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आदिवासी अधिकारों की मांग लेकर खूंटी के पड़हा महाराजा पहुंचे रांची ST-SC थाना, कहा- जल, जंगल और जमीन की सुरक्षा हो  

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रांची

खूंटी के कई पड़हा महाराजा बुधवार को एससी-एसटी थाना पहुंचे, जहां उन्होंने पदाधिकारियों के साथ विस्तृत चर्चा की। इस बैठक में आदिवासी समाज से जुड़ी प्रमुख समस्याओं को उठाया गया। पड़हा राजाओं ने स्पष्ट रूप से कहा कि जल, जंगल और जमीन की सुरक्षा को लेकर गंभीर कदम उठाने की आवश्यकता है, क्योंकि आदिवासी क्षेत्रों में इन संसाधनों की स्थिति लगातार बिगड़ रही है। महामंत्री लूथर टोपनो ने बैठक के दौरान चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि झारखंड में संविधान के आदेशों को पूरी तरह लागू नहीं किया जा रहा है। उनका कहना था कि आदिवासी समाज के विकास और अधिकारों की रक्षा के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं, बल्कि गैरकानूनी गतिविधियों को बढ़ावा मिल रहा है।


पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था की बहाली की मांग
लूथर टोपनो ने कहा कि जिन क्षेत्रों में आदिवासी बहुसंख्यक हैं, वहां उनकी पारंपरिक शासन व्यवस्था को मान्यता दी जानी चाहिए थी। लेकिन इसके विपरीत, आदिवासी समाज को लगातार हाशिए पर धकेला जा रहा है। पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था को लागू न किए जाने के कारण आदिवासी समुदाय असुरक्षित महसूस कर रहा है और उनके मूलभूत अधिकारों का हनन हो रहा है। पड़हा महाराजाओं ने यह भी चिंता जताई कि आदिवासी संस्कृति को लिपिबद्ध नहीं किया गया, जिसके कारण नई पीढ़ी अपनी परंपराओं से दूर होती जा रही है। जल, जंगल और जमीन के संसाधनों का लगातार क्षय हो रहा है, जिससे आदिवासियों के जीवन-यापन के साधन भी सीमित होते जा रहे हैं।
स्वशासन लागू करने की अपील
उन्होंने कहा कि संविधान में पहले से ही शेड्यूल एरिया के तहत आदिवासियों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं, लेकिन इनका सही तरीके से क्रियान्वयन नहीं हो रहा है। गांवों में स्वशासन व्यवस्था बहाल करने की जरूरत है ताकि आदिवासी समाज का वास्तविक उत्थान हो सके।
उपस्थित प्रमुख प्रतिनिधि
इस अवसर पर पड़हा राजा लूथर टोपनो, दिशुम पाहन जेम्स धनवार, 22 पड़हा महाराजा कोम्पाट मुंडा, सनिका लुगुन, जोजो पड़हा राजा परबा परगनादार बिरेंद्र जोजो, पड़हा राजा दानियल, सुनिल सुरीन, फिलीप, दानियल टोपनो, जहानारा कच्छप, लूथरेन लकड़ा सहित कई अन्य आदिवासी नेता उपस्थित रहे। बैठक के अंत में पड़हा महाराजाओं ने मांग की कि आदिवासियों की पारंपरिक व्यवस्था को संवैधानिक मान्यता दी जाए और जल, जंगल, जमीन से जुड़े उनके अधिकारों की रक्षा के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएं।

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