logo

सामाजिक बदलाव के लिए वैज्ञानिक सोच ज़रूरी, सीखिये न्यूटन से

14434news.jpg

डॉ. अबरार मुल्तानी, भोपाल:

न्यूटन को दुनिया का टर्निंग प्वाइंट कहा जाता है। वह एक ऐसा निशान है मानव सभ्यता का, जहां से दुनिया पूरी तरह बदल गई। न्यूटन ने दुनिया को बदला। उन्होंने कई सारी खोजें की, जिसने आधुनिक विज्ञान की नींव रखी और उस नींव के पत्थर जस के तस हैं आज तक। न्यूटन के पहले के दो महान वैज्ञानिकों ब्रूनो और गैलीलियो को चर्च ने दिल दहलाने वाली सज़ा दी... जिसे नज़ीर बना दिया गया लोगों के लिए। उन्होंने बाईबल के कथनों को नकारा और कहा कि तुम्हारा ईश्वर इतना छोटा नहीं है, जितना छोटा तुम समझते हो... उसने इस दुनिया के अलावा भी कई और दुनिया बनाई हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि ब्रूनो को ज़िंदा जला दिया गया। गैलीलियो ने बताया कि ज़मीन सूरज का चक्कर लगाती है ना कि सूरज ज़मीन के। नतीजे में गैलीलियो को मिली जेल।

इसे भी पढ़ें

द क्रुड्स' परिवार की तरह बदल रही दुनिया के साथ बढ़े क़दम तो जानें

अब न्यूटन का समय आता है। न्यूटन ने सीधे लोगों की भावनाओं पर वार नहीं किया। उन्होंने बाइबिल का अध्ययन किया, यूनानी दार्शनिकों को पढ़ा, उसके बाद अपने सिद्धांतों को लोगों के सामने रखा। अपने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को भी उन्होंने सेब से जोड़ा जो कि बाइबिल में दिए गए गार्डन ऑफ ईडन के सेब से मेल खाता है। उन्होंने अपने वैज्ञानिक सिद्धांतों के साथ साथ धार्मिक महत्व के कोट्स भी दिए, जिनमें से मुझे भी कई कोट्स बहुत प्रिय हैं। विज्ञान और धर्म को साथ साथ रखा और दुनिया को अपने सबके सब सिद्धांतों का मुरीद बना दिया। अगर न्यूटन भावनाओं को भड़काकर अपने सिद्धांत देते तो शायद तीन में से एक लॉ ऑफ मोशन आता और वे भी जेल में चले जाते। लोगों की भावनाओं को समझकर आप काला जादू करके भी उनके आदर्श या पूजनीय तक बन सकते हैं और भावनाओं की अवहेलना करके आप परम सत्य बता देने के बावजूद नकार दिए जाएंगे, जेल में डाल दिए जाएंगे, मार दिए जाएंगे। क्रांतिकारियों और युगप्रवर्तकों को ध्यान रखना चाहिए कि दुनिया को बदला जा सकता है लोगों की भावनाओं से छेड़छाड़ किए बगैर। महान न्यूटन का एक नियम याद रखें कि हर क्रिया की बराबर विपरीत प्रतिक्रिया होती है। लेकिन प्रिय मित्रो, भावनाओं के मामले में यह प्रतिक्रिया कई गुना ज़्यादा होती है।

अब बात न्याय की महिमा की
न्याय और अन्याय दोनों ही लोगों के भावी व्यवहार को प्रभावित करते हैं। लेकिन, इन दोनों का प्रभाव लोगों के व्यवहार पर एकदम विपरीत होगा। समाज का निर्माण मूलतः हमारे द्वारा किये गए न्याय और अन्याय पर ही निर्भर है। एक सभ्य समाज न्याय आधारित होता है और एक असभ्य समाज के लिए अन्याय ही अन्याय की ज़रूरत होती है। दार्शनिक जॉन रॉल्स ने न्याय पूर्ण समाज बनाने के लिए एक कल्पना की थी। उन्होंने कल्पना की- 'एक सम्मानीय काउंसिल का गठन किया जाए। जिसका काम भविष्य के समाज के लिए कानून बनाना हो। वे इस बात के लिए बाध्य हो कि हर छोटे से छोटे विवरण पर पूरी तरह विचार करेंगे। और जैसे ही वे अंतिम सहमति पर पहुचेंगे, हर एक सदस्य जैसे ही कानूनों पर दस्तखत कर देगा, वे सब मर जाएंगे। किंतु वे तुरंत ही उस समाज में फिर जी उठेंगे जिसके लिए उन्होंने कानून बनाए थे। खास बात यह होगी कि उन्हें नहीं मालूम होगा कि समाज में वे क्या होंगे। स्त्री, पुरुष, बच्चा, शासक या फिर एक आमजन। ऐसे लोगों द्वारा बनाया गया कानून एक न्यायपूर्ण समाज का निर्माण करेगा।'

इसे भी पढ़ सकते हैं

साइक्‍लॉजिस्‍ट की इस बात में है दम- सोच बदलिये, ज़िंदगी बदल जाएगी

हमारे शरीर में मौजूद बैक्टीरिया महज़ दुश्मन नहीं कई दोस्त भी

दुनिया के कई लोगों का मानना है कि न्यायपूर्ण समाज की स्थापना ईश्वर के दिए गए कानून या उसकी किताब के अनुसार चलने पर ही संभव है। धर्म ही लोगों के बीच न्याय कर सकता है। लेकिन यह सब संभावनाएं तभी हैं जब मनुष्यों का समाज न्याय करना चाहे। अगर वह अन्याय पर ही उतारू है तो फिर अच्छे से अच्छा कानून या फिर दिव्य पुस्तकों में लिखें कानून भी न्याय नहीं कर सकते। न्याय के साथ समाज में शांति आती है और अन्याय के साथ अशांति। जो समाज चाहते हैं कि उनमें शांति बनी रहे उन्हें न्याय का दामन थाम लेना चाहिए और अन्याय से तोबा कर लेनी चाहिए। असभ्य या बर्बर समाज न्याय को कुचलकर अन्याय के दम पर आगे बढ़ना चाहते हैं। लोगों पर शासन करने के लिए उन्हें संगठित करने के साथ साथ अनुशासित भी करना होता है। यदि संगठित लोग अनुशासित नहीं किए गए तो फिर वे भस्मासुर बन जाते हैं और अपने ही समाज को भस्म कर देते हैं। लोगों को अनुशासित न्याय की अवधारणा बनाती है। अगर संगठित लोगों के बीच यह धारणा बन जाए कि, 'न्याय होने का कोई भरोसा नहीं है तो वे स्वयं ही न्यायाधीश बन बैठते हैं। फिर शुरू हो जाता है बरबरियत का एक डरावना और विभत्स दौर। अनंत  उदाहरण इतिहास की पोथियों में भरे पड़े हैं।

 

(डॉ. अबरार मुल्तानी भोपाल में रहते हैं। आप आयुर्वेद और देशी स्वास्‍थ्‍य -चिकित्सा पद्धति के विशेषज्ञ हैं। मनोवैैैैैैज्ञानिक भी हैं। क्‍यों अलग है स्‍त्री-पुरुष का प्रेम, मन के लिए अमृत की बूंदें, मन के रहस्य, 5 पिल्स समेत उनकी दर्जनों किताबें प्रकाशित हैं। आपके वीडियो भी बहुत देखे जाते हैं।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।