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राजनीति : 2016 में बने पेसा कानून को झारखंड में लागू करने की मांग रघुवर दास ने उठाई

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रांची:

भाजपा की अगुवाई वाली पिछली सरकार में सीएम रहे रघुवर दास ने 2016 में बने पेसा कानून को झारखंड में लागू करने की मांग उठाई है। उन्होंने आज जारी अपने बयान में हाईकोर्ट में इस मामले में दाखिल आदिवासी बुद्धिजीवी मंच की याचिका का हवाला दिया है। जिसमें कहा गया है कि राज्य में अब तक पेसा नियमावली नहीं लागू की गयी है। जबकि वास्तविकता यह है कि गैर अनुसूचित क्षेत्रों में लागू होनेवाली व्यवस्था को ही अधिसूचित क्षेत्रों की पंचायतों के लिए जारी रख दिया गया है। इसके कारण राज्य के अधिसूचित क्षेत्रों में निवास करनेवाली जनता को उनके अधिकारों से वंचित होना पड़ा रहा है। वर्तमान सरकार द्वारा पेसा एक्ट के प्रावधानों का कड़ाई से पालन नहीं किया जा रहा है।

 

 

अपनी सरकार में इसे लागू नहीं किया के सवाल पर रघुवर दास का कहना है कि 2016 में केंद्र सरकार की नियमावली के आधार पर उनके कार्यकाल में राज्य सरकार ने नियमावली का ड्राफ्ट वर्ष 2019 मैं तैयार करा लिया गया था। जिसमें राज्य के अधिसूचित क्षेत्रों में संविधान की पांचवी एवं छठवीं अनुसूची में निर्धारित व्यवस्था के अनुरूप पंचायतों को पूर्ण अधिकार दिए जाने के प्रावधान थे। पंचायतों, ग्राम सभाओं, ग्राम प्रधानों, मानकी, मुंडा इत्यादि पारंपरिक प्रधानों को पूर्ण अधिकार सौंप दिए जाने की नियत से कार्यवाही की जा रही थी। परंतु राज्य राज्य में हुए आम चुनाव एवं उसके बाद सरकार में हुए परिवर्तन के कारण नियमावली को लागू नहीं की जा सकी।

 

रघुवर दास भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं। उनका कहना है कि भारतीय संविधान की धारा 243 M के अनुसार पंचायत संबंधी प्रावधान राज्य के अधिसूचित क्षेत्रों में सीधे तौर पर लागू नहीं किए जा सकते। यदि संसद के द्वारा पेसा अधिनियम लागू किया गया है, तो उसके प्रावधानों को कड़ाई से लागू किए जाने के बाद ही पंचायत एक्ट के प्रावधान इन क्षेत्रों में लागू किए जाने हैं। पेसा एक्ट के प्रावधानों से यह स्पष्ट है कि झारखंड राज्य के अधिसूचित क्षेत्रों के ग्रामों के संबंध में पारंपरिक ग्राम प्रधानों, मानकी, मुंडा तथा प्रावधान के अनुसार संस्थाओं को सारी योजना, लघु खनिज, बालू घाट इत्यादि के संबंध में पूर्ण अधिकार दिया जाना है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जल जंगल जमीन की बात करने वाली झामुमो-कांग्रेस सरकार राज्य के आदिवासियों के साथ नाइंसाफी कर रही है। पेसा नियमावली को लागू करने में जानबूझकर विलंब किया जा रहा है।