रांची
झारखंड की जानी-मानी साहित्यकार, लेखिका और आदिवासी समाज की सशक्त प्रतिनिधि रोज केरकेट्टा के निधन पर पूरे राज्य में शोक की लहर है। उनके निधन को झारखंड के सांस्कृतिक और बौद्धिक परिदृश्य के लिए एक अपूर्णीय क्षति बताया गया है। झारखंड सरकार के पूर्व मंत्री और कांग्रेस के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बंधु तिर्की ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए कहा कि रोज केरकेट्टा ने न केवल साहित्य के क्षेत्र में अपना अहम स्थान बनाया, बल्कि आदिवासी समाज के अधिकारों की लड़ाई में भी एक मजबूत आवाज बनकर उभरीं।
अपने शोक-संदेश में बंधु तिर्की ने कहा, "रोज केरकेट्टा ने झारखंड की संस्कृति, भाषा और परंपरा को बचाने और बढ़ाने में जो योगदान दिया है, उसे भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने प्रेमचंद की कहानियों का खड़िया भाषा में अनुवाद कर यह दिखाया कि भाषाई समरसता और सांस्कृतिक समृद्धि उनके लिए कितनी महत्वपूर्ण थी। यह उनके साहित्यिक समर्पण का जीवंत प्रमाण है।" उन्होंने आगे कहा कि रोज केरकेट्टा का पूरा जीवन समाज के वंचित तबकों, विशेषकर आदिवासियों की आवाज़ को बुलंद करने में समर्पित रहा। "उनकी लेखनी सिर्फ कागज़ पर नहीं, लोगों के दिलों पर असर करती थी। उनके विचार, उनकी प्रतिबद्धता और उनका संघर्ष आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।" बंधु तिर्की ने दिवंगत लेखिका के परिजनों, सहयोगियों और प्रशंसकों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त की और कहा कि झारखंड ने एक ऐसी बेटी को खोया है, जिसकी जगह कोई नहीं ले सकता।