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विवेक का स्‍वामी-13: स्‍वामी विवेकानंद ने ताड़ लिया था राज्य व्यवस्थाओं में पूंजीवाद का ज़हर 

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कनक तिवारी, रायपुर:

उन्नीसवीं सदी के आखिरी वर्षों में यूरोप लालच, लूट, शोषण, मुनाफा, हिंसा, उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के रक्त पिपासु पशु की तरह उन्माद से भर गया था। फिर भी दुनिया के कुछ चुनिंदा विचारक, सर्वहारा और श्रमिक वर्ग के प्रतिनिधि, समाजसेवक तथा सामाजिक प्रजातांत्रिक प्रगतिशीलता के अन्य तत्व बेहतर संसार बनाने की कोशिश में थे। जद्दोजहद के ऐसे मुश्किल माहौल में विवेकानन्द धूमकेतु बनकर प्रेरणा के आसमान से धरती पर आए। उन्हें एक दशक से भी कम समय में करोड़ों प्रशंसकों और अनुयायियों का महानायक केवल भारत ही नहीं बल्कि यूरोप और अमेरिका में भी बनाया गया। विवेकानन्द ने ज्ञान के कई इलाकों में दूरगामी प्रभाव डाला है। दार्शनिक, धार्मिक, मानवीय और रहस्यात्मक किस्म की तालीम की दुनिया में विवेकानन्द के सामाजिक, राजनीतिक विचार, भारत निर्माण की उनकी योजना और उनकी क्रान्तिधर्मिता बीसवीं सदी के भारत और विश्‍व के लिए नींव के पत्थर सिद्ध हुए। 

 


 
कम्युनिज़्म में कथित शूद्र राज्य को ‘प्रोलितेरियत की तानाशाही‘ के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह नारा विवेकानन्द की भविष्यवाणी के लगभग दो दशक बाद ईजाद हुआ। यह हैरतअंगेज है कि संसार में कई कम्युनिस्ट राज्यों की स्थापना के बावजूद इक्कीसवीं सदी की दुनिया रूस और चीन सहित यूरो अमेरिकी पूंजीवाद द्वारा तहस नहस की जा रही है। इससे विवेकानन्द का अधूरा स्वप्न खंडित हो रहा है। पश्चिमी देशों में उन्होंने भ्रमण किया था। वे ही देश उनकी भविष्यवाणी झुठलाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय खलनायक चौकड़ी बने हैं। इन देशों की राज्य व्यवस्थाओं में पूंजीवाद का ज़हर विवेकानंद ने ताड़ लिया था। वह विश्वविमुखता को लेकर कब तक इन देशों को शक्ति सम्पन्न बनाए रखेगा? यह भी भविष्य में जांच का विषय होगा। 

 

 

विवेकानन्द का कहना था कि शूद्र राज्य के सुनहरे भविष्य से उनका आशय निजी व्यक्ति या जातिवंश के नाम से नहीं है। वह हर समाज में शूद्र कुल के नेतृत्व की अगुआई स्थापित होने से है। उन्होंने कहा था कि प्रक्रिया पहले चरण में यूरोप में शुरू हो चुकी है। उसका अगला पड़ाव एशिया में होगा। उनकी शिष्या सिस्टर क्रिस्टीन के हवाले से रोम्यां रोलां ने लिखा है कि ऐसी भविष्यवाणी विवेकानन्द ने 1896 में कर दी थी। 1917 की रूस की राज्य क्रांति या 1949 में चीन की सफल जनक्रांति के वर्षों पहले इसी क्रम में रूस और चीन में भारतीय शब्दावली में ‘शूद्र‘ अर्थात ‘सर्वहारा‘ की हुकूमत की भविष्यवाणी करने में विवेकानन्द ने ज्योतिषशास्त्र या अन्य चमत्कारों का सहारा नहीं लिया था। यह संन्यासी सामाजिक विज्ञान का अध्येता था। उनका दृष्टिफलक वैज्ञानिक और मौलिक था। स्वयं मार्क्सवादी तक 1896 में इस बात का दावा नहीं कर सकते थे कि रूस और चीन की क्रांतियों की क्या संभावित तिथियां और परिणाम हो सकती हैं। 

 

 

विवेकानन्द पर आरोप भी लगा कि वे अपने गुरु श्रीरामकृष्णदेव की शिक्षाओं से भटक गए लगते हैं। रामकृष्ण मिशन की स्थापना को लेकर उन्हें कुछ गुरु भाइयों की मुखालफतभी सहनी पड़ी। विवेकानन्द इस तरह के कटाक्षों से उत्तेजित हो उठे थे। उन्होंने यहां तक कह दिया कि तुम लोग ही रामकृष्ण के सच्चे शिष्य हो। जैसा गुरु वैसा चेला। एक तरह के आवेश लेकिन कालजयी भाषा में यह विवेकानन्द की आध्यात्मिक कद काठी का कोई साधु ही कह सकता थाः ‘तुम लोगों को लगता है कि तुम श्रीरामकृष्ण को मुझसे बेहतर समझते हो। तुम सोचते हो ज्ञान सूखा है जो मरुस्थल के सूखे रास्ते पर चलकर और हृदय की कोमल भावनाओं को नेस्तनाबूद करके मिलता है। तुम्हारी भक्ति मूर्खतापूर्ण मानसिक प्रलाप है जो नपुंसक बनाती है। तुम श्रीरामकृष्ण को उस तरह प्रचारित करना चाहते हो जैसा तुम समझते हो। लेकिन वह बहुत कम है। तुम्हारे रामकृष्ण की कौन फिक्र करता है। तुम्हारी भक्ति या मुक्ति की किसे चिंता है। किसे परवाह है कि धर्मशास्त्र क्या कहते हैं। मैं तो हंसते हुए हज़ार बार नर्क जाना पसंद करूंगा बषर्ते मैं अपने देशवासियों का उद्धार कर सकूं। उन्हें गहरे अंधकार से निकाल सकूं। उन्हें अपने पैरों पर खड़ा कर सकूं और उन्हें कर्मयोगी बनाकर प्रेरित कर सकूं। मैं श्रीरामकृष्ण या किसी का अनुयायी नहीं हूं। मैं केवल उसका अनुयायी हूं जो मेरी कार्य योजना को साकार कर सके। मैं श्रीरामकृष्ण या किसी का दास नहीं हूं लेकिन उसका हूं जो अपनी मुक्ति की परवाह किए बिना दूसरों की सेवा और सहायता कर सकता है।‘ विवेकानन्द का संन्यासी कुल गठित करने का विचार मौलिक नहीं था। उन्होंने इतिहास से सबक लेकर बुद्ध, गुरु गोविन्द सिंह और यूरोप की ईसाई परंपराओं से यह सब सीखा था।

 

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(स्‍वामी विवेकानंद के अहम जानकार गांधीवादी लेखक कनक तिवारी रायपुर में रहते हैं।  छत्‍तीसगढ़ के महाधिवक्‍ता भी रहे। कई किताबें प्रकाशित। संप्रति स्‍वतंत्र लेखन।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।