द फॉलोअप डेस्कः
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को केंद्र सरकार ने मंगलवार को देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘भारत रत्न’ देने का ऐलान किया। यह ऐलान उनकी 100वीं जयंती से एक दिन पहले किया गया। कर्पूरी ठाकुर सादगी की मिसाल थे। इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि वे दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे, लेकिन इसके बावजूद जब उनका निधन हुआ तो उनके पास अपना खुद का एक घर भी नहीं था। उन्हें लोग ‘गरीबों का ठाकुर’ कहते थे। हेमवती नंदन बहुगुणा ने अपने संस्मरण में लिखा कि कर्पूरी ठाकुर की आर्थिक तंगी को देखते हुए देवीलाल ने पटना में अपने एक हरियाणवी मित्र से कहा था कि कर्पूरी जी कभी आपसे 5-10 हज़ार रुपये मांगें तो दे दीजिएगा। यह मेरे ऊपर आपका कर्ज रहेगा। हालांकि, बाद में देवीलाल ने अपने मित्र से कई बार पूछा कि ठाकुर ने कुछ मांगा तो मित्र का हर बार जवाब यही रहता कि वे तो कुछ मांगते ही नहीं हैं।
बिहार के दो बार रहे सीएम
कर्पूरी ठाकुर बिहार के दो बार सीएम रहे। वे 22 दिसंबर 1970 से दो जून 1971 और 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 तक सीएम रहे। ठाकुर लोकनायक जयप्रकाश नारायण और समाजवादी चिंतक डॉक्टर राम मनोहर लोहिया को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। वहीं, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान और सुशील कुमार मोदी इन्हें अपना गुरु मानते थे। जननायक कर्पूरी ठाकुर ने पहला विधानसभा चुनाव 1952 में समस्तीपुर जिले के ताजपुर निर्वाचन क्षेत्र से लड़ा और जीत दर्ज की। उनकी उम्र तब 31 साल की थी। इस चुनाव के बाद उन्होंने कोई भी विधानसभा चुनाव नहीं हारा। एकमात्र हार उन्हें 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में मिली थी।
एक ही कपड़ा सुखाकर पहनते थे
कर्पूरी ठाकुर की सादगी के कई किस्से हैं। वे एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री रहे, नेता विरोधी दल रहे और दशकों तक विधायक रहे, उनके आसपास अभाव का होना अपने समय के युग धर्म का कटु सत्य है। कई बार वे लंबी यात्राओं के क्रम में एक ही कपड़ा पहने होते, जब नहाते तो उसे ही सुखाकर फिर पहन लेते थे। कर्पूरी ठाकुर रिक्शे से ही चलते थे। क्योंकि कार का खर्च वहन नहीं कर सकते थे। वे अक्सर अपनी राजनीतिक यात्राओं के दौरान कार्यकर्ताओं के घर पर ही भोजन करते थे। किसी भी छोटी-बड़ी घटना की सूचना मिलने पर वहां तुरंत पहुंच जाते थे। बराबर पैसा का अभाव रहने के बावजूद कार्यकर्ताओं की आर्थिक मदद भी प्राय किया करते थे।
26 महीने तक जेल में रहे
जननायक कर्पूरी ठाकुर स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षक भी थे। महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वे 26 महीने तक जेल में रहे। वे हमेशा गरीबों के अधिकार के लिए लड़ते रहे। सीएम बनने पर उन्होंने पिछड़ों को 12 प्रतिशत आरक्षण दिया। कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 बिहार के समस्तीपुर जिले के पितौंझिया गांव में हुआ था। इस गांव को अब लोग कर्पूरीग्राम के नाम से जानते हैं। उनके पिता का नाम गोकुल ठाकुर और माता का नाम रामदुलारी देवी था । पिता एक सीमांत किसान थे।
ऐसा जननायक मिलना मुश्किल
आज जब करोड़ों रुपये के घोटालों में नेताओं के नाम उछलते हैं तो ऐसे में विश्वास करना मुश्किल होता है कि कर्पूरी ठाकुर जैसे जननायक भी इस देश में हुए। उनकी ईमानदारी के किस्से आज भी काफी मशहूर हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनको भारत रत्न मिलने पर खुशी जताई है। उन्होंने कहा कि भारत रत्न न केवल महान जननायक के अतुलनीय योगदान का सम्मान है, बल्कि इससे समाज में समरसता को और बढ़ावा मिलेगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि कर्पूरी ठाकुर के दूरदर्शी नेतृत्व और अटूट प्रतिबद्धता ने देश के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य पर अमित छाप छोड़ी है।