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अब पोप फ्रांसिस के अंतिम संस्कार के बाद नये पोप के चुनाव का इंतजार, कैसे होता है पोप का चुनाव

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द फॉलोअप डेस्क
पोप फ्रांसिस का 88 वर्ष की उम्र में निधन के बाद विश्व के कैथोलिक समुदाय अब नये पोप के चुनाव का बेसब्री से इंतजार करने लगा है। नौ दिन शोक का समय होता है। उसके बाद पोप का अंतिम संस्कार किया जाता है। अमूमन पोप की मृत्यु के 15-20 दिन बाद नये पोप के चुनाव की प्रक्रिया शुरू की जाती है। इसके लिए विश्व भर के कार्डिनल्स को वेटिकन बुलाया जाएगा। पोप के चुनाव की प्रक्रिया काफी गोपनीय और दुरूह है। पोप के निधन के बाद विश्व भर के कैथोलिक समुदाय के कार्डिनल वेटिकन सिटी में जुटते हैं। इनकी बैठक को कांक्लेव कहा जाता है। जब ये कांक्लेव में बैठ जाते हैं तो नये पोप के चुनाव तक उन्हें बाहर निकलने की अनुमति नहीं होती है। जानकारी के अनुसार अभी विश्व में 252 कार्डिनल हैं। इनमें से 135 कार्डिनल पोप के चुनाव में अपना मत डालते हैं। पोप के चुनाव की सबसे अहम शर्त दो तिहाई बहुमत हासिल करना होता है। जब तक किसी कार्डिनल को दो तिहाई बहुमत प्राप्त नहीं हो जाता तब तक चुनाव की प्रक्रिया जारी रहती है। तकनीकी क्रांति के इस युग में पोप के चुनाव की प्रक्रिया को काफी गुप्त रखा जाता है। जहां भी कार्डिनलों का कांक्लेव होता है, वहां की सुरक्षा और गोपनीयता पर विशेष ध्यान दिया जाता है। चुनाव में सफेद और काले धुएं का भी अपना एक अलग संदेश है। जब तक बैठक वाली जगह से संकेत के रूप में चिमनी से काला धुआं छोड़ा जाता है, तब तक यह संकेत दिया जाता रहता है कि अभी चुनाव की प्रक्रिया जारी है। जब चिमनी से सफेद धुआं निकलता है, इसका संकेत होता है कि पोप का चुनाव संपन्न हो चुका है। यह धुआं सिस्टीन चैपल की चिमनी से निकलता है। उसके बाद पोप चुने गये व्यक्ति को पोप का वस्त्र पहनाया जाता है। फिर वह बालकनी में आकर दुनिया को अपना दर्शन देते हैं।


पोप चुने जाने की प्रक्रिया कुछ इस तरह है
वेटिकन ने अब तक वोट डाले जाने के लिए निर्धारित प्रक्रिया की स्पष्ट जानकारी नहीं दी है। पर चुनाव वाले क्षेत्र में एक बड़ा प्रत्येक कार्डिनल अपने पसंदीदा उम्मीदवार का नाम मतपत्र पर लिखता है। मतपत्रों को मोड़कर माइकल एंजेलो के अंतिम निर्णय वाले एक प्याले में रखा जाता है।  फिर उन वोटों की दो बार गिनती की जाती है। उसके बाद उसे जला दिया जाता है। 1975 में तत्कालीन पोप पॉल सिक्स ने नये पोप के चुनाव में 80 वर्ष से अधिक उम्र के कार्डिनल को वोट डालने अलग करने का फैसला किया था। 
पवित्र आत्मा का मार्गदर्शन करने के लिए सभा
यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ कैथोलिक बिशप पर छपी जानकारी के अनुसार, हर दिन चार दौर का मतदान होता है। जब तक कि पोप के उम्मीदवार को दो-तिहाई मत प्राप्त नहीं हो जाते। पहले पोप का पद खाली होने के 15 से 20 दिन बाद, कार्डिनल सेंट पीटर्स बेसिलिका में जुटते थे। वहां नए पोप के चुनाव में पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन का आह्वान किया जाता था। केवल 80 साल से कम उम्र के कार्डिनल ही कॉन्क्लेव में मतदान करने के पात्र होते हैं। उन्हें कार्डिनल इलेक्टर के रूप में जाना जाता है। कॉन्क्लेव के लिए कार्डिनल इलेक्टर सिस्टिन चैपल में जाते हैं और दरवाज़े बंद करने से पहले पूर्ण गोपनीयता की शपथ लेते हैं।

पोप बनने के लिए शर्तें
तीन कार्डिनल्स को नतीजों के ऐलान के लिए नियुक्त किया जाता है। ये कार्डिनल्स हर बैलेट के नतीजों को जोर से पढ़ते हैं। पोप पुरुष ही बन सकता है। पोप बनने की कोई उम्र निर्धारित नहीं की गई है। पोप फ्रांसिस को जब चुना गया था तो वह 76 साल के थे। उनसे पहले पोप बेनेडिक्ट XVI को 78 साल की उम्र में चुना गया था जबकि उन्होंने 85 साल की उम्र में पद से इस्तीफा दे दिया था।
महिला नहीं बन सकती पोप
अभी तक कैथोलिक चर्च की परंपरा के अनुसार कोई महिला पोप नहीं बन सकती है। कैथोलिक चर्च में महिलाओं को पादरी या पुजारी बनने से वंचित किया गया है। वैसे कुछ समय पहले पोप फ्रांसिस ने महिलाओं को पवित्र शास्त्र पढ़ने और वाचक बनने की अनुमति दी है, जिससे उनकी भूमिका चर्च में बढ़ गई है। कैथोलिक चर्च में महिलाओं को पादरी या पुजारी बनने की अनुमति नहीं है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसे धर्मशास्त्र और परंपरा के आधार पर बताया जाता है। पोप का चुनाव कार्डिनल्स के कॉलेज करते हैं। पोप को पहले बिशप के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिए। चूंकि महिलाएं बिशप नहीं बन सकतीं, इसलिए वे पोप नहीं बन सकतीं हैं।
 

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