रांची
BAU यानी बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची में किये गये आरम्भिक प्रयोगों से साबित हुआ है कि रांची में सेब की खेती हो सकती है। प्रयोग के लिए BAU के हॉर्टिकल्चरल बायोडायवर्सिटी पार्क में फरवरी 2022 में सेब की 3 किस्मों के पौधे लगाये गये थे। ये तीनों किस्में थीं, स्कॉरलेट स्पर, जेरोमिन और अन्ना के पौधे। अन्ना प्रभेद के सेब इस साल अच्छी संख्या में फले। मिली खबर के मुताबिक BAU ने पार्क में अन्ना प्रभेद के 18 पौधे लगाये हैं। 2023 में इस किस्म के कुछ सेब उगाये गये थे। वहीं अन्य दो प्रभेदों में प्रयोग सफल नहीं हो सका।
बीएयू के वैज्ञानिकों ने बताया कि पिछले 2 वर्ष की अवधि में अन्ना प्रभेद का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा है। समय के साथ इसके पौधों का बेहतर विकास हुआ है। बता दें कि सभी पौधे डॉ वाईएस परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, सोलन, हिमाचल प्रदेश से मंगाये गये थे। बीएयू ने बताया कि पिछले 2 वर्षों में इन प्रभेदों के कुछ पौधे मुर्झाने के बाद सूख भी गये। सेब के पौधों में पुष्पण फरवरी माह में होता है। इसके बाद जुलाई-अगस्त तक इसमें फल बढ़ने लगते है। बीएयू के वैज्ञानिकों ने बताया कि झारखण्ड में सेब की व्यावसायिक खेती की संभावनाओं का पता लगाने के लिए और भी प्रभेदों की समीक्षा करनी होगी। खेती शुरू करने से पहले पूरी पैकेज प्रणाली को डेवेलप करना होगा।
बीएयू के बायोडाइवर्सिटी पार्क के प्रभारी वैज्ञानिक डॉ अब्दुल माजिद अंसारी की मानें तो यह पायलट प्रयोग था। सेब प्रभेदों की फलन क्षमता की समीक्षा के लिए ये किया गया था। कहा, अन्ना प्रभेद रांची की मिट्टी एवं आबोहवा में फल देने में समर्थ है। बताया कि समुचित प्रयोग और अध्ययन के बाद ही रांची में इसकी व्यावसायिक खेती के लिए पैरवी की जा सकती है। अंसारी के अनुसार सेब की सफल खेती के लिए ऊपरी भूमि की अच्छी जल निकासी वाली बलुआही दोमट मिट्टी और बेहतर सिचाई व्यवस्था की जरूरत पड़ती है।