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कोरोना दुनिया में वापस आ रहा है। साथ ही आ रहा खतरा इसकी चौथी लहर का। इसी बीच कोरोना के हल्के लक्षणों से जूझ रहे मरीजों को पैक्सलोविड टैबलेट दी जा रही है। इस दवा को अमेरिकी फार्मा कंपनी फाइजर ने बनाया है। इस दवा को भारत के कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने भी मंजूरी दे दी है। इससे जुड़े अब कुछ मामलों में ये दावा किया जा रहा है कि इसे खाकर जो मरीज ठीक हो रहे है उनमें कोरोना संक्रमण लौट रहा है।
डबल डोज से बचने की सलाह
जानकारी के अनुसार पैक्सलोविड टैबलेट को नियम से 5 दिन खाना होता है, लेकिन इसके बाद भी लोगों में कोरोना का लक्षण दिख रहा है। इसकी वजह से कई सवाल उठ रहे है। ऐसे में अमेरिकी एजेंसी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) कहती है- मरीजों को टैबलेट के डबल कोर्स से बचना चाहिए। आपको बता दें कि जिन लोगों ने दवा का एक डोज ले लिया है उसमें इसके लौटने पर गंभीर खतरा होता है। ऐसे में डॉक्टर से सलाह लेना बेहद जरूरी हो जाता है।
10 दिन के भीतर लौट रहे थे लक्षण
बोस्टन के वीए हेल्थ सिस्टम के डॉ. माइकल चारनेस ने बताया कि पैक्सलोविड काफी इफेक्टिव ड्रग है, लेकिन शायद यह ओमिक्रॉन वैरिएंट के सामने कमजोर पड़ जाता है। यही वजह है कि कुछ मरीजों में कोरोना के लक्षण दोबारा आने लगते हैं। पैक्सलोविड टैबलेट के ट्रायल तब किया गया था जब दुनिया डेल्टा वैरिएंट से जूझ रही थी। वहीं दूसरी तरफ FDA और फाइजर दोनों को कहना है कि रिसर्च के दौरान भी कुछ लोगों में संक्रमण से ठीक होने के 10 दिनों के भीतर कोरोना के लक्षण लौट कर आए थे।
नई स्ट्रेन्स के पनपने को खतरा
इधर एक तरफ जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के एंडी पेकोस्ज के मुताबिक हो सकता है कि पैक्सलोविड टैबलेट वायरस के लक्षण दबाने में उतनी कारगर नहीं है और उन्हें इस बात का डर है कि इसकी वजह से मरीज के शरीर में कोरोना की नई स्ट्रेन्स पनप सकती हैं, जो बाद में जा कर ड्रग को मात दे दे और भविष्य में खतरनाक बन जाए।
फाइजर ने बताया के उसने अपने ट्रायल के समय पैक्सलोविड को ऐसे लोगों पर टेस्ट किया जिन्होंने पहले से वैक्सीन नहीं लगवाई थी और साथ ही जो गंभीर रुप से संक्रमित थे। इसके आलावा मरीजों को दिल की बीमारी के साथ-साथ डायबिटीज भी था। इस ड्रग ने इन मरीजों के हॉस्पिटलाइजेशन और मौत के खतरे को 7% से 1% पर पहुंचा दिया था।
आगे और भी रिसर्च में जुटी है कंपनी
आज समय और हालात दोनों ही अलग है। अमेरिका में लगभग 90% लोगों को वैक्सीन की पहली डोज भी लग चुकी है। वहीं उन्होंने बताया कि अमेरिका में वैक्सीनेटेड लोगों में से 1% से भी कम लोग हॉस्पिटलाइज हो रहे हैं। इस पर पैक्सलोविड टैबलेट कितना असर कर रही है उस पर रिसर्च जारी है। वहीं फाइजर ने पिछले साल कहा था कि इस रिसर्च के शुरुआती नतीजों में पैक्सलोविड कोरोना मरीजों के लक्षण दबाने और हॉस्पिटलाइजेशन कम करने में फेल हुई। हालांकि, कंपनी का कहना है कि अभी वो इस बात पर रिसर्च कर रही है कि क्या यह टैबलेट कोरोना इन्फेक्शन की गंभीरता और वक्त को कम करती है।