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सरहुल पर्व आज, जानें आदिवासी समाज की परंपराएं और आस्था

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द फॉलोअप डेस्कः
1 अप्रैल को झारखंड सहित विभिन्न क्षेत्रों में सरहुल पर्व का आयोजन हो रहा है। यह पर्व हर साल चैत्र मास में मनाया जाता है और मुख्य रूप से आदिवासी समुदाय का त्योहार है, जिसमें प्रकृति की पूजा की जाती है। इस वर्ष, सरहुल 2025 को विशेष जोश और उल्लास के साथ मनाया जाएगा, और यह पर्व पारंपरिक रीति-रिवाजों के माध्यम से आदिवासी समाज की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित करेगा।

सरहुल, झारखंड के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसे पूरे राज्य में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन, आदिवासी समुदाय नए साल का स्वागत करते हैं। सरहुल के अवसर पर प्रकृति नये रूप में झलकी देती है, जब पेड़ों पर नए फूल और पत्ते खिलने लगते हैं। 'सरहुल' शब्द दो भागों से मिलकर बना है - 'सर', जिसका अर्थ है सखुआ या साल का फूल, और 'हुल', जिसका अर्थ है क्रांति। इसे सखुआ फूल की क्रांति का पर्व भी कहा जाता है। यह त्योहार चैत्र माह की अमावस्या के तीसरे दिन मनाया जाता है, हालांकि कुछ गांवों में इसे पूरे महीने भर मनाने की परंपरा है। इस दिन लोग अखाड़े में नृत्य और गायन करते हैं और पूजा-अर्चना में भाग लेते हैं।

सरहुल का अर्थ है 'साल फूल' की पूजा। इस पर्व के दौरान, विशेष रूप से साल के वृक्षों की पूजा की जाती है, क्योंकि इन्हें प्रकृति का प्रतीक माना जाता है। इसे धरती की पूजा और नवजीवन का उत्सव भी कहा जाता है। इस दिन, गांव के सरना स्थल में पारंपरिक पूजा-अर्चना का आयोजन होता है। पूजा के दौरान "पाहन" (गांव का पुजारी) साल के वृक्षों की शाखाओं से देवी-देवताओं की आराधना करते हैं और समुदाय के लिए सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। यह पर्व आदिवासी समाज के लिए एक गहरी सांस्कृतिक पहचान और जीवन के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है।