रांची
रांची में आयोजित राष्ट्रीय कन्वेंशन से पहले भाकपा (माले) महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने बरसा मुंडा समाधि स्थल पर जाकर महान आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस मौके पर देशभर से आए 17 राज्यों के प्रतिनिधियों ने भी बिरसा मुंडा की शहादत को नमन किया।
श्रद्धांजलि सभा के बाद कन्वेंशन को संबोधित करते हुए दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि देश में आदिवासी अधिकारों का लगातार हनन हो रहा है। बस्तर में जल, जंगल, जमीन और खनिज संसाधनों को अडानी समूह के हवाले किया जा रहा है, और जो इसके खिलाफ आवाज उठाते हैं, उन्हें दमन का सामना करना पड़ता है। झारखंड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा समेत देश के विभिन्न हिस्सों में आदिवासी समुदाय लगातार संघर्ष कर रहा है। उन्होंने कहा कि आज जब संविधान पर खतरा मंडरा रहा है, तो वंचित तबकों की एकजुटता से लोकतंत्र और संविधान की रक्षा की जा सकती है।
कन्वेंशन में यह भी ज़ोर दिया गया कि पेसा कानून की अनदेखी की जा रही है, वक्फ बोर्ड की जमीनों पर कॉर्पोरेट नज़र गड़ा रहे हैं, जातीय जनगणना को टालने की साजिश रची जा रही है और झारखंड में धर्मांतरण के मुद्दे पर झूठ फैलाया जा रहा है। वक्ताओं ने कहा कि यह समय भ्रम और धार्मिक उन्माद के खिलाफ खड़े होने का है, क्योंकि इससे आदिवासियों की असल लड़ाई भटकाई जा रही है।
दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि संविधान कोई किताब से नहीं आया है, यह सामाजिक आंदोलनों की देन है — जिसमें बिरसा मुंडा, किसान आंदोलनों और दलित आंदोलनों का योगदान रहा है। वक्ताओं ने यह भी रेखांकित किया कि आदिवासियों ने कभी किसी आक्रांता या शोषक ताकत के साथ समझौता नहीं किया — चाहे वे मुग़ल रहे हों या अंग्रेज़। आज जब कॉर्पोरेट लूट और सरकारी दमन का दौर चल रहा है, आदिवासी जनता एक बार फिर विद्रोह की राह पर है। उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी शासनकाल में जमीन अधिग्रहण और सीएनटी/एसपीटी एक्ट पर हमलों के चलते आदिवासियों की लगभग 60% ज़मीन छिन ली गई है।
सम्मेलन का संचालन पांच सदस्यीय अध्यक्ष मंडल द्वारा किया गया। यह सम्मेलन आदिवासी अधिकारों की रक्षा और संविधानिक मूल्यों की पुनर्स्थापना की दिशा में एक निर्णायक कदम साबित हुआ।
कार्यक्रम के अंत में एक 15 सूत्री संकल्प पत्र जारी किया गया, जिसमें जल-जंगल-जमीन की लूट के खिलाफ निर्णायक लड़ाई, आदिवासी अधिकारों की सुरक्षा, कॉर्पोरेट लूट का विरोध, संविधान की रक्षा, पेसा व सीएनटी-एसपीटी कानूनों का पूर्ण क्रियान्वयन, जातीय जनगणना की मांग और धर्मांतरण के नाम पर फैलाए जा रहे भ्रम के खिलाफ जनजागरूकता जैसे प्रमुख मुद्दे शामिल हैं। कन्वेंशन को दयामनी बारला (आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता), जेम्स हेरेंज (सामाजिक कार्यकर्ता), सिराज दत्त (वरिष्ठ कार्यकर्ता), प्रतिमा इंगपी (असम की आदिवासी नेता), क्लिफ्टन, त्रिपति गमांगो, विनोद सिंह, राधाकांत सेठी, मनोज भक्त और विनोद कुमार सिंह ने भी संबोधित किया।