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रांची/दिल्ली : हाईकोर्ट में सुनवाई की भाषा हिंदी हो, राज्यपाल रमेश बैस ने राष्ट्रपति को लिखा पत्र

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रांचीः 

राज्यपाल रमेश बैस ने  राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को पत्र लिखकर हिंदी भाषा को प्राथमिकता दिलवाने पर उनका ध्यान आकृष्ट करवाया है। राज्यपाल ने कहा है कि हिंदी झारखंड की राजभाषा है और राज्य के सर्वाधिक लोग हिंदी बोलते और समझते हैं। नाम मात्र के लोग ही राज्य में अंग्रेजी बोलते हैं। इसके बावजुद भी हाईकोर्ट में सुनवाई अंग्रेजी में होती है। संविधान में निहित प्रावधानों का उपयोग करते हुए हिंदी को झारखंड उच्च न्यायालय की भाषा अब तक नहीं बनाया जा सका है, जबकि देश के कई राज्य जहां राजभाषा हिंदी है वहां हिंदी भाषा में ही सुनवाई होती है। इनमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार के उच्च न्यायालय शामिल हैं।  

अब तक नहीं मिला कोर्ट में दर्जा 

झारखण्ड, बिहार से 15 नवम्बर 2000 को अलग हुआ। झारखंड के भू-भाग राज्य गठन से पहले पटना उच्च न्यायालय के न्यायिक क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आते थे। बिहार के उच्च न्यायालयमें हिंदी न्यायालय की कार्यवाही की भाषा के रूप में लागू है। राज्य बनने के बाद हिंदी को राजभाषा का दर्जा ज़रूर मिला लेकि उच्च न्यायालय में हिंदी न्यायालय की कार्यवाही की भाषा के रूप में लागू नहीं हो सकी। उन्होंने कहा है कि न्याय की बाद सबको समझ में आए, इसके लिए आवश्यक है कि भाषा हिंदी हो। झारखण्ड जैसे राज्य के उच्च न्यायालय में कानूनी प्रक्रियाओं का माध्यम अंग्रेजी होना न्याय को आम आदमी की समझ और पहुंच से दूर बनाता है। उन्होंने कहा है कि अनुच्छेद 348 के खंड (2) में प्रावधान है कि किसी राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उस उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों में हिंदी भाषा का या उस राज्य की शासकीय भाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा।  


भारत के संविधान के अनुच्छेद 351 में हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश प्राप्त है जो निम्नवत है:-
“संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिन्दुस्तानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहां आवश्यक या वांछनीय हो वहां उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे।" अतः: राज्यहित एवं न्यायहित में संविधान के अनुच्छेद 348(2) में प्रदत्त प्रावधानों का प्रयोग करते हुए हिन्दी को झारखण्ड उच्च न्यायालय की कार्यवाही की भाषा के रूप में प्राधिकृत किया जा सकता है।