द फॉलोअप डेस्क
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से गौतम अडाणी की मुलाकात के मायने
अडाणी ग्रुप के चेयरमैन और देश के दूसरे सबसे बड़े उद्योगपति गौतम अडाणी का शुक्रवार को झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात के मायने और निहितार्थ ढूंढे जा रहे हैं। निकाले जा रहे हैं। छन छन कर सत्ता के गलियारे से मिल रही सूचना के अनुसार केंद्र की मोदी सरकार और पूर्व की रघुवर दास सरकार से कई तरह के लाभ और सुविधाएं लेनेवाले गौतम अडाणी अब झारखंड की वर्तमान सरकार से भी कुछ उसी तरह का लाभ और सुविधा लेने की कोशिश कर रहे हैं। इसी मुख्य उद्देश्य से गौतम अडाणी ने धुर विरोधी रहे हेमंत सोरेन से शुक्रवार को रांची आकर मुलाकात की। हालांकि इस मुलाकातत में गंभीर विषयों पर हुई चर्चा का न तो राज्य सरकार ने कोई खुलासा किया है, न ही अडाणी ने ही खुद कोई बात कही। एयरपोर्ट से सीधे सीएम हाउस पहुंचे अडाणी, मुख्यमंत्री से मिलने के बाद अपने विशेष विमान से फिर सीधे मुंबई के लिए उड़ गए। अडाणी की इस मुलाकात के बाद हेमंत सोरेन के साथ हुई उनकी बातचीत की जानकारी छन कर बाहर आ रही है। कुछ कयास भी लगाए जा रहे हैं।
राज्य सरकार और अडाणी, दोनों की जरुरतों ने साथ बैठने को मजबूर किया
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन गरीब, किसान, युवा, दलित व वंचित वर्गों के लिए कई योजनाएं शुरू करने के बाद, अब राज्य को विकास की राह पर तेजी से आगे ले जाना चाहते हैं। लेकिन इसके लिए राज्य में पूंजी निवेश, बड़े उद्योगों की स्थापना अनिवार्य शर्त है। झारखंड की गरीबी को दूर करने के लिए ऐसा करना आवश्यक भी है। उधर गौतम अडाणी के लिए भी झारखंड काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। गोड्डा पावर प्लांट से उत्पादित बिजली की खपत, गोंडुलपाड़ा कोल ब्लॉक से कोयले का उत्पाद व अन्य किसी उद्योग की स्थापना के लिए अडाणी के लिए भी उतनी ही जरूरी है। इस कारण हेमंत सोरेन और अडाणी के इंटरेस्ट ने साथ बैठने को विवश किया है।
गोड्डा पावर प्लांट से उत्पादित बिजली को लेकर आ रही अड़चन दूर करने में राज्य का सहयोग जरूरी है
गोड्डा पावर प्लांट का 800-800 मेगावाट की दो यूनिट, कुल 1600 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता है। केंद्र और बंगलादेश सरकार के बीच हुई समझौते के अनुसार इस प्लांट से उत्पादित पूरी बिजली बंगलादेश को जाता है। जानकारी के अनुसार 2024 में बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के विरुद्ध हुए आंदोलन, विद्रोह और उत्पात के बाद बंगलादेश की माली हालत काफी खराब होने लगी थी। इस कारण समझौते के अनुसार आयातित बिजली मद का पैसा देने में बंगलादेश आनाकानी करने लगा था। अप्रैल से जुलाई 2024 के बीच अडाणी ग्रुप को बंगलादेश ने बिजली के एवज में होनेवाला भुगतान रोक दिया था। हालांकि बकाये की 70-80 फीसदी तक की राशि अब बंगलादेश ने भुगतान कर दिया है। बढ़ती गर्मी को देखते हुए बंगलादेश ने बिजली की खपत भी बढ़ा दी है। जबकि बीच में उसने गोड्डा पावर प्लांट से उत्पादित पूरी बिजली लेने में कमी कर दी थी। बंगलादेश के इस कदम से अडाणी ग्रुप सशंकित है। उसे भय सताने लगा है कि बंगलादेश ने अगर बिजली लेना बंद कर दिया तो उसके सामने 1600 मेगावाट बिजली को बेचना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए अडाणी ग्रुप अब गोड्डा पावर प्लांट से उत्पादित बिजली का 25 फीसदी हिस्सा यहीं से झारखंड को देने का ऑफर भी दे रहा है। जबकि रघुवर दास सरकार के समय ऊर्जा नीति 2012 में किए गए बदलाव व अडाणी के साथ हुए समझौते के अनुसार अडाणी गोड्डा पावर प्लांट के इतर किसी दूसरे प्लांट से भी झारखंड को 25 फीसदी बिजली दे सकता था। इस शर्त पर झारखंड बिजली लेने का विरोध करता रहा है। क्योंकि दूसरे किसी प्लांट से बिजली लेने पर झारखंड को महंगी पड़ेगी। मुख्यमंत्री के साथ मुलाकात में अडाणी संभवतः इस विवाद का भी समाधान खोजने की कोशिश की होगी।
झारखंड से ट्रांसमिशन लाइन बिछाने में भी सहयोग की अपेक्षा रखता है अडाणी ग्रुप
जानकारों के अनुसार बंगलादेश द्वारा गोड्डा पावर प्लांट से ली जानेवाली बिजली का भुगतान रोक दिए जाने, तय मेगावाट से कम बिजली लेने पर अडाणी ग्रुप के लिए भारी मुसीबत खड़ी हो गयी थी। भविष्य में फिर यह स्थिति नहीं बने, इसके लिए केंद्र सरकार ने पूर्व के नियम में संशोधन भी कर दिया है। बंगलादेश में विद्रोह और तख्ता पलट के बाद शेख हसीना 5 अगस्त 2024 को भारत में शरण ली थी। उसके बाद केंद्र सरकार ने 12 अगस्त को अपने पूर्व के नियम को संशोधित कर दिया था। इस संशोधन के बाद दूसरे देशों को निर्यात होनेवाली बिजली को, संबंधित कंपनियों को अपने देश में भी बिजली बेचने की छूट दी गयी है। हालांकि यह नियम सबके लिए समान है। लेकिन अडाणी ही किसी दूसरे देश को बिजली की आपूर्ति करता है, इसलिए उसका पहला लाभ गोड्डा पावर प्लांट को मिलने की उम्मीद की जा रही है। लेकिन गोड्डा पावर प्लांट से उत्पादित बिजली को देश के किसी दूसरे राज्यों को बेचने के लिए ट्रांसमिशन लाइन की जरूरत है। ताकि उस ट्रांसमिशन लाइन के माध्यम से नेशनल ग्रिड तक बिजली पहुंचायी जा सके। इस ट्रांसमिशन लाइन को बिछाने में जमीन की जरूरत होगी। जंगलों से गुजरनेवाली ट्रांसमिशन लाइन के लिए राज्य के वन एवं पर्यावरण विभाग का सहयोग आवश्यक होगा। और यह काम बगैर राज्य सरकार के सहयोग और समर्थन के संभव नहीं होगा।
गोंदुलपाड़ा कोल ब्लॉक भी एक प्रमुख कारक
चार साल पहले हुई निलामी में अडाणी ग्रुप ने रामगढ़ जिले के गोंदुलपाड़ा कोल ब्लॉक को हासिल किया था। इस कोल ब्लॉक के मिलने के बाद, वहां अब तक खनन प्रारंभ नहीं हो सका है। गोंदुलपाड़ा कोल ब्लॉक मिलने के बाद वहां स्थानीय लोगों ने वहां आंदोलन प्रारंभ कर दिया। विभिन्न संगठनों और ग्रामीणों द्वारा जारी आंदोलन और विरोध प्रदर्शन को लेकर अब तक 370-380 प्राथमिकियां दर्ज की जा चुकी है। ग्रामीणों के इस विरोध और आंदोलन को शांत करा कर कोयला खनन को प्रारंभ करना, बगैर राज्य सरकार के सहयोग के संभव नहीं है। वैसे कोयला खनन प्रारंभ होने पर राज्य सरकार को इससे प्रति वर्ष 100 करोड़ तक का अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होने की संभावना है। इससे राज्य सरकार का भी इसमें इंटरेस्ट हो सकता है।
कई अन्य विवाद और मसलें भी हैं, जिसे हल करना अडाणी ग्रुप चाहता है
अडाणी ग्रुप के लिए गोड्डा पावर प्लांट फायदे का सौदा है तो विशेष लाभ लेने के कारण तनाव का कारण भी। इस प्लांट की स्थापना के क्रम में केंद्र सरकार ने उस इलाके को स्पेशल इकोनॉमी जोन का दर्जा दिया था। इस कारण अडाणी ग्रुप को मशीनों की खरीददारी, कतिपय तरह के टैक्स में रियायत मिली। साथ ही उसे केंद्र सरकार के विभिन्न उपक्रमों, उसमें ग्रामीण विद्युतीकरण निगम भी शामिल है,कम दर पर ऋण दिलाया गया। प्लांट लगाने में केंद्र सरकार ने लगभग 72 फीसदी राशि का सहयोग किया। इसके अलावा तत्कालीन रघुवर दास सरकार द्वारा ऊर्जा नीति में किए गए बदलाव के कारण उत्पादित बिजली का 25 फीसदी हिस्सा झारखंड को देने के लिए अडाणी ग्रुप बाध्य नहीं रह सका। पूर्व की ऊर्जा नीति के तहत अडाणी को 25 फीसदी बिजली में 12 फीसदी वेरियवल कॉस्ट पर और 13 फीसदी वेरियवल प्लस फिक्स कॉस्ट पर देना होता। लेकिन दूसरे प्लांट से बिजली देने पर झारखंड को प्रति वर्ष 296 करोड़ रुपए के नुकसान की गणना की जाती है। इतना ही नहीं आरोप यह भी है कि तत्कालीन सरकार ने अधिग्रहित की गयी लगभग 600 एकड़ भूमि का दर कुछ इस तरह कम किया, जिससे अडाणी ग्रुप को अरबों रुपए का लाभ हुआ। इस लाभ की गणना इस तरह की जाती है। 2014 से पूर्व गोड्डा के तत्कालीन उपायुक्त ने वहां की जमीन की कीमत 40 लाख रुपए प्रति एकड़ तय कर दी थी। इससे उद्योगों की स्थापना के लिए अधिग्रहित की जानेवाली जमीन की कीमत चार गुणा होने पर रैयतों को लगभग 1.5 करोड़ रुपए प्रति एकड़ का मुआवजा मिलता। लेकिन बाद में तत्कालीन सरकार ने एक कमेटी बना कर जमीन के मूल्य का पुननिर्धारण कराया। उस कमेटी ने जमीन की कीमत छह से 13 लाख रुपए प्रति एकड़ करने की अनुशंसा की। इस आधार पर रैयतों को चार गुणा के हिसाब से जिस रैयत को पहले एकड़ एकड़ जमीन का अधिकतम 1.5 करोड़ का मुआवजा मिलता, वह 52 लाख रुपए हो गया। इस तरह की विसंगतियों के बीच पिछले दिनों विधानसभा में उठे सवाल पर राज्य सरकार ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन करने का फैसला किया है। यह समिति अडाणी ग्रुप के साथ हुए समझौते और उस समझौते में किस तरह नियमों और शर्तों में ढील देकर लाभ पहुंचाया गया है, उसकी समीक्षा करेगा। फिर राज्य सरकार को अपना अनुशंसा देगा। ये सब विषय, ऐसे हैं, जिसका अब हल शायद अडाणी ग्रुप भी चाहता है।
नये उद्योगों की स्थापना भी एक मूल कारण
झारखंड सरकार भी राज्य में उद्योगों की स्थापना चाहता है। पिछले दिनों सदन में मुख्यमंत्री ने भी अगले वित्तीय वर्ष में 20-22 हजार करोड़ के पूंजी निवेश होने की संभावना व्यक्त की है। इसके लिए अडाणी जैसे औद्योगिक घरानों का सहयोग आवश्यक है। मुख्यमंत्री और गौतम अडाणी के बीच हुई दो घंटे की बातचीत में निश्चित रूप से किसी बड़े उद्योग की स्थापना का अडाणी ने मुख्यमंत्री का आश्वासन दिया है। सूत्रों के अनुसार उसमें संथालपरगना के इलाके में सीमेंट कारखाना लगाने की बात छन कर बाहर आ रही है।