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मस्जिदों पर दावा करने वाली याचिकाएं स्वीकार नहीं करेगा सुप्रीम कोर्ट, ये बताई वजह

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द फॉलोअप डेस्क 

पूजास्थल कानून-1991 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने  केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडियाकी अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि जब तक हम इस मामले पर सुनवाई कर रहे हैं, तब तक देश में धार्मिक स्थलों को लेकर कोई नया मामला दाखिल नहीं किया जाएगा। केंद्र सरकार हलफनामा दाखिल कर अपना पक्ष रखे।
कोर्ट में सुनवाई के दौरान एक वरिष्ठ वकील ने कहा कि जिन जगहों लेकर केस फाइल की गई है, वहां का सर्वेक्षण को रोक दिया जाए। सीजेआई ने कहा कि मथुरा और काशी दो मामलों की मुझे जानकारी है.. और कितने मामले हैं? वरिष्ठ वकील ने जवाब में कहा- ऐसी 10 जगहें हैं।
स्पेशल बेंच कर रही है मामले की सुनवाई 
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की स्पेशल बेंच मामले की सुनवाई कर रही है। एक्ट के खिलाफ CPI-M, इंडियन मुस्लिम लीग, NCP शरद पवार, राजद एमपी मनोज कुमार झा समेत 6 पार्टियों ने याचिका लगाई है। हिन्दू पक्ष की ओर से भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी, कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर, एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने याचिका लगाई है। इसमें तर्क दिया गया है कि यह कानून हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख समुदाय के खिलाफ है। इस कानून के चलते वे अपने ही पूजा स्थलों और तीर्थ स्थलों को अपने अधिकार में नहीं ले पाते हैं।
याचिका खारिज करने की मांग 
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इन याचिकाओं के खिलाफ याचिका दायर की है। जमीयत का तर्क है कि एक्ट के खिलाफ याचिकाओं पर विचार करने से पूरे देश में मस्जिदों के खिलाफ मुकदमों की बाढ़ आ जाएगी। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और ज्ञानवापी मस्जिद का रखरखाव करने वाली अंजुमन इंतजामिया मस्जिद मैनेजमेंट कमेटी ने भी इन याचिकाओं को खारिज करने की मांग की है।

क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991

यह अधिनियम धार्मिक स्थलों की स्थिति को 15 अगस्त 1947 के आधार पर संरक्षित करता है और उसमें बदलाव करने पर रोक लगाता है। हालांकि, इसमें अयोध्या विवाद को बाहर रखा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि विवाद से जुड़े फैसले का हवाला देते हुए कहा कि कई मुद्दे उठाए गए हैं, जिनकी विस्तृत जांच की जाएगी।
 

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