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बहस आबादी-1 : जनसंख्या वरदान है या अभिशाप, दुविधा से निकलना ही होगा

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डॉ. राजू पाण्डेय, रायगढ़:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, उन्‍होंने 6 फरवरी 2013 को दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा था- “मेरा देश दुनिया का सबसे नौजवान देश है। हमारी 65 प्रतिशत जनसंख्या 35 साल से नीचे है। यूरोप बूढ़ा हो चुका है, चीन बूढ़ा हो चुका है। भारत विश्व में सबसे नौजवान देश है, इतने बड़े अवसर का हम उपयोग नहीं कर पा रहे हैं, यह सबसे बड़ी चुनौती है।" प्रधानमंत्री बनने के बाद नवंबर 2014 में अपनी ऑस्ट्रेलिया यात्रा के दौरान उन्होंने कहा-"मुझे विश्वास है 35 साल से कम उम्र के 80 करोड़ भारतीय युवाओं के हुनर और ऊर्जा से हर भारतीय के भविष्य को बेहतर बनाया जा सकता है।" हाल ही में 16 जनवरी 2021 को कोविड टीकाकरण अभियान का शुभारंभ करते हुए  प्रधानमंत्री ने कहा कि जिस बड़ी आबादी को लोग भारत की सबसे बड़ी कमजोरी बता रहे थे वही सबसे बड़ी ताकत बन गयी। पुनः 17 फरवरी 2021 को नैसकॉम के टेक्नोलॉजी एवं लीडरशिप फोरम को संबोधित करते हुए मोदी जी ने कहा- भारत की इतनी बड़ी आबादी आपकी बहुत बड़ी ताकत है।बीते महीनों में हमने देखा है कि कैसे भारत के लोगों में टेक सॉल्यूशन्स के लिए बेसब्री बढ़ी है।" प्रधानमंत्री के इन सारे संबोधनों में हमारी जनसंख्या और विशेषकर युवा जनसंख्या को हमारी शक्ति बताया गया है। अपवाद स्वरूप स्वतन्त्रता दिवस 2019 का उद्बोधन है जिसमें उन्होंने कहा- "चुनौतियों को स्वीकार करने का वक्त आ चुका है। उसमें एक विषय है जनसंख्या वृद्धि। हमारे यहाँ बेतहाशा जनसंख्या विस्फोट हो रहा है। यह हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए नए संकट पैदा कर रहा है। हमारे देश में एक जागरूक वर्ग है जो इसे भली भांति समझता है।…….ये सभी सम्‍मान के अधिकारी हैं, ये आदर के अधिकारी हैं। छोटा परिवार रखकर भी वह देश भक्ति को ही प्रकट करते हैं।…...समाज के बाकी वर्ग, जो अभी भी इससे बाहर हैं, उनको जोड़कर जनसंख्‍या विस्‍फोट- इसकी हमें चिंता करनी ही होगी।"

 

उत्तरप्रदेश में जनसंख्या नीति क्या केंद्र की सहमति से बनी
क्या इन उद्धरणों को पढ़ने के बाद हमें यह मान लेना चाहिए कि जनसंख्या के महत्वपूर्ण और जटिल प्रश्न पर प्रधानमंत्री दुविधा में हैं। अभी तक वे यह तय नहीं कर पाए हैं कि हमारी विशाल जनसंख्या वरदान है या अभिशाप। यदि इन परस्पर विरोधी कथनों में प्रधानमंत्री को कोई सामंजस्य दिखाई देता है तो उन्हें इस बारे में विस्तार से बताना चाहिए। क्या यह प्रधानमंत्री के असमंजस का ही परिणाम है कि  वर्तमान परिस्थितियों के मद्देनजर जनता के साथ संवाद करके राष्ट्रीय स्तर पर जनसंख्या स्थिरीकरण की कोई व्यापक, दबाव रहित, सर्वस्वीकृत नीति तैयार नहीं की गई है? 2020 में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर केंद्र सरकार ने कहा कि सन 2000 की जनसंख्या नीति के अनुसार  2018 में टोटल फर्टिलिटी रेट 3.2 फीसदी से घटकर 2.2 फीसदी रह गई है। इस कमी के कारण देश में दो बच्चों की नीति नहीं आ सकती है। क्या केंद्र सरकार का अभिमत अब बदल गया है? क्या देश में जनसंख्या वृद्धि के पैटर्न में कोई ऐसा असाधारण बदलाव आया है जिससे केंद्र सरकार ही परिचित है? कहीं ऐसा तो नहीं है कि आदरणीय प्रधानमंत्री जी जानते हैं कि जनसंख्या स्थिरीकरण का लक्ष्य जल्द ही प्राप्त हो जाएगा किंतु चुनावी राजनीति की मजबूरियां उन्हें इस मुद्दे को जीवित रखने पर मजबूर कर रही हैं? उत्तरप्रदेश सरकार की जनसंख्या नीति क्या केंद्र की सहमति से बनाई गई है और क्या यह पूरे देश की नीति बन सकती है? देश के अनेक राज्यों यथा- राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, ओडिशा आदि में अधिक संतानें होने पर विभिन्न स्तर के स्थानीय चुनावों में भाग लेने पर प्रतिबंध, सरकारी नौकरी की पात्रता गंवा देना तथा सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित कर दिया जाना जैसे प्रावधान पिछले अनेक वर्षों से हैं। किंतु केवल उत्तरप्रदेश की जनसंख्या नीति को ही चर्चा में बनाए रखने का मकसद क्या है।

 

हिन्दुओं को अपनी जनसंख्या को बढ़ाने की जरूरत: गिरिराज सिंह

यदि हम पिछले कुछ वर्षों में सत्ताधारी दल और उसकी विचारधारा का समर्थन करने वाले नेताओं-बुद्धिजीवियों-धर्मगुरुओं के बयानों का अध्ययन करें तो हमें जनसंख्या विषयक उनके दृष्टिकोण का ज्ञान होगा। फरवरी 2015 में साध्वी प्राची ने अपने पूर्व के विवादित बयान जिसमें उन्होंने प्रत्येक हिन्दू महिला को चार बच्चे पैदा करने की सीख दी थी पर स्पष्टीकरण दिया। उन्होंने किसी समुदाय विशेष का नामोल्लेख किए बिना ही कहा कि जो लोग जो 35-40 पिल्ले पैदा करते हैं, फिर लव जेहाद फैलाते हैं। उन पर कोई बात नहीं करता है। किंतु मेरे बयान के बाद इतना बवाल मच गया। अगस्त 2016 में आगरा में प्राध्यापकों के प्रश्नोत्तर सत्र के दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत ने जनसंख्या के बारे में एक बयान दिया था जिस पर काफी विवाद हुआ। बाद में संघ ने ट्विटर पर अपनी सफाई में कहा- एक सवाल पूछा गया था कि भारत में हिंदुओं की ग्रोथ 2.1 प्रतिशत है और मुसलमानों की 5.3 प्रतिशत। अगर जनसंख्या की यही रफ़्तार जारी रही तो अगले 50 साल में क्या ये देश इस्लामिक देश नहीं बन जाएगा? भागवत जी ने इसका जवाब दिया, भारत में कौन सा क़ानून हिंदुओं को अधिक बच्चे पैदा करने से रोकता है?" अक्टूबर 2016 में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा हिंदुओं की जनसंख्या में लगातार कमी आ रही है। हमें  जनसंख्या बढ़ाने के लिए कोई भी कानून रोक नहीं सकता। देश के आठ राज्यों में हिन्दुओं की जनसंख्या निरन्तर घटती जा रही है। हिन्दुओं को अपनी जनसंख्या को बढ़ाने की जरूरत है। 

 

प्रत्येक हिंदू दंपत्ति को 10-10 बच्चे पैदा करना चाहिए: शंकराचार्य वासुदेवानंद
दिसंबर 2016 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के समर्थन से नागपुर में आयोजित तीन दिवसीय धर्म संस्कृति महाकुंभ में ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती ने कहा कि देश में हिंदुओं की जनसंख्या तेजी से घट रही है। ऐसे में प्रत्येक हिंदू दंपत्ति को 10-10 बच्चे पैदा करना चाहिए। जनवरी 2017 में साक्षी महाराज ने मेरठ में एक संत सम्मेलन में कहा था- देश में बढ़ती जनसंख्या के कारण समस्याएं खड़ी हो रही हैं। लेकिन इसके लिए हिन्दू जिम्मेदार नहीं हैं, इसके लिए वे लोग जिम्मेदार हैं जो चार बीवियों और चालीस बच्चों की बात करते हैं। जनवरी 2015 में भी उन्होंने ऐसे ही विचार व्यक्त किए थे तब उन्होंने कहा था कि चार बीवियों और 40 बच्चों का चलन भारत में चलने वाला नहीं है। अब समय आ गया है कि हिंदू धर्म को बचाने के लिए हर हिंदू महिला कम से कम चार बच्चे पैदा करे। जनवरी 2018 में अलवर राजस्थान से भाजपा के विधायक एम एल सिंघल ने कहा- हिन्दू केवल एक या दो बच्चों को जन्म दे रहे हैं और इस बात के लिए चिंतित हैं कि उनका लालन पालन कैसे करें जबकि मुसलमान देश पर कब्जा करने के ध्येय से ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा कर रहे हैं। उत्तरप्रदेश के भाजपा विधायक श्री सुरेंद्र सिंह ने जुलाई 2018 में "हम दो हमारे पांच" का नारा दिया। उन्होंने हिंदुओं को जनसंख्या नियंत्रण के खिलाफ सतर्क करते हुए कहा कि जनसंख्या नियंत्रण में यदि संतुलन नहीं रहा तो वह दिन दूर नहीं जब जनसंख्या के आधार पर भारत में हिन्दू अल्पसंख्यक हो जाएंगे।

 

असम में हिंदुओं की  जनसंख्‍या बढ़ोत्‍तरी दर 10 प्रतिशत: हेमंत बिस्वा
भोपाल से भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने दिसंबर 2020 में सीहोर में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि यह कानून उन लोगों पर लागू होना चाहिए जो राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल रहते हैं। राष्ट्र की रक्षा क्षत्रिय करते हैं, उन्हें अधिक से अधिक संख्या में बच्चे पैदा करना चाहिए। साध्वी ने क्षत्रियों से अधिक संतानें पैदा करने की अपील की। फरवरी 2021 में बिहार के बिस्फी विधानसभा क्षेत्र के विधायक हरिभूषण ठाकुर ने कहा कि बिहार में प्रजनन दर में कमी अवश्य आई है किंतु ऐसा केवल हिन्दू परिवारों में हुआ है। कुछ लोग अपनी जनसंख्या बढ़ा कर देश पर कब्जा कर उसे इस्लामिक राष्ट्र में तब्दील करना चाहते हैं। जून 2021 में असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा ने कहा हमारे प्रदेश में मुस्लिम आबादी 29 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है जबकि हिंदुओं के लिए यह दर 10 प्रतिशत है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि मुस्लिम समुदाय जनसंख्या नियंत्रण के उपायों को अपनाएं। जुलाई 2021 में मध्यप्रदेश के मंदसौर के भाजपा सांसद सुधीर गुप्ता ने कहा कि देश की आबादी को असंतुलित करने में आमिर खान जैसे लोगों का हाथ है। जुलाई 2021 में ही करणी सेना प्रमुख सूरज पाल अमू ने हरियाणा के पटौदी शहर में एक महापंचायत में युवाओं से अपील करते हुए कहा कि वे जनसंख्या नियंत्रण क़ानून की चिंता न करें और मुसलमान समुदाय की जनसंख्या के जवाब में 20 बच्चे पैदा करें।

क्या सरकार इन बयानों से सहमत है?

इसी जुलाई 2021 में बीजेपी नेता ज्ञानदेव आहूजा ने जनसंख्या नियंत्रण बिल पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि एक समुदाय विशेष ने जनसंख्या बढ़ाने का निश्चय कर लिया है। हमें दिल्ली और बंगलोर के दंगे जैसी घटनाओं को यदि रोकना है तो हमें जनसंख्या पर नियंत्रण करना ही होगा। 16 जुलाई 2021 को विहिप महासचिव मिलिंद परांडे ने मीडिया से चर्चा करते हुए कहा ‘जब हम जनसंख्या नियंत्रण के विषय में चर्चा करते हैं, तो देश में हिंदू समाज का प्रभुत्व बरकरार रहना चाहिए। हिंदू आबादी के प्रभुत्व के कारण देश में राजनीति, धर्मनिरपेक्षता और सहिष्णुता के समस्त सिद्धांतों का पालन किया जा रहा है।’ क्या सरकार इन बयानों से सहमत है? यदि नहीं तो क्या वह इनकी निंदा करेगी और बयान देने वालों को पार्टी से बाहर किया जाएगा? यह बयान दरअसल कट्टरपंथी शक्तियों की रणनीति का एक भाग हैं।

क्रमशः

(लेखक छायावाद के प्रवर्तक पंडित मुकुटधर पांडेय के पौत्र हैं। स्कूली जीवन से ही लेखन की ओर झुकाव रहा। समाज, राजनीति और साहित्य-संस्कृति इनके प्रिय विषय हैं। पत्र-पत्रिकाओं और डिजिटल मंच पर नियमित लेखन। रायगढ़ छत्तीसगढ़ में डाक विभाग में अधिकारी रहे। स्वे्च्छा से सेवानिवृत्त।)

 

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। सहमति के विवेक के साथ असहमति के साहस का भी हम सम्मान करते हैं।