मोहित कुमार, दुमका:
दुमका में 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति को लेकर झारखंड मुक्ति मोर्चा के भीतरखाने घमासान मचा हुआ है। इस बीच भारतीय जनता पार्टी में भी इसे मुद्दे पर अलग-अलग मंतव्य है। गौरतलब है कि राज्य गठन के बाद राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने बाबूलाल मरांडी ने साल 2022 में 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति लागू करने की कोशिश की थी लेकिन उन्हें ना केवल पुरजोर विरोध का सामना करना पड़ा बल्कि सीएम की कुर्सी भी गंवानी पड़ी थी।
स्थानीय नीति पर झामुमो का अंतर्कलह
2014 में जब झारखंड में रघुवर दास के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी तो 1985 को कटऑफ मानकर स्थानीय नीति लागू की गई। अब जबकि राज्य में झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और आरजेडी गठबंधन की सरकार है तो 1932 का खतियान लागू करने की मांग जोर पकड़ने लगी हगै। हालांकि, इस मुद्दे पर झामुमो के बीच का अंतर्कलह खुलकर सामने आ चुका है।
सीएम ने हालिया बजट सत्र के दौरान सदन में कहा कि 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति को लागू करना दरअसल, कानूनन व्यवहारिक नहीं है, वहीं बोरियो से वरिष्ठ झामुमो विधायक लोबिन हेंब्रम ने अपनी ही पार्टी और सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। गुरुजी की बड़ी बहू और झामुमो विधायक सीता सोरेन भी इस पर मुखर है।
स्थानीय नीति पर बीजेपी का रुख साफ नहीं
इधर भारतीय जनता पार्टी का रुख भी स्थानीय नीति पर साफ नहीं है। दुमका के जामा विधानसभा से भारतीय जनता पार्टी के 2 बार प्रत्याशी रहे सुरेश मुर्मू ने पूर्व मुख्यमंत्रियों बाबूलाल मरांडी और रघुवर दास द्वारा लाई गई स्थानीय नीति को लेकर असहमति जाहिर की। उन्होंने कहा कि स्थानीय नीति पर तब आम जन की राय नहीं ली गई।
ग्राम प्रधान के साथ बैठक करके सुझाव लेना चाहिए था। हालांकि, जब सुरेश मुर्मू से पूछा गया कि आप बाबूलाल की तरफ हैं रघुवर दास की तरफ तो उन्होंने ये कहते हुए सवाल को टाल दिया कि एक तरफ कुआं है तो दूसरी तरफ खाई।