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तेजस्वी के सूत्रधार संजय यादव ने संभाली थी चुनावी कमान, जानिए कैसे की थी एनडीए की घेराबंदी

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द फॉलोअप टीम, पटना :
किसी से लड़ने के पूर्व ठोस रणनीति बनायी जाती है। चुनावी लड़ाई भी बगैर रणनीति के नहीं लड़ी जा सकती। रणनीतिकार मैदान में नहीं उतरता, वो अपने योद्धा को भेजता है। कुछ ऐसा ही काम राजद के चुनावी रणनीतिकार संजय यादव ने किया। यही कारण था कि बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान एनडीए और महागठबंधन के बीच में जबरदस्त टक्कर देखने को मिली। इस चुनावी टक्कर में तेजस्वी यादव ने एनडीए के दिग्गजों को पानी पिला दिया। ये सब तेजस्वी के अपने बूते संभव नहीं था। चुनाव के बाद तेजस्वी के खास रणनीतिकार संजय यादव को बड़ा श्रेय दिया जा रहा है। हमें संजय यादव और तेजस्वी की मुलाकात से लेकर अबतक की पूरी कहानी को जानना बेहद जरूरी हो गया है। 

संजय यादव खास सूत्रधार बन गए
बता दें कि संजय यादव और तेजस्वी की मुलाकात तब हुई, जब अक्टूबर 2013 में 23 साल के तेजस्वी यादव ने महसूस किया कि क्रिकेट में उनका करियर खत्म होनेवाला है, तो उन्होंने राजनीति में दूसरी पारी की शुरुआत करने का फैसला लिया। तेजस्वी यादव के इस फैसले में संजय यादव ने तेजस्वी पर भरपूर विश्वास जताया। तब तेजस्वी ने संजय से हाथ मिलाया था, जो उनसे सिर्फ 5 साल बड़े थे। उस दौरान तेजस्वी ने संजय यादव का परिचय देते हुए कहा था कि ये मेरे बडे भाई हैं, अब हम साथ-साथ हैं। देखते ही देखते 36 वर्षीय संजय यादव जल्द ही लालू परिवार के खास सूत्रधार बन गए।

मामूली परिवार से हैं संजय यादव
तेजस्वी यादव के सबसे भरोसेमंद हैं संजय यादव मूल रूप से हरियाणा के रहनेवाले हैं। उन्होंने हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के नांगल सिरोही एक गांव में हिंदी माध्यम स्कूल में पढ़ाई की। अपने तेज दिमाग और राजनीतिक सूझबूझ के जरिए संजय यादव ने लालू यादव का विश्वास बहुत कम समय में हासिल कर लिया। पिछली बार जब संजय यादव से रांची जेल में मिले थे, तो गठबंधन के तौर-तरीकों और उम्मीदवार चयन पर खूब चर्चा की थी। एक सूबेदार पिता का इकलौते बेटे संजय यादव मामूली परिवार से आते हैं।

ईबीसी व एससी-एसटी के आरक्षण पर जोर
एमबीए ग्रेजुएट संजय यादव ने 2013 तक गुरुग्राम में एक आईटी फर्म में टीम मैनेजर के तौर पर काम किया। तेजस्वी से मुलाकात के बाद उसने नौकरी छोड़कर राजद के साथ जुड़ गए। राजद से जुड़ने के बाद इन्होंने ही सूचना प्रौद्योगिकी और सोशल मीडिया की दुनिया में पार्टी का परिचय कराया। राजद के संगठन में ईबीसी और एससी-एसटी के लिए आरक्षण लागू करने पर जोर दिया। इसके बाद राजद संगठनात्मक पदों में आरक्षण लागू करनेवाली देश की पहली राजनीतिक पार्टी बनी।

'लालू जी को समझाना आसान नहीं था'
संजय ने एक बार कहा था उनकी उम्र से अधिक चुनाव लड़ने वाले दिग्गज नेता (लालू प्रसाद यादव) को समझाना बहुत मुश्किल है। इसके लिए आपको ठोस तैयारी करनी पड़ती है। अगर आप सामाजिक संयोजनों पर उचित डेटा नहीं रखते हैं, तो क्या समझा पाइएगा। हालांकि, लालूजी समझदार हैं। उन्होंने हमसे (तेजस्वी और मुझे) कहा कि अब तुम लोग जानो, लेकिन जीत जाएंगे ना? संजय यादव ने एक लाइन में कहा था, निश्चिंत रहिए। 

तेजस्वी के राजनीतिक सलाहकार बने संजय
तेजस्वी यादव की महागठबंधन में मौजूदा स्थिति, पिछले कुछ सालों में सभी प्रमुख मुद्दों पर पार्टी का रुख तय करने और डिजिटल प्लेटफार्मों पर एक मजबूत उपस्थिति सुनिश्चित करने के पीछे संजय यादव ही हैं। वह फिलहाल तेजस्वी के राजनीतिक सलाहकार के रूप में सेवारत हैं। डिप्टी सीएम के रूप में उनके 18 महीने के सफल कार्यकाल के दौरान संजय यादव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जनता से माफी मांगने और पोस्टर पर अपने मुख्यमंत्री माता-पिता की छवियों के बिना जाने का सुविचारित फैसला तेजस्वी यादव का था, लेकिन इसके बीज संजय ने बोए थे।

संजय ने राजद के चुनावी समर को संभाला
इस बार विधानसभा चुनाव में संजय यादव ने प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के हिसाब से छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान केंद्रित करते हुए राजद की चुनावी रणनीति बनाई। कोरोना काल में जब विपक्ष राजद  पर निशाना साध रहा था, उस समय संजय यादव तेजस्वी के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव की रणनीति तैयार कर रहे थे। ऐसे में महागठबंधन बिहार चुनाव में जो सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, तो निश्चित तौर पर संजय यादव की रणनीतियों को भी इसका श्रेय जाएगा।

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रिसर्च वर्क व वोटिंग ट्रेंड्स पर नजरें टिकाएं रखीं 
तेजस्वी के हर इलाके में जनसभा करने की योजना और पैदल घूमने की रणनीति भी संजय यादव ने बनाई थी। उन्होंने एक ही दिन में 19 रैलियों का रिकॉर्ड बनाया। औसतन प्रतिदिन 12.5 रैलियों को संबोधित किया। ये सब संजय द्वारा ही सुनिश्चित किया गया था। हालांकि, पूरे चुनाव प्रचार में उन्होंने खुद को कार्यालय तक सीमित रखा। कहीं भी तेजस्वी के साथ नहीं दिखे, लेकिन इस दौरान रिसर्च वर्क, वोटिंग ट्रेंड्स पर नजर बनाए रखीं। यही कारण है कि तेजस्वी ने एनडीए के दिग्गजों से लोहा ले पाए। अब उन्हें बिहार का प्रशांत किशोर बताया जा रहा है।