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नरेंद्र मोदी को बड़ा भाई मानने वाली बलूची लड़की करीमा की संदिग्ध मौत के कारणों का एक सप्ताह बाद भी कोई सुराग नहीं

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द फॉलोअप टीम, दिल्ली:

अंतिम सांस तक हिंदुस्तानी माटी के सोंधेपन के साथ जीते रहे खान अब्दुल गफ़्फ़ार खान उसी बलूचिस्तान से थे, जो आज भले पाकिस्ताीन के अधीन एक राज्य है, लेकिन बलूचियों ने आज तक खुद को पूरी तरह पाकिस्तानी नहीं माना। वे बरसों से बलूच राष्ट्र के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हम बलूच की चर्चा इसलिए कर रहे कि वहां हो रहे मानवाधिकार के हनन के विरुद्ध एक लड़की आवाज बुलंद कर रही थी। उसकी लाश पिछले दिनों कनाडा में मिली। आज तक उसके कारण का पता नहीं चला है। आशंका अधिक है कि उसे मार दिया गया होगा। उस लड़की का नाम करीमा मेहराब उर्फ करीमा बलोच था। वो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना बड़ा भाई मानती थी।

मोदी के नाम वीडियो जारी कर की थी गुजारिश

बलूचिस्तान की आजादी की जंग में छात्र जीवन से जुड़ गई करीमा का कुछ साल पहले एक वीडियो बहुत वायरल हुआ था। जिसमें उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बलूचियों की लड़ाई में साथ देने का आग्रह किया था। उनसे संबोधित वक्तव्य में कहा था, हम सब बलूचिस्तान की बहनें आपको भाई मानती हैं। बलूचिस्तान में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आप आवाज उठाएंगे, हमें आशा है। यह वीडियो करीमा ने रक्षा बंधन के मौके पर जारी किया था।

2015 में बीएसओ की पहली महिला नेता बनीं
करीमा बलोच छात्र संगठन बीएसओ की केंद्रीय समिति में 2006 में शामिल हुईं। वो बलूचिस्तानन से अचानक लापता होते जा रहे युवाओं के परिजनों की दर्दीली आवाज बनकर उभरी थीं। पाकिस्तान की सेना पर आंदोलन को बलपूर्वक दबाने और बीएसओ के कार्यकर्ताओं के लापता करने का आरोप लगता रहा है। बीएसओ को 2013 में प्रतिबंध कर दिया गया। दो साल बाद 2015 में करीमा को इसका नेता चुन लिया गया।

2017 में पाकिस्तान छोड़ना पड़ा, कनाडा में निर्वासित

"मुझे पता है कि मेरे सहयोगी के साथ जो हुआ वो मेरे साथ भी हो सकता है। मैं अपने एक्टिविज़म से भाग नहीं रही, उसे फैला रही हूं. मैंने अपनी ज़िंदगी बचाने के लिए शरण नहीं ली है मैं यहां पर दुनिया को बताने आयी हूं कि बलूचिस्तान में क्या हो रहा है।" जब बरीबीसी ने उन्हें 100  प्रभावशाली महिलाओं की सूची में शामिल किया था, तब उक्त बातें करीमा ने कहीं थी। उनका कहना बेजा न था। करीमा को 2017 में पाकिस्तान छोड़ना पड़ा, तब से कनाडा में निर्वासित जिंदगी गुजार रही थीं।