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रांची में 200 परिवार नोटा को देगा वोट, किसी की छूट गई पढ़ाई तो किसी की बेटी की नहीं हो रही शादी

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द फॉलोअप डेस्कः
रांची लोकसभा क्षेत्र की हाईटेंशन कॉलोनी और ईईएफ कॉलोनी 200 परिवार इस बार नोटा पर वोट करेगा। ग्रामीणों का कहना है कि उनकी समस्याएं सुनने कोई नहींआता है। इइएफ, टाटीसिलवे व हाइटेंशन इंसुलेटर फैक्टरी, सामलौंग के आवासीय परिसर में रह रहे कर्मियों व उनके परिवारों ने रांची लोकसभा चुनाव के प्रत्याशियों के प्रति नाराजगी जतायी है। समिति के अध्यक्ष मंटू लाला व सचिव समीर सिंह ने कहा है कि उन्होंने एनडीए प्रत्याशी संजय सेठ तथा इंडिया गठबंधन के सुबोधकांत सहाय व प्रत्याशी यशस्विनी सहाय को अपनी समस्याएं बताने के लिए आमंत्रित किया था। पर किसी प्रत्याशी ने करीब 200 परिवारों से मिलना जरूरी नहीं समझा। गौरतलब है कि बिहार राज्य औद्योगिक विकास निगम द्वारा पिछले 25 वर्षों से दोनों कारखाना के कर्मी और आश्रितों को वेतन नहीं दिया गया है, जिससे छात्रों की पढ़ाई-लिखाई छूट गई है। कई परिवार इलाज के बगैर मर गये। बेटियों की शादी नहीं हो पा रही है। लोग दाने-दाने के लिए तरस रहे हैं। प्रबंधन की तानाशाही से कर्मचारी परेशान हैं। 


हाईटेंशन ईईएफ बचाओ संघर्ष समिति के मंटू लाला ने बताया कि 200 परिवारों को घर से निकालने की साजिश हो रही है। संघर्ष समिति ने भाजपा प्रत्याशी संजय सेठ और कांग्रेस उम्मीदवार यशस्विनी सहाय सहित सभी राजनितिक दलों को अपनी समस्याओं से अवगत कराया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई


लाला ने बताया कि प्रबंधन तानाशाही कर रहा है। आवासीय परिसर के 200 परिवारों को घर से निकालने की साजिश की जा रची जा रही है। जबकि वे लोग 40-50 वर्षों से कारखानों के आवास में रह रहे हैं। इसकी मरम्मत व रखरखाव पर खर्च कर रहैं हैं। हाईकोर्ट के आदेश पर सबको बिजली का निजी कनेक्शन मिला है, जिसका वे लोग नियमित भुगतान करते हैं। उन्हें बीएसआइडीसीएल बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर की वर्ष 2007 में हुई बैठक में आवास लीज पर देने का फैसला हो चुका है।

कारखाना परिसर निजी पार्टी को लीज पर दे दिया गया है। ऐसे में कारखानों के आवास अनुपयोगी हो गये हैं। पर बिहार सरकार तानाशाही रवैया दिखा रही है, जबकि कारखाने झारखंड की धरती पर हैं। समिति के अध्यक्ष व सचिव ने कहा है कि बीएसआइडीसी के क्वार्टर संबंधित कर्मियों व उनके आश्रितों को 99 वर्ष के लीज पर देने की उनकी मांग है। अगर प्रत्याशियों से उन्हें समर्थन नहीं मिला, तो वे नोटा पर बटन दबाने को मजबूर होंगे। 

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