को यहां रहने वाले सुनील टुडू की पत्नी सुरजी मरांडी को प्रसव पीड़ा हुई। एंबुलेंस को फोन किया लेकिन खराब सड़क की वजह से एंबुलेंस नहीं पहुंचा। 



इलाज के अभाव में प्रसुता और नवजात की मौत
मजबूरी में सुरजी को उसके परिजनों ने खाट में लिटाया। खटिया को बांस के सहारे कंधे पर टांगा और पांच किलोमीटर का लंबा सफर तय करने निकले। उन्हें ऐसे ही सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचना था। इससे पहले कि वो अस्पताल पहुंचते सुरजी ने बच्चे को रास्ते में ही जन्म दे दिया। वक्त पर सही इलाज नहीं मिलने की वजह नवजात ने दम तोड़ दिया। दूसरी तरफ सुरजी की हालत खराब होती जा रही थी। परिजन भागते हुए हॉस्पिटल पहुंचे लेकिन हॉस्पिटल की गेट पर ही सुरजी की मौत हो गयी। परिजनों का आरोप है कि उस वक्त अस्पताल में कोई चिकित्सक मौजूद नहीं था। नर्स ही सुरजी को लेकर लेबर रूम तक गयी। प्रभारी चिकित्सा प्रभारी ने सफाई में कहा कि वो जिला मुख्यालय में विभागीय बैठक में शामिल होने गये थे। 
इलाज के अभाव में मां और बच्चे की मौत हुई लेकिन परिजनों की दुश्वारियां यहीं खत्म नहीं हुई। परिजनों ने महिला के शव को गांव तक ले जाने के लिए वाहन मांगा लेकिन उन्हें ये भी नहीं मिल सका। मजबूरन, परिजन खटिया में ही शव को लेकर गांव की तरफ चल पड़े। आखिरकार एक स्थानीय नेता की नजर इस पर पड़ी। उन्होंने एक ट्रैक्टर का इंतजाम करके शव को गांव तक पहुंचाया। 



चुनावी घोषणाओं की एक्सपायरी डेट होती है!
सुरजी की मौत से परिजन टूट गये हैं। उनका रो-रोकर बुरा हाल है। वे व्यवस्था की बदहाली को कोस रहे हैं। उनका कहना है कि यदि समय पर इलाज मिल जाता तो घर में मातम की जगह खुशियां होती। लेकिन, व्यवस्था निष्ठुर हो चुकी है। सरकार असंवेदनशील हो चुकी है। बड़े-बड़े दावों से जिंदगियां नहीं बचाई जा सकती। इसके लिए धरातल पर ईमानदार प्रयासों की जरूरत होती है। 
जनप्रतिनिधि और मंत्री कभी अपनी महंगी गाड़ियों का शीशा सरका कर बाहर झाकेंगे तो ही पता चल सकेगा कि आम इंसान के जिंदगी का भी कोई मोल होता है। लेकिन, सुरजी की मौत बताती है कि चुनावी घोषणाओं की भी एक एक्सपायरी डेट होती है जिसका लास्ट डेट वोटिंग का आखिरी दिन होता है।