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कर्बल कथा-4: नवेली दुल्‍हन के सामने ईसाई नौजवान इमाम हुसैन के लिए हो गया शहीद

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हैदर रिज़वी, मुंबई:

एक नौजवान ईसाई जॉन मुहम्मद साहब को बहुत पवित्र शख्सियत मानता था। वह शादी करके अपनी माँ के साथ अपनी बीवी को विदा करके ले जा रहा था। उसको जैसे ही पता चला कि मुहम्मद साहब के नवासे को घेर लिया गया है। फ़ौरन ही हुसैन की सेना में शामिल हो गया। जॉन की ख़ास बात यह थी कि बहुत ही अच्छा घुड़सवार और घोड़ों के करतब का माहिर भी था।आशूर के दिन जब जंग शुरू हुई उसने काफी देर तक यजीदी सेना को छकाया, लेकिन जल्द ही दूर खड़ी देखती माँ और नई नवेली दुल्हन के सामने उसका सर बदन से जुदा कर दिया गया।
इसी तरह इमाम हुसैन के बचपन के दोस्त हबीब इब्ने मज़ाहिर भी खबर पाते ही कर्बला पहुंचे। हबीब जिस वक़्त पहुंचे हुसैन के खेमों में पानी ख़त्म हो चुका था। बच्चे प्यासे तड़प रहे थे। हबीब बाहर ही थे कि किसी ने कहा, हबीब आपको हुसैन की बहन जैनब ने सलाम कहलवाया है और मदद को आने का शुक्रिया कहा है। बताते हैं कि हबीब वहीँ अपनी पगड़ी ज़मीन पर रख कर रोने लगे कि अब यह  वक़्त आगया है कि अली की बेटी हम गुलामों को सलाम भिजवाये। हबीब के साथ  उनका जवान बेटा भी था जब वोह शहीद हुआ, तो हुसैन ने हबीब को जाने से रोक दिया और खुद उसकी मय्यत को उठा कर लाये। उसके बाद हबीब भी उसी दिन जंग  में वीरगति को प्राप्त हुए। 7 मुहर्रम को हुसैनी काफिले के पास एक बूँद पानी न रहा। दुधमुंहे बच्चे तक प्यास से तड़प रहे थे। इतिहासकारों ने उस समय कर्बला के रेगिस्तान की जो गर्मी बतायी है वहां किसी व्यक्ति का एक दिन भी पानी के बिना जीवित रहना नामुमकिन था।


यहाँ यह बताना आवश्यक है कि करबला के युद्ध का  जो भी लिखित इतिहास काॅपी किया गया वह हमीद इब्ने मुस्लिम द्वारा कलमबद्ध किया हुआ है। हमीद इब्ने मुस्लिम यज़ीद द्वारा करबला का आँखों देखा हाल लिखने के लिये नियुक्त किया गया था। मतलब इस इतिहास में यह तो गुंजाइश है कि हुसैन और उनके साथियों की वीरता और उन पर हुए ज़ुल्म को घटा कर लिखा गया हो, लेकिन यह सम्भावना नहीं कि बढ़ा चढ़ा कर लिख दिया गया हो। जैसा कि पहले बताया कि 7मुहररम को खेमों का सारा पानी ख़त्म हो गया और आठ मुहररम को हुसैन ने भारत जाने की पेशकश की, किन्तु यजीदी सेना ने यह प्रस्ताव  ठुकरा दिया और बैत न करने की स्थिति में युद्ध की घोषणा कर दी। हुसैन ने यजीदी सेना से 9 मुहर्रम रात तक की मुहलत माँगी ताकि वो अपने खुदा की एबादत  कर सकें। 9 मुहर्रम की रात  हुसैन ने अपने सभी साथियों को बुलाया और कहा कि इस युद्ध में हम सभी की मौत  निश्चित है, तुम लोग मेरी मदद को आये तुम्हारा यह परोपकार मैंने स्वीक्रित  किया। अब मैं चिरागों को बुझा देता हूँ ताकि तुम लोग वापस लौट जाओ और  रोशनी की वजह से तुम्हें किसी तरह की शर्मिन्दगी न हो। जब चराग दुबारा  जलाये गये सभी साथी वहीं मौजूद थे।

 

 

उसी रात हुसैन की सेना की ओर यजीदी सेना की ओर से तीन लोग आते दिखाई दिये। हुसैन और उनके साथियों ने बढ़ कर देखा तो यह वही यजीदी सेना का कमांडर हुर था, जिसने हुसैन के कूफा की ओर जा रहे काफ़िले को रोक कर करबला की ओर आने को विवश कर दिया था। हुर के साथ उसका बेटा था, और उसका भाई और हुर की आँखों पर पट्टी बंधी हुई थी। जैसे ही उसके बेटे ने  बताया कि हुसैन हैं , वह हुसैन के क़दमों पर गिर गया और माफ़ी माँगी। हुर ने कहा, मौला मुझमें हिम्मत नहीं थी कि आपसे आँख मिला सकूँ , इसलिये आँखों को बन्द कर रखा है। हुसैन ने उसकी आँखें खोली और गले से लगा कर कहा हुर पश्चाताप ही क्षमा है। हुर ने कहा मौला एक विनती और है कल की जंग में मैं और मेरा बेटा आपसे पहले लड़ने जायगा, हम यह नहीं बर्दाश्त कर सकते की हम ज़िन्दा रहें और आपको जंग लड़नी पड़े । 9 मुहररम की रात बीती और 10 मुहररम 61 हिजरी का सूर्य अपने गर्भ में इस्लामी इतिहास का सबसे काला दिन लेकर रेगिस्तान की तपती ज़मीन पर चमका। हुसैनी खेमों में सुबह से पानी के लिये बच्चों की चीख़ें गूँज रही थीं। औरतें अपने बच्चों भाइयों और शौहरों को होने वाले युद्ध के लिये तैयार कर रही थीं और ताकीद कर रही थीं कि देखो हुसैन कोई  सेना का सरदार नहीं है, मुहम्मद का नवासा है, कहीं तुमसे पहले कोई तीर हुसैन को न लग जाय। फ़ैसला हुआ जो़ह्रर (दोपहर) की नमाज़ के बाद युद्ध शुरू होगा ......

क्रमश:

पहला भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: मुहर्रम: आख़िर क्‍या थी कर्बला की कहानी, जिसे भुलाना सदियों बाद भी मुश्‍किल

दूसरा भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: कर्बल कथा-2: माविया की मृत्यु के बाद बेटा यज़ीद खुद खलीफा बन बैठा

तीसरा भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: कर्बल कथा-3: दो लाख के लश्कर में सुकूं ऐसा था तारी, एक सुई भी गिर जाए तो आवाज़ करेगी 

 

(लेखक का लालन-पालन उत्‍तर प्रदेश के ओबरा  में हुआ। कर्बल कथा टाइटल से एक किताब प्रकाशित। संप्रति मुंबई में रहकर टीवी और फिल्‍मों के लिए लेखन)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।