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लॉ स्टूडेंट ने सीएम हेमंत को पत्र लिखकर कहा- न्यायिक सेवा में भी अन्याय होने लगे, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है, जानिये क्या है मामला

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द फॉलोअप डेस्कः
सिविल जज जूनियर डिवीजन की नियुक्ति परीक्षा के विज्ञापन में कई खामियां हैं। ओबीसी को उम्र सीमा में छूट नहीं दी गयी है। साथ ही, उम्र सीमा की कट ऑफ डेट 2023 की जगह 2018 की जानी चाहिए। यह कहना है झारखंडी मुद्दों की लड़ाई लड़ रहे हजारीबाग के बरही निवासी और लॉ स्टूडेंट संजय मेहता का। उन्होंने ये बातें सीएम हेमंत सोरेन को लिखे अपने पत्र में कही हैं।

पांच साल तक नहीं हुई परीक्षा, इसलिए उम्र सीमा में छूट मिलनी चाहिए
संजय मेहता ने सीएम को लिखे अपने पत्र में झारखंड लोक सेवा आयोग द्वारा जारी विज्ञापन संख्या 22/2023 को त्रुटिपूर्ण बताया है। यह विज्ञापन झारखंड न्यायिक सेवा अंतर्गत 138 रिक्त पदों पर सिविल जज (जूनियर डिवीजन) नियमित नियुक्ति परीक्षा के लिए जारी किया गया है। मेहता ने लिखा है कि झारखंड लोक सेवा आयोग द्वारा अभी तक सिर्फ चार बार ही झारखंड न्यायिक सेवा अंतर्गत झारखंड ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट की परीक्षा का आयोजन हुआ है। पहली परीक्षा 2008, दूसरी 2014, तीसरी 2016 और चौथी परीक्षा 2018 में हुई थी। साल 2018 के बाद अब 2023 में यह परीक्षा आयोजित होने जा रही है। ऐसे में उम्र सीमा में छूट देना विधिक तौर पर उचित प्रतीत होता है, क्योंकि पांच सालों तक परीक्षा आयोजित ही नहीं हुई। जबकि इस परीक्षा में ओबीसी को उम्र सीमा में कोई भी छूट नहीं दी गयी है। ऐसे में सभी को अवसर नहीं मिल पायेगा।

यह समानता के संवैधानिक अधिकार के विरुद्ध है
मेहता ने सीएम को लिखे पत्र में बिहार का उदाहरण दिया है। कहा है कि बिहार ने झारखंड से अलग होने के बाद से ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट की परीक्षा आठ बार आयोजित की है। साथ ही एसटी, एससी, ओबीसी को उम्र सीमा में पांच साल की छूट भी दी है। जबकि, जेपीएससी द्वारा जारी विज्ञापन संख्या 22/2023 में उम्र सीमा की कट ऑफ डेट 31 जनवरी 2023 निर्धारित की गयी है। चूंकि पिछले पांच सालों में नियुक्ति हुई ही नहीं है, ऐसे में उम्र सीमा की यह कट ऑफ डेट उचित नहीं प्रतीत होती है। यह अवसर की समानता के संवैधानिक अधिकार के विरुद्ध है। 

बिहार राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 का दिया हवाला

संजय मेहता ने लिखा है कि बिहार राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 85 में विधियों के अनुकूलन की शक्ति है। धारा 86 में विधियों के अर्थान्वयन की शक्ति का प्रावधान है। अर्थात बिहार राज्य में ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट की भर्ती से संबंधित एसटी, एससी, ओबीसी तथा महिलाओं के आरक्षण तथा उम्र सीमा में छूट की जो व्यवस्था है, उसी उम्र सीमा और छूट को झारखंड में लागू किया जा सकेगा।

संजय मेहता ने सीएम हेमंत सोरेन से मांग की है कि सिविल जज (जूनियर डिवीजन) की परीक्षा में एसटी, एससी, ओबीसी, सामान्य वर्ग के सभी अभ्यर्थियों की उम्र सीमा में छूट दी जाये। साथ ही सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों की तुलना में ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों को उम्र सीमा में पांच वर्ष की छूट दी जाये। साथ ही, ओबीसी के लिए केंद्र की तरह 27 प्रतिशत वर्टिकल आरक्षण की व्यवस्था की जाये।

झारखंड न्यायिक सेवा की परीक्षा में सीएनटी एक्ट और एसपीटी एक्ट विषय को जोड़ने की मांग संजय मेहता ने अपने पत्र में है। झारखंड न्यायिक सेवा की परीक्षा प्रत्येक वर्ष लेने के लिए एक स्पष्ट नियमावली बनाने की भी मांग की है। उन्होंने सीएम से कार्मिक, प्रसाशनिक सुधार एवं राजभाषा विभाग को उचित परामर्श देते हुए संशोधित अधियाचना झारखंड लोक सेवा आयोग को भेजने का अनुरोध किया है। साथ ही यह भी अनुरोध किया है कि वर्तमान विज्ञापन को रद्द करते हुए जल्द से जल्द जेपीएससी द्वारा संशोधित विज्ञापन जारी कर नियुक्ति प्रक्रिया प्रारंभ करने की प्रक्रिया शुरू की जाये।

न्यायिक सेवा में भी अन्याय होना दुर्भाग्यपूर्ण
संजय मेहता ने कहा कि मैं भी कानून का छात्र हूं। एलएलबी के बाद फिलहाल एलएलएम कर रहा हूं। न्यायिक सेवा के जारी विज्ञापन में कई त्रुटियां हैं। ऐसे में कई नौजवानों का भविष्य बर्बाद हो जायेगा। हमलोग लंबे समय से लड़ाई लड़ रहे हैं। इसके बावजूद सरकार इतनी बड़ी गलती करेगी, तो छात्र कहां जायेंगे। न्यायिक सेवा में भी अन्याय होने लगेगा, तो यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। सरकार जल्द त्रुटि दूर कर तुरंत विज्ञापन जारी करे।

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