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संताल में कम हो रहे आदिवासी, केंद्र चुप क्यों हैः हाईकोर्ट

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द फॉलोअप डेस्कः
संताल में बंगलादेशी घुसपैठियों के प्रवेश के कारण जनसंख्या में हो रहे बदलाव को लेकर दायर जनहित याचिका पर गुरुवार को झारखंड हाइकोर्ट में सुनवाई हुई। एक्टिंग चीफ जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की। इस दौरान केंद्र सरकार की ओर से जवाब दायर नहीं किया गया। सात ही केंद की तरफ से समय की मांग की गई है जिसे लेकर हाईकोर्ट ने कड़ी नाराजगी जतायी है। खंडपीठ ने कहा कि इतना संवेदनशील मामला होने के बाद भी केंद्र सरकार सहित अन्य प्रतिवादी जवाब दायर करने के लिए समय मांग रहे हैं। आदिवासियों की आबादी घटती जा रही है और केंद्र सरकार मौन है। यहां तक की आदिम जनजाति के सदस्यों की संख्या भी घट रही है। उनकी सुरक्षा के लिए सीएनटी, एसपीटी एक्ट भी लागू है। 


केंद्र साकारात्मक रवैया नहीं दिखा रही 
खंडपीठ ने मौखिक रूप से कहा कि अंडमान-निकोबार में जैसे ट्राइबल अपने क्षेत्र में किसी को घुसने नहीं देते है, यहां भी वही स्थिति चाहते हैं क्या? केंद्र सरकार कब तक चुप रहेगी? मामले में कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है? कोर्ट ने कहा कि झारखंड का निर्माण आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए हुआ था। ऐसा लग रहा है कि केंद्र सरकार बांग्लादेशी घुसपैठियों के झारखंड में प्रवेश को रोकने को लेकर कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखा रही है। आइबी 24 घंटे काम करती है, लेकिन बांग्लादेशी घुसपैठियों जैसे संवेदनशील मुद्दों पर अपना जवाब दाखिल नहीं कर पा रही है। बीएसएफ की भी बांग्लादेशी घुसपैठियों को रोकने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका है। प्रतीत होता है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को रोकने के मामले में केंद्र सरकार का रुख सकारात्मक नहीं दिख रहा है। 
केंद्र सरकार की हस्तक्षेप याचिका खारिज
खंडपीठ ने आगे कहा कि मामले में राज्य सरकार की ओर से शपथ पत्र दाखिल किया जा चुका है, लेकिन केंद्र सरकार जवाब दायर करने के लिए चार से छह सप्ताह का समय मांग रही है। केंद्र सरकार द्वारा चार सप्ताह मांगे जाने संबंधी हस्तक्षेप याचिका (आइए) को खंडपीठ ने खारिज कर दिया। साथ ही केंद सरकार को दो सप्ताह के अंदर जवाब दायर करने का निर्देश दिया। मामले की अगली सुनवाई के पांच सितंबर को होगी। 

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