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14 दिसंबर की शाम पटना पुस्तक मेले के मुख्य मंच पर होगा हरिवंश की 10 किताबों का लोकार्पण

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द फॉलोअप डेस्कः
पत्रकारिता, लेखन, संपादन से लगभग चार दशकों तक जुड़े रहे हरिवंश की दस किताबों का लोकार्पण राष्ट्रीय पुस्तक मेला (गांधी मैदान,पटना) में 14 दिसंबर की शाम (06.30 बजे) होगा। लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि पूर्व मुख्य सचिव वी.एस.दुबे व विशिष्ट अतिथि, पूर्व पुलिस महानिदेशक डीएन गौतम होंगे। विशिष्ट वक्ता के रूप में खुदाबख्श लाइब्रेरी के पूर्व निदेशक व इतिहासकार प्रो. इम्तियाज अहमद की गरिमामय उपस्थिति रहेगी। उक्त अवसर पर बिहार म्यूजियम के अपर निदेशक अशोक कुमार सिन्हा व चंपारण के रहनेवाले संस्कृतिकर्मी व लेखक विनय कुमार की विशिष्ट उपस्थिति रहेगी। वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, स्तंभकार अनंत विजय बीज वक्तव्य देंगे। 


लोकार्पण समारोह के अवसर पर संगीत नाटक अकादमी व बिहार कला सम्मान से सम्मानित लोकगायिका चंदन तिवारी, बिहारनामा (हिंदी, भोजपुरी, मैथिली, मगही भाषा में बिहार की गौरवशाली कविताएं) का गायन करेंगी।  लगभग चार दशकों (1977-2017) की सक्रिय पत्रकारिता। ‘नवभारत टाइम्स’, ‘धर्मयुग’, ‘रविवार’ व ‘प्रभात खबर’ में पत्रकार के रूप में कामकाज व संपादन। पत्रकार रहते हुए देश के अधिसंख्य हिस्सों से ग्राउंड रिपोर्टिंग, साक्षात्कार, रिपोर्ताज के साथ विश्लेषण। आर्थिक-सामाजिक विषयों पर लेखन। देश-दुनिया की प्रभावी किताबों पर चर्चा। बतौर पत्रकार, दुनिया के 21 देशों को देखने, पाठकों को उनके बारे में बताने का काम। यानी, गुजरे चार दशकों (1977-2017) के देश-दुनिया व स्थानीय समाज के सरोकारों, सवालों पर बहुआयामी लेखों का संकलन हैं, ये किताबें। मोतिहारी में जन्में व संसार के महान लेखकों में से एक, जॉर्ज आरवेल ने कहा था कि जिसकी मुट्ठी में इतिहास होता है, वही भविष्य निर्माण करता है। आरवेल का मंतव्य था कि आनेवाली पीढ़ियों का नजरिया तैयार करने में इतिहास की क्रिटिकल भूमिका है। इस दृष्टि से ऐसे संकलनों का सामयिक महत्व है। 


हरिवंश की ये पुस्तकें, प्रकाशन संस्थान (नई दिल्ली) द्वारा ‘समय के सवाल’ श्रृंखला के तहत दस खंडों में प्रकाशित हैं। इन पुस्तकों के नाम क्रमश: 'बिहार: सपना और सच', 'भविष्य का भारत', 'राष्ट्रीय चरित्र का आईना', 'झारखंड: संपन्न धरती, उदास बसंत', 'झारखंड: चुनौतियां भी-अवसर भी', 'पतन की होड़', 'अतीत के पन्ने', 'सरोकार और संवाद', 'ऊर्जा के उत्स' और 'सफर के शेष' हैं. अलग-अलग विधाओं में, अलग-अलग विषयों पर हैं, ये पुस्तकें। हरिवंश ने 1977 में पत्रकारिता में धर्मयुग (साप्ताहिक पत्रिका, टाइम्स आफ इंडिया समूह, मुंबई) से काम शुरू किया। फिर रविवार (साप्ताहिक पत्रिका, आनंद बाजार समूह, कोलकाता) और प्रभात खबर (दैनिक अखबार) के साथ संबद्ध होकर पत्रकारिता की. आरंभिक प्रशिक्षण में नवभारत टाइम्स ( मुंबई)  में भी रहे. इन प्रकाशनों में छपे उनके लेख, इन दस संकलनों में हैं। इसके अलावा अन्य पत्र-पत्रिकाओं में लिखे लेख भी। लोकनायक जयप्रकाश नारायण के अंतिम दौर का साक्षात्कार है, तो चंद्रशेखर जैसे नेताओं से बातचीत भी। नक्सलवाद के शीर्ष नेताओं से लेकर अध्यात्म के शिखर मनीषियों से भी व्यवस्था और जीवन के गूढ़ प्रश्नों पर साक्षात्कार हैं। बिहार-झारखंड व देश के कुछेक अन्य सुदूर गांवों से रिपोर्ट हैं, तो अमेरिका और दुनिया के दूसरे विकसित मुल्कों की यात्रा और वहां के तत्कालीन सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक दृश्यों का चित्रण भी।


पत्रकारीय लेखन को तात्कालिक इतिहास (इंस्टैंट हिस्ट्री) कहा गया है। अतीत का समृद्ध अध्ययन, भविष्य का मार्ग प्रशस्त करता है। इस दृष्टि से स्थानीय समाज के साथ राज्य, देश और दुनिया में, तब के दौर में हो रहे उथल-पुथल व बदलावों की झलक व चित्रण है, इन संकलनों में। 
 इस कार्यक्रम का आयोजन प्रकाशन संस्थान नई दिल्ली द्वारा किया गया है.