द फॉलोअप डेस्क
झारखंड के हाई स्कूल केवल 2 प्रतिशत प्रिंसिपल के भरोसे चल रहा है। ऐसे हम इसलिए कह रहे है क्योंकि हाई स्कूलों में हेडमास्टर के 98% पद खाली है। आलम यह है कि दर्जन भर स्कूलों में एक भी स्थायी प्रिंसिपल नहीं है। इसका सीधा असर एकेडमिक और प्रशासनिक कार्यों पर पड़ रहा है। बताते चलें कि राज्य में 2425 हाईस्कूल और 635 प्लस टू हाईस्कूल है। इसमें सिर्फ 38 स्थायी प्रिंसिपल हैं। यानि की 1790 स्कूलों को अब भी हेडमास्टर का इंतजार है।
80 हाईस्कूलों सह प्लस टू हाईस्कूलों को सीएम एक्सीलेंस का दर्जा
नियुक्ति नियमवाली के अनुसार प्रिसिंपल के कुल 50 प्रतिशत पदों पर सीधी नियुक्ति से भरे जाने का प्रावधान है। बाकी के 50 प्रतिशत पर शिक्षकों को प्रमोशन से भरे जाने का प्रावधान है। लेकिन राज्य में न तो सीधी नियुक्ति हुई है न तो शिक्षकों को प्रमोशन देकर उस पद तक पहुंचाया गया है। राज्य के 80 हाईस्कूलों सह प्लस टू हाईस्कूलों को सीएम एक्सीलेंस का दर्जा दिया गया है। जाने-माने निजी स्कूलों की तर्ज पर एकेडमिक रुप से विकसित करना है। स्थायी प्रिंसिपल की नियुक्ति के बिना निजी स्कूलों की बराबरी की बात बेमानी है।
विभागी जटिल प्रक्रिया के कारण प्रमोशन से वंचित
मिली जानकारी के अनुसार प्रिंसिपल पद की योग्यता रखने के बाद भी शिक्षक लगातार रिटायर कर रहे हैं। लेकिन विभागी जटिल प्रक्रिया के कारण प्रमोशन से वंचित रह गए। इस साल अगस्त में 130 प्रमोटी शिक्षकों की लिस्ट जारी की गई थी लेकिन वह फाइलों के बीच ही दबकर रह गई। इस बारे में शिक्षक संघ के संयोजक कुर्बान अली ने कहा है कि जल्द से जल्द प्रिसिंपल की बहाली की जाए। सीधी नियुक्ति में विलंब हो सकता है लेकिन अनुभवी योग्य शिक्षकों के प्रमोशन से पद भरा जाए। बिना प्रिंसिपल के शिक्षा सिस्टम में सुधार संभव नहीं है।