भक्ति पांडेय/साहिबगंज:
झूमते, गाते ये लोग कृष्ण भक्ति में लीन हैं। कोई ढोलक मजा रहा है तो किसी ने बांसुरी पर तान छेड़ी है। कोई मंजीरे पर ताल दे रहा तो कोई मग्न होकर गा रहा है। आसपास, सैकड़ों की संख्या में बैठे लोग वासुदेव के प्रेम के वशीभूत होकर ताल से ताल मिला रहे हैं। ये नजारा ऐतिहासिक कन्हैया स्थान का है। कन्हैया स्थान, वो जगह जहां की आबोहवा में श्रीकृष्ण की आहट है।
कन्हैया स्थान, जहां हरियाली, जीव-जंतु, प्राकृतिक छटा के कण-कण में कान्हा विद्यमान हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के खास मौके पर गंगा के तीरे बसे इस मनोरम मंदिर और यहां विराजमान भगवान वासुदेव का दर्शन कीजिए।
राजमहल में गंगा किनारे बसा है कन्हैया स्थान
झारखंड के साहिबगंज जिला अंतर्गत राजमहल में गंगा किनारे बसा कन्हैया स्थान मंदिर अपनी पौराणिकता, ऐतिहासिक महत्व और प्राकृतिक सुंदरता के लिए दुनिया भर में मशहूर है। इस मंदिर की खास बात ये है कि यहां भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी के पदचिह्न हैं। यही नहीं, कृष्ण भक्त चैतन्य महाप्रभु के पहचिह्न भी यहां विद्यमान हैं। कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने यहां चैतन्य महाप्रभु को अपने बालरूप के दर्शन दिए थे। पहले यहां घना जंगल हुआ करता था लेकिन अब खूबसूरत मंदिर है। श्रद्धालुओं के लिए कई तरह की सुविधा मौजूद है। यहां की खूबसूरती देखते ही बनती है।
भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी के पदचिह्न भी हैं
कन्हैया स्थान में भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी के पदचिह्न को लेकर भी दिलचस्प कहानी है। कहते हैं कि पहले यहां काफी घना जंगल हुआ करता था। एक संन्यासी ने यहां भगवान का स्मरण करके घोर तपस्या की। तपस्या से खुश होकर भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी ने दर्शन दिए। यहां श्रीकृष्ण ने अपनी लीला भी दिखाई। लीला रचाने के बाद भगवान श्रीकृष्ण और राधा-रानी तो यहां से चले गये लेकिन पीछे उनका पदचिह्न रह गया। इसे गुप्त वृंदावन भी कहा जाता है।
कन्हैया स्थान में चैतन्य महाप्रभु ने की थी साधना
मंदिर परिसर में पीपल का विशाल पेड़ है। कहते हैं कि ये वही पेड़ है जिसके नीचे बैठकर चैतन्य महाप्रभु ने साधना की थी। कहते हैं कि ये पहले घना जंगल था। लोग इधर आते-जाते नहीं थे। चैतन्य महाप्रभु एकांत में भजन कीर्तन करते। कहा जाता है कि जंगल के सभी जीव-जंतु भी चैतन्य महाप्रभु के साथ कृष्ण भक्ति में लीन भाव-विभोर होकर नाचने लगते।
जन्माष्टमी पर होता है महा-महोत्सव का आयोजन
कन्हैया स्थान में हर साल जन्माष्टमी में महा-महोत्सव का आयोजन किया जाता है। ना केवल देश के अलग-अलग हिस्सों से बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु यहां आते हैं। जन्माष्टमी के दिन सुबह से दोपहर तक भजन-कीर्तन होता है। शाम को महाआरती होती है। 10 बजे भगवान श्रीकृष्ण का महाअभिषेक किया जाता है। रात 12 बजे श्रद्धालुओं को महाप्रसाद मिलता है।