डेस्क:
अभी दुनिया कोरोना से उभरने की कोशिश में ही लगी थी कि एक नई बीमारी ने दस्तक दे दिया है। इस बीमारी का नाम मंकीपॉक्स है जो केवल 15 दिन में 15 देशों में पैर पसार चुका है। शुक्रवार को बेल्जियम मंकीपॉक्स के मरीजों के लिए 21 दिन का क्वारंटीन पीरियड अनिवार्य करने वाला पहला देश बन गया। वहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने चेतावनी दी है कि किसी भी देश में इस बीमारी का एक मामला भी आउटब्रेक माना जाएगा। भारत सरकार भी इससे बचाव को लेकर विचार करने लगी है। हालांकि अभी तक भारत में इससे जुड़ा कोई मामला सामने नहीं आया है। भारत में भी इस बीमारी को लेकर अलर्ट जारी किया गया है।
क्या है मंकीपॉक्स, कैसे फैलता है?
मंकीपॉक्स एक वायरल इन्फेक्शन है, जो पहली बार 1958 में कैद किए गए बंदर में पाया गया था। 1970 में पहली बार इंसान में इसके संक्रमण के पुष्टि हुई थी। ये चेचक जैसी ही एक बीमारी है। इसका वायरस चेचक के वायरस के परिवार का ही सदस्य है। मंकीपॉक्स का संक्रमण आंख, नाक और मुंह के जरिए फैल सकता है। यह मरीज के कपड़े, बर्तन और बिस्तर को छूने से भी फैलता है। इसके अलावा बंदर, चूहे, गिलहरी जैसे जानवरों के काटने से या उनके खून और बॉडी फ्लुइड्स को छूने से भी मंकीपॉक्स फैल सकता है।
मंकीपॉक्स के लक्षण
WHO के अनुसार, मंकीपॉक्स के लक्षण संक्रमण के 5वें दिन से 21वें दिन तक आ सकते हैं। शुरुआती लक्षण फ्लू जैसे होते हैं। इनमें बुखार, सिर दर्द, मांसपेशियों में दर्द, कमर दर्द, कंपकंपी छूटना, थकान और सूजी हुई लिम्फ नोड्स शामिल हैं। इसके बाद चेहरे पर मवाद से भरे दाने उभरने लगते हैं, जो शरीर के दूसरे हिस्सों में भी फैल जाते हैं और कुछ दिन बाद सूखकर गिर जाते हैं।
2 हफ्तों में ही मामला 100 के पार
ब्रिटेन, अमेरिका, इटली, स्वीडन, फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, बेल्जियम, नीदरलैंड्स, इजराइल, ऑस्ट्रिया और स्विट्जरलैंड में मंकीपॉक्स के केस सामने आए हैं। केवल 2 हफ्तों में ही मामलों की संख्या 100 के पार जा चुकी है। हालांकि, इस बीमारी से अब तक एक भी मौत नहीं हुई है।
गर्भवतियों और बच्चों को सबसे ज्यादा खतरा
बता दें कि इस बिमारी का सबसे ज्यादा खतरा गर्भवतियों और बच्चों को है। WHO के अनुसार, मंकीपॉक्स जैसा दुर्लभ संक्रमण वैसे तो अपने आप ही ठीक हो जाता है, लेकिन यह कुछ लोगों में गंभीर साबित हो सकता है। ऐसे लोगों में छोटे बच्चे, गर्भवती महिलाएं और बेहद कमजोर इम्यूनिटी वाले लोग शामिल हैं। 5 साल से छोटे बच्चे इसकी चपेट में जल्दी आते हैं