भुवनेश्वर:
सामाजिक कार्यकर्ता ए ब्रह्मानंद आचार्य (social activist A brahmanand) ने अपने सिर में घोंसला बना लिया है। घास-फूस से बना ये घोंसला बिलकुल वैसा ही है जैसा गोरैया बनाती है। ए ब्रह्मानंद ओडिशा के गंजम के रहने वाले हैं। पर्यावरणविद और सामाजिक कार्यकर्ता ए ब्रह्मानंद ने अपने सिर में घोंसला बना लिया ताकि लोगों को गोरैयों (sparrow) के विलुप्त होने के प्रति जागरूक कर सकें।
Ganjam, Odisha | Social activist A Brahmananda Acharya wore a makeshift nest to caution people on extinction of sparrows."Over 90% sparrows are extinct. If we don't look after domestic sparrows,soon they'll be a thing of past,"he said#WorldSparrowDay was marked y'day, March 20 pic.twitter.com/bzCx99lGAr
— ANI (@ANI) March 21, 2022
90 फीसदी गोरैया हो चुकी है विलुप्त
समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में ए ब्रह्मानंद ने कहा कि 90 फीसदी से ज्यादा गोरैया विलुप्त हो चुकी हैं। बाकी जो बची हैं वो भी विलुप्ति की कगार पर हैं। उन्होंने कहा कि वक्त की जरूरत है कि घरेलू गोरैयों की देखभाल की जाए। उन्होंने कहा कि यदि जल्द ही ऐसा नहीं किया गया तो गोरैया अतीत की बात हो जाएगी। ये पारिस्थितक तंत्र के लिए अच्छा नहीं होगा।
गंभीर पर्यावरण संकट है घटती संख्या
गौरतलब है कि, दुनिया में घटती गोरैया की संख्या एक बड़ा पर्यावरण संकट ( Environmental Crisis) है। इसकी वजह से प्राकृतिक सह-संबंध को काफी नुकसान पहुंचा है। गोरैया की घटती संख्या की बड़ी वजह बढ़ता शहरीकरण है। ऊंची-ऊंची इमारतें बनने लगी हैं। इसमें कोई गैप नहीं बना होता जहां गोरैया अपना घोंसला बना सके।
छोटे कस्बों में भी ऐसा ही होता है। ध्वनि (Noise Pollution) और वायु प्रदूषण (Air Pollution) की वजह से भी गोरैया विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी है। मोबाइल टॉवर का रेडिएशन भी इसे नुकसान पहुंचाता है।
ग्रामीण इलाकों में मिलती है गोरैया
गोरैया अभी काफी संख्या में ग्रामीण इलाकों में मिलती हैं। ग्रामीण इलाकों में गोरैया के जीवन अनुकूल परिस्थितियां मिलती हैं। वहां पेड़-पौधे होते हैं। कच्चे मकान होते हैं जहां खपरैल में आसानी से गोरैया घोंसला बना पाती है। गोरैया की विलुप्ति से किसानों को बहुत नुकसान होगा क्योंकि वो खेत में हानिकारक कीड़े-मकौड़ों को खा लेती है।