द फॉलोअप डेस्क
पलकिया फाउंडेशन के नेतृत्व में सोमवार 04 नवंबर को जलवायु-स्थायी कृषि और खाद्य सुरक्षा का समर्थन करने की दिशा में कदम बढ़ाते हुए नागरिक संगठनों ने झारखंड के लिए “मिलेट मेनिफेस्टो” जारी किया। इस मेनिफेस्टो में राजनीतिक दलों से आग्रह किया गया है कि वे जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को प्राथमिकता देते हुए अपने चुनावी एजेंडे में प्राकृतिक खेती को शामिल करें और पौष्टिक व जलवायु-स्थायी पारंपरिक और स्वदेशी फसलों जैसे मडुआ (मिलेट्स) को वरीयता दें।
दशकों से हाइब्रिड बीजों, रासायनिक इनपुट और आधुनिक सिंचाई पद्धतियों ने आदिवासी समुदायों और स्थानीय कृषि के बीच पारंपरिक संबंध को बाधित कर दिया है, जिससे झारखंड की पारिस्थितिकी और किसानों की आजीविका पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इन बदलावों के कारण राज्य के 24 में से 20 जिले अत्यधिक जलवायु-संवेदनशील हो गए हैं, जिससे कुपोषण का खतरा और जैव विविधता का ह्रास बढ़ गया है।
इस दौरान संस्था ने मडुआ और दालों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय करने, मडुआ किसानों के लिए सुविधाजनक ऋण, तकनीकी सहायता और बाजार तक पहुंच सुनिश्चित करने, सप्लाई चेन और भंडारण सुविधाओं को मजबूत करने, पंचायत स्तर पर मडुआ उत्पादकों को सहयोग करने, महिला किसानों के नेतृत्व वाले किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) बनाने जैसे सुझाव मिलेट मैनिफेस्टो के जरिए राजनीतिक दलों को दिए। इसके साथ ही संस्थान ने महिला स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को स्थानीय मडुआ प्रसंस्करण इकाइयों से जोड़ने, आंगनबाड़ी और स्कूलों में मडुआ आधारित भोजन को शामिल कर कुपोषण की समस्या को दूर करने, मडुआ और अन्य स्थानीय खाद्य पदार्थों को रेस्टोरेंट व होटलों में रचनात्मक पाककला अनुभवों के माध्यम से प्रस्तुत करने और खाद्य उत्सव और संगोष्ठियों के माध्यम से पारिस्थितिकी-संवेदनशील उपभोग को बढ़ावा देने जैसे सुझाव भी राजनीतिक दलों को दिए हैं। पलकिया फाउंडेशन की निदेशक महिमा बंसल ने कहा, "जलवायु परिवर्तन के इस दौर में हमें झारखंड में मड़ुआ जैसे स्वदेशी और पारंपरिक अनाजों को पुनर्जीवित करने के लिए नीति-स्तरीय हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता है। अब समय आ गया है कि हम चावल और गेहूं के फसल चक्र से हटकर बहुफसली खेती को अपनाएं। चुनावों में जा रहे राजनीतिक दलों से हम चाहते हैं कि वे झारखंड के किसानों और महिलाओं को आश्वस्त करें कि इन सिफारिशों को लागू किया जाएगा। हम भाजपा का आभार व्यक्त करते हैं कि उन्होंने हमारे सुझावों को अपने संकल्प पत्र में शामिल कर मड़ुआ के लिए एमएसपी सुनिश्चित करने का वादा किया है। हमें उम्मीद है कि अन्य दल भी अपने घोषणापत्र में इन सिफारिशों को शामिल कर किसानों, जन स्वास्थ्य, और जलवायु स्थायित्व के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाएंगे।
बताते चलें कि बीते दशकों में आधुनिक कृषि और खाद्य प्रणालियों में आए ऐतिहासिक बदलावों के कारण आदिवासी समुदायों का पारंपरिक कृषि और खाद्य पद्धतियों से संबंध बाधित हुआ है। हाइब्रिड बीजों, रासायनिक पदार्थों और आधुनिक सिंचाई पद्धतियों, जो स्थानीय पारिस्थितिकी और जरूरतों के अनुकूल नहीं थीं, से झारखंड की खेती किसानी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
वर्ष 2023 के ‘इंटरनेशनल ईयर ऑफ़ मिलेट्स’ मनाए जाने के बाद, झारखंड में मडुआ (मिलेट्स) के उत्पादन और उपभोग को प्रोत्साहित करने के लिए कई सरकारी पहल किए गए हैं। इसी क्रम में पलकिया फाउंडेशन आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र राजनीतिक दलों को कृषि और जलवायु परिवर्तन को चुनावी मुद्दा बनाने का आग्रह कर रही है।