रांची
आज रांची में झामुमो का 13वां महाधिवेशन हुआ। इसमें सीएम हेमंत सोरेन ने कहा कि आज राज्य की जनता के आशीर्वाद और झामुमो के जुझारु सिपाहियों की मेहनत की बदौलत हमने - अपने आप को विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बोलने वाले दल - को हराने का काम किया है। राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनने का आशीर्वाद हमें मिला है। यहां यह आप सभी साथी भी महसूस कर रहे होंगे कि आज हमारे महाधिवेशन में पूर्व से बेहतर भव्यता है, इसी प्रकार हमें राज्य के लोगों के लिए भी दिन-रात काम कर उनके जीवन स्तर में सुधार लाना है। झारखण्ड के हक-अधिकार के लिए हुए आंदोलन से उपजी पार्टी है झारखण्ड मुक्ति मोर्चा। झारखण्ड और झारखण्डवासियों को आगे ले जाने का काम भी हमें ही करना है। सोरेन ने कहा, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा ने हमेशा गरीब, शोषित और वंचित वर्ग के लोगों का प्रतिनिधित्व किया है। आदरणीय गुरुजी के नेतृत्व में अलग राज्य की लड़ाई लड़ी गयी, हमें अलग राज्य भी मिला। राज्य के लोगों ने सोचा कि अब हमारा सर्वांगीण विकास होगा लेकिन राज्य का विकास चुनी ही सरकार द्वारा ही संभव हो सकता है। और यह दुर्भाग्य था कि राज्य बनने के बाद राज्य की बागडोर जिनके हाथों में थी उन्हें यहां के आदिवासियों-मूलवासियों, झारखण्डवासियों से कोई मतलब नहीं था। 2019 में तब राज्य की जनता के आशीर्वाद से हमें नेतृत्व करने का अवसर मिला, उसमें भी विपक्ष ने कई बार राजनीति का स्तर नीचे गिराते हुए, झारखण्ड को पीछे ले जाने की कोशिश की, लेकिन सफल न हो सके।
इस अवसर पर पार्टी ने 16 प्रमुख प्रस्ताव पारित करते हुए अपनी भावी राजनीतिक दिशा और प्राथमिकताओं को स्पष्ट किया। इन प्रस्तावों में आदिवासी अस्मिता, जल-जंगल-जमीन पर अधिकार, आरक्षण और संविधानिक संस्थाओं की रक्षा जैसे मुद्दों को प्रमुखता दी गई।
प्रस्ताव में निहित महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार हैं:
• पंचायत चुनावों में महिलाओं और वंचित समुदायों की भागीदारी बढ़ाने की बात।
• द्वितीय और तृतीय श्रेणी के सरकारी पदों पर 100 प्रतिशत स्थानीय नियुक्तियों की मांग।
• आउटसोर्सिंग संस्थानों में भी 75 प्रतिशत स्थानीय लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने का प्रस्ताव।
• अनुसूचित जनजातियों को 28%, अनुसूचित जातियों को 14% और पिछड़े वर्ग को 27% आरक्षण की मांग।
• आदिवासियों के धर्म 'सरना' को संविधान में मान्यता देने की पुनः मांग।
• क्षेत्रीय भाषाओं और संस्कृति को संरक्षण देने हेतु सांस्कृतिक परिषद गठित करने का सुझाव।
• संविधानिक संस्थाओं पर हो रहे हमलों और अधिकारों में कटौती के खिलाफ संघर्ष का ऐलान।
• 'वक्त संशोधन कानून' और परिसीमन के खिलाफ सख्त विरोध जताया गया, जिसमें संविधान की धारा 80 और 81 के तहत लोकसभा और राज्यसभा में आदिवासी जनसंख्या के अनुसार प्रतिनिधित्व सीमित करने की कोशिश की जा रही है।
• जल-जंगल-जमीन पर स्थायी हक सुनिश्चित करने के लिए ‘भू-स्वामी आयोग’ के गठन की मांग।
• विस्थापित आदिवासियों को जमीन पर स्वामित्व और सम्मानजनक पुनर्वास की व्यवस्था की जाए।
• पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान देने के लिए दिल्ली में समन्वय कार्यालय खोलने की बात।
• बिहार के सीमावर्ती जिलों में संगठन विस्तार और आगामी विधानसभा चुनावों में सक्रिय उपस्थिति की योजना।
• असम में प्रवासी आदिवासियों के अधिकार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की रणनीति।
• पश्चिम बंगाल के आदिवासी बहुल जिलों में संगठनात्मक मजबूती पर ज़ोर।
• आर्थिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक मोर्चों पर आदिवासियों के लिए समावेशी नीति अपनाने का संकल्प।
• वन अधिकार अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन और ग्राम प्रधानों को मालिकाना हक देने की मांग।
महाधिवेशन के जरिए झामुमो ने यह संदेश स्पष्ट किया कि वह न सिर्फ झारखंड में बल्कि पूर्वी भारत के अन्य राज्यों में भी आदिवासी समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्ष को तेज करेगा।