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पुराने संसद में प्रधानमंत्री ने दिया आखिरी स्पीच, कहा- यह भावुक करने वाला पल है

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द फॉलोअप डेस्कः 

पुरानी संसद में सोमवार को संसद की कार्यवाही का आखिरी दिन है। पीएम मोदी ने पुराने भवन में 50 मिनट की आखिरी स्पीच दी। इस दौरान पूर्व प्रधानमंत्रियों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि ये वो सदन है जहां पंडित नेहरू का स्टोक्स ऑफ मिडनाइट की गूंज हम सबको प्रेरित करता है। इदिरा गांधी के नेतृत्व में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम का आंदोलन भी इसी सदन ने देखा था। 'सदन ने कैश फॉर वोट और 370 को भी हटते देखा है। वन नेशन वन टैक्स, जीएसटी, वन रैंक वन पेंशन, गरीबों के लिए 10% आरक्षण भी इसी सदन ने दिया। इस सदन से विदाई लेना एक बेहद भावुक पल है। हम इस सदन को छोड़कर जा रहे हैं, तो हमारा मन मस्तिष्क भी उन भावनाओं से भरा हुआ है और अनेक यादों से भरा हुआ है। उत्सव-उमंग, खट्टे-मीठे पल, नोक-झोंक इन यादों के साथ जुड़ा है।

सदन ने कई उतार चढ़ाव देखे

भारत के लोकतंत्र में तमाम उतार-चढ़ाव हमने देखे हैं और ये सदन लोकतंत्र की ताकत हैं और लोकतंत्र के साक्षी हैं। इसी सदन में चार सांसदों वाली पार्टी सत्ता में होती थी और 100 सांसदों वाली पार्टी विपक्ष में होती थी। इसी सदन में एक वोट से सरकार गिरी थी। नरसिम्हा राव घर जाने की तैयारी कर रहे थे लेकिन इस सदन की ताकत से अगले पांच साल के लिए देश के पीएम बने। 2000 की अटल जी की सरकार में तीन राज्यों का गठन हुआ। जिसका हर किसी ने उत्सव मनाया। इसी सदन ने कैंटीन में मिलने वाली सब्सिडी को खत्म किया। इसी सदन के सदस्यों ने कोरोना काल में सांसद फंड का पैसा जनहित में दिया। ये सदन लोकतंत्र की ताकत हैं और लोकतंत्र के साक्षी हैं। 


समय के साथ सकारात्मक परिवर्तन हुए 
पुराने दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा "मैं पहली बार जब संसद आया तो सहज रूप से मैंने संसद भवन की चौखट पर अपना शीश झुका दिया। इस लोकतंत्र के मंदिर को श्रद्धाभाव से नमन करते हुए मैंने पैर रखा था। वह पल मेरे लिए भावनाओं से भरा हुआ था। मैं कल्पना नहीं कर सकता, लेकिन भारत के लोकतंत्र की ताकत है कि रेलवे प्‍लेटफॉर्म पर गुजारा करने वाला एक बच्चा पार्लियामेंट पहुंचता है। मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि देश मुझे इतना सम्मान देगा। हमारे यहां संसद भवन के गेट पर लिखा है, जनता के लिए दरवाजे खोलिए और देखिए कि कैसे वो अपने अधिकारों को प्राप्त करते हैं। हम सब और हमारे पहले जो रहे वो इसके साक्षी रहे हैं और हैं। वक्त के साथ संसद की संरचना भी बदलती गई। समाज के हर वर्ग का प्रतिनिधि विविधताओं से भरा हुआ। इस भवन में नजर आता है। समाज के सभी तबके के लोगों का यहां योगदान रहा है।" आग बेोले पहले "महिला सदस्यों की संख्या कम थी, धीरे धीरे उनकी संख्या बढ़ी। प्रारंभ से अब तक 7500 से अधिक प्रतिनिधि दोनों सदनों में आ चुके हैं। इस कालखंड में करीब 600 महिला सांसद आईं। इंद्रजीत गुप्ता जी 43 साल तक इस सदन के साक्षी रहे। शफीकुर्रहमान 93 साल की उम्र में सदन आ रहे हैं।"

संसद पर हुए आतंकी हमले को पीएम मोदी ने किया याद

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, अनगिनत लोगों ने संसद को सुचारू रूप से चलाने के लिए अपना योगदान दिया। लोकतंत्र के इस सदन में आतंकी हमला भी हुआ. ये हमला संसद पर नहीं बल्कि हमारी जीवात्मा पर था। देश इसे कभी नहीं भूल सकता। आतंकियों से लड़ते लड़ते जिन्होंने सदन को गोलियों से बचाया मैं उनको भी नमन करता हूं।

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