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जेल ने बनाया जननायक: हेमंत बने झारखंड से लेकर झामुमो तक के बॉस

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ऋषभ शुक्ला, स्वतंत्र पत्रकार 

झारखंड की राजनीतिक ज़मीन पर जब भी जनसंघर्ष, सामाजिक न्याय और आदिवासी अस्मिता की बात होगी, हेमंत सोरेन का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। बीते एक साल में जिस तरह उन्होंने सत्ता, सिस्टम और साजिशों के खिलाफ खामोशी से संघर्ष करते हुए जनता का दिल जीता है, वह उन्हें एक नेता से जननायक की श्रेणी में खड़ा करता है। 2024 की शुरुआत में जब उन्हें जेल भेजा गया, तब विपक्षी ताक़तों ने सोचा था कि यह राजनीतिक करियर का अंत है। लेकिन जिस सादगी, शांति और साहस के साथ हेमंत सोरेन ने जेल को अपनाया और जिस तरह जनता ने उनके लिए सड़कों पर उतरकर समर्थन जताया- उसने यह साबित कर दिया कि यह कहानी अंत की नहीं, एक नई शुरुआत की थी।

राजनीतिक विरासत से जनसंघर्ष तक

हेमंत सोरेन का राजनीतिक सफर झारखंड आंदोलन से जुड़े उनके पिता दिशोम गुरु शिबू सोरेन की विरासत से शुरू हुआ। झारखंड मुक्ति मोर्चा के संघर्षों और आदिवासी अधिकारों की लड़ाई को उन्होंने न सिर्फ आगे बढ़ाया, बल्कि आधुनिक राजनीतिक रणनीति और जनविश्वास के साथ इसे एक नई ऊंचाई तक पहुंचाया। मुख्यमंत्री के रूप में हेमंत सोरेन का पहला कार्यकाल सीमित था, लेकिन 2019 में जब उन्होंने पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की, तब उनके नेतृत्व ने एक नया संदेश दिया- झारखंड अब दिल्ली की कठपुतली नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और स्वाभिमान की दिशा में आगे बढ़ता प्रदेश है।

जनपक्षधर नेतृत्व की मिसाल

हेमंत सोरेन के कार्यकाल को जनपक्षधरता, पारदर्शिता और ज़मीनी स्तर की नीतियों के लिए याद किया जाएगा। उन्होंने आदिवासियों के जल, जंगल, ज़मीन के हक को प्राथमिकता दी, सरकारी नौकरियों में स्थानीय नीति को लागू किया और झारखंडी पहचान को सामाजिक सम्मान दिलाने की कोशिश की। चाहे कोरोना काल में प्रवासी मज़दूरों की घर वापसी का मुद्दा हो या बेरोज़गारी भत्ता, छात्रवृत्ति, स्वास्थ्य सुविधा जैसी योजनाएं- हेमंत सोरेन ने झारखंड के सबसे कमजोर तबकों के लिए आवाज़ उठाई। उन्होंने एक "कार्यकर्ता मुख्यमंत्री" की छवि बनाई, जो अपनी ही सरकार के अधिकारियों से सवाल कर सकता है।

जेल यात्रा: झटका या जनजागरण?

जनवरी 2024 में हेमंत सोरेन को ईडी द्वारा कथित जमीन घोटाले में गिरफ़्तार किया गया। इस गिरफ्तारी को लेकर जनता में आक्रोश था, क्योंकि अधिकतर लोग इसे एक राजनीतिक साजिश मानते थे। जिस समय उन्होंने इस्तीफा देकर गिरफ़्तारी दी, उनकी आंखों में भय नहीं, बल्कि विश्वास था- अपने लोगों पर, अपने आंदोलन पर। जेल जाने के बावजूद उन्होंने जनता से सीधा संवाद बनाए रखा और हौसला कायम रखा। उस हौसले ने हेमंत को ‘लौह युवा’ बना दिया, जिसने सत्ता के घमंड को लोकतांत्रिक प्रतिरोध से चुनौती दी। झारखंड के गांव-गांव में बच्चे-बूढ़े तक हेमंत सोरेन के समर्थन में खड़े हो गए।

जनसमर्थन की बेमिसाल लहर

उनकी अनुपस्थिति में जनता ने उनके समर्थन में रैलियां, प्रदर्शन, पदयात्राएं और सोशल मीडिया अभियान चलाए, वो ऐतिहासिक था। उनके समर्थन में आदिवासी समुदाय, किसान, छात्र, महिला समूह और युवा सड़कों पर थे। यह किसी नेता के लिए नहीं, बल्कि एक विश्वास के लिए खड़ा होना था। इस दौरान हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना मुर्मू सोरेन ने भी मोर्चा संभाला और बड़ी गरिमा से पार्टी और जनसंघर्ष को आगे बढ़ाया। जनता ने हेमंत सोरेन को नायक और कल्पना सोरेन को नायिका की तरह स्वीकार किया। क्योंकि हेमंत ने अपनी कुर्सी कुर्बान कर दी थी, लेकिन अपने आत्मसम्मान से समझौता नहीं किया।

जेल से निकलते ही जननायक की तरह वापसी

जब महीनों की जेल यात्रा के बाद हेमंत सोरेन बाहर आए, तो यह सिर्फ एक हेमंत की वापसी नहीं थी, यह उम्मीदों की वापसी थी। हज़ारों की भीड़, फूलों की वर्षा और नारों की गूंज में एक संदेश था कि झारखंड हेमंत सोरेन के साथ खड़ा है। हेमंत सोरेन की आंखों में कोई घमंड नहीं था, कोई बदले की भावना नहीं थी, सिर्फ एक संकल्प था कि “अब संघर्ष और तेज़ होगा, अब आवाज़ और बुलंद होगी।” हेमंत ने कहा कि जेल में बिताया हर पल झारखंड के गरीब, वंचित और आदिवासी भाइयों के लिए सोचने में बीता।

'लौह युवा' की छवि का निर्माण

अब हेमंत सोरेन को जनता सिर्फ एक नेता के रूप में नहीं देखती, बल्कि एक “लौह युवा” के रूप में पहचानती है। जेल जाने के बाद उनकी छवि और सशक्त हुई है। सत्ता के लिए समझौता न करने वाला, सिद्धांतों पर अडिग रहने वाला और अपने लोगों के लिए हर कीमत चुकाने को तैयार एक ऐसा नेता, जो दुर्लभ है। सामाजिक न्याय की लड़ाई हो, आरक्षण का मुद्दा हो, शिक्षा-स्वास्थ्य या आदिवासी अधिकार- हर मोर्चे पर हेमंत सोरेन की आवाज़ बुलंद रही है। झारखंड का युवा उन्हें अपने सपनों का प्रतिनिधि मानता है।

राजनीतिक साजिशों के बीच बढ़ता कद

भाजपा और केंद्र की एजेंसियों की कार्रवाईयों को जनता ने सत्ता की हठधर्मिता और राजनीतिक प्रतिशोध की तरह देखा। हेमंत सोरेन को बार-बार अपमानित करने की कोशिशें उलटी पड़ीं और जनता की सहानुभूति उनकी ताकत बन गई। उनकी शांतिपूर्ण छवि, सहज नेतृत्व शैली और जनजनों से जुड़े रहना उन्हें ‘जननेता’ बनाता है। मीडिया ट्रायल, झूठे आरोप और लंबी पूछताछ - इन सबके बीच भी वो डटे रहे। उन्होंने दिखाया कि असली नेतृत्व सत्ता से नहीं, संघर्ष से बनता है।

हेमंत की कहानी प्रेरणादायक मिसाल

हेमंत सोरेन की कहानी इस देश के लोकतंत्र की एक प्रेरणादायक मिसाल है। यह उस नेतृत्व की कहानी है, जो सत्ता के गलियारों से नहीं, संघर्ष की गलियों से निकलता है। यह कहानी बताती है कि जब कोई नेता जनता के लिए खड़ा होता है, तो जनता भी उसके लिए दीवार बन जाती है। आज हेमंत सोरेन झारखंड के हर उस व्यक्ति की आवाज़ हैं, जो समानता, न्याय और पहचान के लिए लड़ रहा है। जेल ने उन्हें कैद नहीं किया, बल्कि इतिहास में अमर कर दिया।

आगामी भविष्य और नई उम्मीदें

हेमंत सोरेन अब सिर्फ मुख्यमंत्री ही नहीं है बल्कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के खेवनहार भी हैं। हेमंत सोरेन के झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष बनने के साथ ही पार्टी में एक नई ऊर्जा और राजनीतिक दिशा की शुरुआत हुई है। यह सिर्फ नेतृत्व परिवर्तन नहीं, बल्कि झारखंड के भविष्य के लिए नई उम्मीदों का संकेत है। उनके संघर्ष, अनुभव और जनता से गहरे जुड़ाव ने उन्हें एक जननेता के रूप में स्थापित किया है। अब जब वे संगठन की कमान संभाल चुके हैं, तो यह निश्चित है कि झामुमो और अधिक संगठित, आक्रामक और जनहितकारी एजेंडे के साथ आगे बढ़ेगा। युवाओं, आदिवासियों और वंचित तबकों के लिए उनकी नीति और दृष्टिकोण आने वाले समय में झारखंड की राजनीति को एक नई दिशा देंगे।


(नोट- ये लेखक के अपने विचार हैं, इसका द फॉलोअप से कोई लेना-देना नहीं है)
 

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