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योजनाओं के नाम पर मुफ्त में देने के लिए राज्य सरकारों के पास पैसा है, लेकिन जजों के लिए नहीं- सुप्रीम कोर्ट

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द फॉलोअप डेस्क
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकारों पर तंज कसा है। बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय ने रेवड़ियां बांटे जाने पर कटाक्ष करते हुए कहा कि राज्यों के पास मुफ्त रेवड़ियां बांटने के लिए तो पैसे हैं, लेकिन जजों को भुगतान करने के लिए नहीं हैं। इस संबंध में अदालत की ओर से महाराष्ट्र की लाडकी बहना और दिल्ली में राजनैतिक दलों द्वारा नकद राशि बांटने की घोषणाओं का भी जिक्र किया गया। 

जजों के पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ से जुड़ी है याचिका
देश की सर्वोच्च न्यायालय ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्यों के पास उन्हें देने के लिए पर्याप्त पैसा है, जो कोई काम नहीं करते। लेकिन बात जब जिला अदालत के जजों को वेतन और पेंशन देने की होती है, तो ये राज्य वित्तीय कमी की बात करते हैं। जानकारी हो कि ये टिप्पणियां न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति अगस्टीन जार्ज मसीह की पीठ द्वारा की गई। यह टिप्पणी जिला अदालतों के जजों को पेंशन और सेवानिवृति लाभ दिए जाने से संबंधित ऑल इंडिया जजेस एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई के दौरान की गईं।

शीर्ष अदालत ने पहले भी जतायी है चिंता
बताया जा रहा है कि एसोसिएशन ने 2015 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी, जिसमें जिला अदालतों को पेंशन और सेवानिवृत लाभ से लंबित सेकेंड नेशनल ज्यूडिशयल कमीशन की सिफारिशें लागू करने का मुद्दा शामिल है। इसमें पूर्व सुनवाई के दौरान भी कोर्ट ने जिला अदालतों के जजों की कम पेंशन को लेकर चिंता जताई थी। जानकारी हो कि इस मामले में वरिष्ठ वकील के.परमेश्वर न्यायमित्र हैं।सरकार पर बढ़ रही पेंशन की जिम्मेदारी 
इस मामले में मंगलवार को सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता के.परमेश्वर ने जजों को ठीकठाक भुगतान करने की बात कही। परमेश्वर ने कहा कि अगर हम ज्यादा विविधतापूर्ण न्यायपालिका चाहते हैं, अगर हम चाहते हैं कि नए टैलेंट आएं, तो हमें अपने जजों का ध्यान रखना होगा। उन्हें बेहतर भुगतान करना होगा। वहीं, इस पर केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल आर. वेंकटरमणी पेश हुए। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ सालों से सरकार पर पेंशन की जिम्मेदारी बढ़ती जा रही है। ऐसे में पेंशन स्केल तय करते समय वित्तीय चिंताओं का ध्यान रखा जाना चाहिए।

पीठ ने कसा सरकार और दलों पर तंज
मामले को लेकर पीठ की अगुवाई कर रहे जस्टिस गवई ने रेवड़ियां बांटने पर टिप्पणी की। जस्टिस गवई ने कहा कि राज्यों के पास उन लोगों को बांटने के लिए पर्याप्त पैसा है, जो कुछ काम नहीं करते। जब हम वित्तीय चिंताओं की बात करें, तो हमें यह भी देखना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि जब चुनाव आते हैं तब आप लाडकी बहना और अन्य नई योजनाओं की घोषणा करते हैं। इसमें आप एक तय राशि देते हैं। उन्होंने आगे कहा कि दिल्ली में भी कुछ एक दलों ने ऐसी घोषणा की है। कुछ एक ने कहा है कि सत्ता में आने पर वो 2,500 रुपये देंगे। वहीं, कोर्ट की टिप्पणी पर अटार्नी जनरल ने कहा कि मुफ्त उपहारों की संस्कृति को पथ भ्रमित होना माना जा सकता है।

अटार्नी जनरल ने किया सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध
सुनवाई के दौरान जस्टिस गवई ने कहा कि वित्तीय बोझ की व्यावहारिक चिंताओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए। इसी बीच अटार्नी जनरल द्वारा कोर्ट से सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध किया गया। उन्होंने कहा कि सरकार इस मुद्दे पर कोई अधिसूचना जारी कर सकती है। लेकिन पीठ ने सुनवाई स्थगित करने से मना करते हुए कहा कि यह मामला सालों से लंबित है। ऐसे में अगर सुनवाई पूरी होने के बाद कोई अधिसूचना जारी होती है, तो वह कोर्ट को सूचित कर सकते हैं। वहीं, इस मामले में बुधवार को भी सुनवाई होगी।

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