रांची:
गिरिडीह के बगोदर से भाकपा (माले) के विधायक विनोद सिंह ने मुख्यमंत्री आवास पहुंचकर सीएम हेमंत सोरेन से मुलाकात की। गौरतलब है कि सरकार गठन के समय से ही विनोद सिंह ने महागठबंधन सरकार को अपना समर्थन दे रखा है। चर्चा है कि विनोद सिंह ने सियासी संकट के बीच सरकार के प्रति समर्थन जताने के इरादे से ही मुख्यमंत्री आवास जाकर सीएम हेमंत सोरेन से मुलाकात की है।
गौरतलब है कि शुक्रवार को यूपीए विधायक दल की बैठक के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता विनोद पांडेय ने कहा था कि हमारे पास 50 विधायकों का समर्थन है। महागठबंधन मजबूत है।
बता दें कि झारखंड में जारी सियासी संकट के बीच माले विधायक विनोद सिंह का मुख्यमंत्री आवास जाकर सीएम हेमंत सोरेन से मुलाकात करना और यूपीए के प्रति समर्थन जताना काफी अहम है। दरअसल, विनोद सिंह सरकार के कई फैसलों पर अपना विरोध भी जताते रहे हैं। वे खुले मंच से सरकार की कई नीतियों की आलोचना भी करते हैं लेकिन संकट के समय समर्थन भी व्यक्त किया है।
मुख्यमंत्री की विधायकी रद्द हो चुकी है!
अब चूंकि ये तकरीबन स्पष्ट हो चुका है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधायकी रद्द हो चुकी है, महागठबंधन के पास अब 49 विधायकों का समर्थन है। महागठबंधन में झारखंड मुक्ति मोर्चा के 30 विधायक हैं। कांग्रेस के 18 विधायक हैं। आरजेडी विधायक सत्यानंद भोक्ता ने भी सरकार को समर्थन दिया है और कैबिनेट मंत्री हैं वहीं भाकपा (माले) के विनोद सिंह ने भी महागठबंधन को समर्थन दिया हुआ है। ऐसे में महागठबंधन के पास कुल आंकड़ा 49 विधायकों का है। झारखंड में सरकार बनाने के लिए 41 विधायकों की जरूरत है। ऐसे में मुख्यमंत्री की विधायकी जाने से सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन महागठबंधन के सामने चुनौती मुख्यमंत्री के रूप में अगला चेहरा चुनने की होगी।
सत्ता के लिए यूपीए के पास पर्याप्त संख्याबल
शुक्रवार को मुख्यमंत्री आवास में हुई यूपीए विधायक दल की बैठक के बाद और गुरुवार को भी कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायकों ने एक स्वर में कहा था कि हेमंत सोरेन ही उनके नेता होंगे। गुरुवार को झामुमो कार्यालय में प्रेस वार्ता के दौरान जब पत्रकारों ने सुप्रियो भट्टाचार्य से पूछा था कि यदि मुख्यमंत्री की सदस्यता गई तो विकल्प क्या होगा तो उन्होंने कहा था कि हेमंत सोरेन ही नेता हैं और वही विकल्प भी।
दरअसल, अभी तक ये स्पष्ट नहीं हो पाया है कि क्या चुनाव आयोग ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के चुनाव लड़ने पर भी रोक लगाई है या नहीं। यदि रोक नहीं लगाई गई है तो संभव है कि हेमंत सोरेन पद से इस्तीफा देने के बाद फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ लें और अगले 6 महीने में बरहेट विधानसभा का चुनाव जीतकर आयें। सियासी जानकारों का कहना है कि यदि चुनाव लड़ने पर रोक लगी तो सोरेन परिवार में से किसी को सीएम पद के लिए आगे किया जा सकता है या फिर झारखंड मुक्ति मोर्चा के ही किसी विश्वस्त विधायक को ये जिम्मेदारी दी जायेगी। हालांकि, ये सभी फिलहाल राजनीतिक गलियारों में जारी कयास ही हैं।
मुख्यमंत्री के खिलाफ क्यों हुई है कार्रवाई!
गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने ये कार्रवाई, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर रांची के अनगड़ा में 88 डिसमिल खनन पट्टा का लीज हासिल करने को लेकर की है। बीजेपी ने राज्यपाल से इसकी शिकायत की थी और राज्यपाल ने मामला केंद्रीय निर्वाचन आयोग के पास भेजा था। बीते 2 महीने से ये मामला चर्चा में था। फिलहाल, झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस भविष्य की रणनीति पर चर्चा कर रही है।