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कर्बल कथा-2: माविया की मृत्यु के बाद बेटा यज़ीद खुद खलीफा बन बैठा

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हैदर रिज़वी, मुंबई:

कूफ़ा शहर जो इराकी सत्ता का केंद्र था, जब यह खबर पहुंची कि माविया की मृत्यु के पश्चात उसका बेटा यज़ीद खुद खलीफा बन बैठा है ( जो कि इमाम हुसैन के बड़े भाई इमाम हसन के द्वारा माविया पर निषेध किया गया था, की उसकी खिलाफ़त उसके बेटे को मिले) कूफावासियों ने विद्रोह कर दिया। पूरे शहर में अराजकता फैल गई। आधे यजीद को खलीफा मान रहे थे और आधे नहीं। आखिर में सुलेमान (कूफा के एक बुजर्ग) ने इमाम हुसैन को मदीने में एक पत्र भेजा कि कूफ़ा के हालात बहुत ख़राब हो चुके हैं और अधिकांश जनता यज़ीद को अपना खलीफ़ा मानने से इनकार कर रही, तो आप जल्द से जल्द कूफा आयें हमसे हमारी बैत (राजनिष्ठा) ले लें। इस पत्र पर कूफ़ा के सभी आदरणीय लोगों की मुहर थी। ख़त मिलते ही इमाम हुसैन ने अपने चचेरे भाई मुस्लिम इब्ने अक़ील को कूफा रवाना कर दिया, ताकि वहां के हालात मालूम चलें। हज़रत मुस्लिम का कूफा में ज़ोरदार स्वागत हुआ। पहले दिन में ही 18000 कूफ़ियों ने हज़रत मुस्लिम के हाथ पर बैत(राजनिष्ठा) की और मुस्लिम से आग्रह किया कि अब जल्द से जल्द मुहम्मद साहब के नवासे और वारिस इमाम हुसैन को बुलवा लिया जाए। मुस्लिम ने उसी रात इमाम हुसैन को ख़त लिखा कि खबर सही है कि कूफ़ा के हालात बहुत खराब हैं। जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। आप जल्द आकर यहाँ की बाग़ डोर संभालें।

इमाम हुसैन की मदीने से कर्बला की यात्रा 

ख़त रवाना होते ही कूफे का माहौल बदल गया और सभी कूफे की नागरिक घरों में बंद हो गए तथा मुस्लिम तथा उनके बेटों को मारकर लाश पूरे शहर में घुमाई गयी। चूंकि जनाबे मुस्लिम ने इमाम हुसैन को कूफा आने का पत्र पहले ही लिख दिया था सो वह मदीने से अपने परिवार और कुछ दोस्तों के साथ एक छोटा सा काफिला लेकर कूफ़ा रवाना हो गए। इस काफिले में इमाम हुसैन थे उनके छोटे भाई जो अली की जीवित छवि माने जाने वाले अब्बास थे, इमाम हसन जिन्हें ज़हर देकर मारा जा चुका था। उनका 16 साल का बेटा कासिम था। हुसैन के बेटे अली अकबर (18 वर्ष) अली असगर (5माह) बेटी सकीना (6 वर्ष) अली की बेटी ज़ैनब तथा उनके दो पुत्र औन तथा मुहम्मद (12 वर्ष) मुख्य थे।

काफिले की मुख्य सूची इसलिए लिख रहा हूँ क्‍योंकि कर्बला के युद्ध के बाद मुसलमानों ने एक अफवाह यह भी उडाई थी कि हुसैन कूफा युद्ध करने आ रहे थे तो सूची देख कर कोई भी समझ सकता है कि युद्ध के मैदान में कोई भी समझदार इंसान औरतों और दुधमुंहे बच्चों को लेकर नहीं जाता है। हुसैन पहले मक्का गए हज करने, किन्तु क़ातिल हाजियों के भेस में मक्का पहुँच चुके थे और हुसैन नहीं चाहते थे काबा के अन्दर खून बहे, तो उन्होंने हज बीच में छोड़ दिया और मक्का से बाहर चले आये।

कर्बला के रास्ते में एक मुख्य घटना यह हुई कि रास्ते में रेगिस्तान की तपती धुप में हुसैन का काफिला एक दूसरे काफिले से टकराया जो रेगिस्तान में भटक गया था और प्यास से तड़प रहा था। इस काफ़िले का पानी भी ख़त्म हो चुका था। हुसैन ने अब्बास से कहा कि इस काफिले के लोगों और जानवरों को अपना पानी पिला दो. पानी पीने के बाद उस काफिले के सरदार हूर ने हुसैन के घोड़े की लगाम पकड़ ली कि उसे यज़ीद के हुक्म से भेजा गया है।हुसैन का काफिला कूफा नहीं जा सकता है, यदि आगे जाना है तो उन्हें युद्ध करना होगा पहले। हुसैन के घोड़े की लगाम हर द्वारा पकडे जाते देख ताक़त में अली के हूबहू हमशक्ल माने जाने वाले बेटे अब्बास को क्रोध आया और तलवारें खिंच गयीं। किन्तु हुसैन ने सबको रोक लिया और और अपने काफिले का रुख कूफा की तरफ से बदल कर एक अनजान रेगिस्तान की और बढ़ गए।

क्रमश:

 

पहला भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: मुहर्रम: आख़िर क्‍या थी कर्बला की कहानी, जिसे भुलाना सदियों बाद भी मुश्‍किल

 

 

(लेखक का लालन-पालन उत्‍तर प्रदेश के ओबरा  में हुआ। कर्बल कथा टाइटल से एक किताब प्रकाशित। संप्रति मुंबई में रहकर टीवी और फिल्‍मों के लिए लेखन)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।