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भारत की 2.5 फ्रंट वॉर : युद्ध सिर्फ़ सीमा पर नहीं, विचारों की धरती भारत के अंदर भी

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दीपक सिंह

पहलगाम आतंकी हमले के बाद देश में एक सुनियोजित वैचारिक हमला भी शुरू हो चुका है, वह हमला जो बंदूकों से नहीं, शब्दों और प्रपंचों से किया जाता है। वामपंथी, कांग्रेसी और स्वयंभू बुद्धिजीवी वर्ग के कुछ चेहरे आम जनता को भड़काने में लगे हैं: सोशल मीडिया, चैनलों और मंचों पर यह सवाल पूछकर कि भारत ने अब तक पाकिस्तान पर हमला क्यों नहीं किया, वे देश के धैर्य और रणनीतिक परिपक्वता पर सवाल उठा रहे हैं। इनकी रणनीति सरल है - सरकार को उकसाओ कि वह जल्दबाज़ी में कोई क़दम उठा बैठे, ताकि बाद में सेना पर उंगली उठाकर भारत को नुकसान पहुँचाया जा सके। और अब पहलगाम हमले को लेकर भी यही लोग जहर उगल रहे हैं, कभी यह कहकर कि यह सरकार की साजिश है तो कभी यह कहकर कि हिंदुओं ने ही इस घटना को अंजाम दिया है।

ये वही चेहरे हैं जो हर बार आतंकी हमले के बाद “फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन” की आड़ में राष्ट्र की छवि को बदनाम करने लगते हैं। ये वही लोग हैं जो सेना के शौर्य पर उंगली उठाते हैं, सेना की कार्यवाही को 'ब्रूटालिटी' कहते हैं, पुलवामा को "इनसाइड जॉब" कहते हैं, सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगते हैं, और आतंकवादियों के मारे जाने पर "मानवाधिकार" की झूठी रुदाली करने लगते हैं। क्या इनकी कोई संवैधानिक हैसियत है? क्या ये राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का हिस्सा हैं? नहीं। ये बस बैठे-बिठाए सोशल मीडिया पर जहर उगलने वाले, जो दुश्मन की भाषा में बोलते हैं और भारत के भीतर से ही सुरक्षा को कमजोर करने की साजिश रचते हैं।

जनरल बिपिन रावत की “ढाई मोर्चे की लड़ाई” की बात आज पूर्णतः सिद्ध हो रही है - सीमा पर पाकिस्तान और चीन, और भारत के भीतर पल रहे गद्दार और राजनीतिक दलों के भेष में सक्रिय हैं। यह वही 0.5 फ्रंट है, भारत के भीतर से चलाने वाला एक सायकोलॉजिकल वॉरफेयर, जो सेना के मनोबल को तोड़ने, और आम जनता में भय और भ्रम फैलाने का काम करता है। इन्हें भारत सरकार से नहीं, भारत की चेतना और शक्ति से डर लगता है, क्योंकि ये जानते हैं कि जिस दिन भारत बिना शोर के इन पर भी वैसा ही प्रहार करेगा जैसा सीमा पार करता है, उस दिन इनका अस्तित्व और एजेंडा दोनों स्वाहा हो जाएगा, और यही बात इन गद्दारों को सबसे अधिक बेचैन कर रही है। भारत की सेना सिर्फ सीमा की रक्षा नहीं करतीं, वे इस देश की चेतना, आत्मा और स्वाभिमान की रक्षक हैं - उनकी रणनीति, उनकी तैयारी और उनके संकल्प को चुनौती देना, अपने आप में राष्ट्रद्रोह की परिधि में आता है।

गृह मंत्रालय द्वारा 7 मई को देशभर में मॉक ड्रिल और सिविल डिफेंस अभ्यास की घोषणा केवल किसी युद्ध की स्थिति की तैयारी नहीं है - यह एक स्पष्ट संकेत है कि अब हर नागरिक को न केवल बाहरी खतरों के प्रति सतर्क रहना है, बल्कि इन अंदरूनी विचारधारा के आतंकियों से भी खुद को और देश को सुरक्षित रखना है। इन गद्दारों का एजेंडा साफ है - जनता में अविश्वास बो देना, राष्ट्र की सामूहिक इच्छाशक्ति को कमजोर करना और अपने आका-पोषित नैरेटिव को स्थापित करना। लेकिन भारत अब पहले जैसा नहीं रहा, जो आतंकी हमलों के बाद केवल निंदा कर चुप बैठ जाए, यह अब संयम से चलता है और समय आने पर संकल्प के साथ प्रहार करता है।

भारतीय सेना अपनी रणनीति न तो किसी ट्रेंडिंग हैशटैग से तय करती है, न टीवी डिबेट्स की शोरगुल भरी आवाजों से, न दिल्ली की लिबरल लॉबी की सलाह से, और न ही किसी भी प्रकार के राजनीतिक दबाव से बंधकर। वो राष्ट्रहित में सोचती है, उसकी नीति, उसका प्रहार, और उसकी चुप्पी - सब उसकी रणनीति का हिस्सा है। "Indian Army reserves the right to respond at a time and place of its choosing" - और जब जवाब आता है, तो दुश्मन की रूह और जमीन दोनों कांपती है। भारत की गुप्तचर एजेंसियां, सैन्य रणनीतिक संस्थान और सरकार हर स्तर पर सतर्क हैं, और पाकिस्तान हो या भारत के भीतर का गद्दार तबका - हर एक के लिए एक अलग और सटीक जवाब तय है।

पिछले दो हफ्तों में पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के बाद भारत ने केवल संयम नहीं दिखाया, बल्कि रणनीतिक स्तर पर पाकिस्तान को उसकी ही ज़मीन पर घेरने की निर्णायक शुरुआत कर दी। ज़िया-उल-हक़ की “हज़ार ज़ख़्मों से भारत को रक्तस्राव कराने” की घृणित रणनीति अब उसी पर उलट पड़ी है; अब भारत हर मोर्चे पर निर्णायक कदम उठा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तात्कालिक रूप से कैबिनेट सुरक्षा समिति की बैठक में कई कठोर और दूरगामी फैसले लिए। सिंधु जल संधि को स्थगित किया, अटारी-वाघा सीमा बंद कर दी गई, पाकिस्तान के साथ कूटनीतिक संबंधों में कटौती करते हुए राजनयिकों को निष्कासित किया। पाकिस्तान के नागरिकों के लिए वीज़ा, यहाँ तक कि सार्क वीज़ा भी रद्द कर दिए गए। भारतीय वायु और समुद्री सीमाएं पाकिस्तानी विमानों व जहाजों के लिए बंद कर दी गई, जिससे उन्हें आर्थिक और सामरिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। व्यापारिक रिश्ते पूर्णतः समाप्त कर दिए गए हैं, डाक सेवाएं स्थगित हैं। साथ ही, एक डिजिटल प्रतिरोध भी प्रारंभ हुआ है, पाकिस्तानी मीडिया चैनलों, यूट्यूब चैनलों, सोशल मीडिया पेज और ओटीटी कंटेंट पर रोक लगाई जा रही है ताकि पाकिस्तानी के प्रोपेगेंडा पर लगाम कसी जा सके। भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्यों को भी पाकिस्तान की आतंकी संलिप्तता के सबूतों के साथ ब्रीफिंग दी है, कुल मिलाकर पाकिस्तान को हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग करने की नीति सक्रिय रूप से लागू की जा रही है।

लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा की जिम्मेदारी केवल भारत सरकार की नहीं है, आज जरूरत इस बात की है कि हर देशभक्त नागरिक भी अपने स्तर से ऐसे चेहरों की पहचान करे - जो दुश्मन की भाषा में बात करते हैं; जो लोकतंत्र का नाम लेकर लोकतंत्र को ही खोखला कर देना चाहते हैं; और जो सेना का अपमान कर असल में उस राष्ट्र की अस्मिता को चुनौती देते हैं, जिसे सैनिक अपने लहू से सींचता है। भारत को अब सिर्फ LOC नहीं, LAC नहीं, बल्कि BNS और UAPA के तहत भी लड़ाई लड़नी होगी - सिर्फ बंदूक और बारूद से नहीं, कलम और कानून से भी सख्त निर्णय लेने होंगे। खासकर भारत में रहने वाले पाकिस्तान के हमदर्दों को जो भारतीय सेना के "प्लेस और टाइमिंग हमारी होगी" को मजाक समझते हैं, उन्हें अब यह समझना होगा कि भारत अब उन्हें हर गद्दारी का उत्तर न्याय और नीति के साथ, परंतु अडिग और निर्भीक रूप से देने जा रहा है, और यह उसके अपने समय पर होगा, अपनी शैली में होगा; परंतु अचूक और अंतिम होगा।

(लेखक भाजयुमो, झारखंड के प्रमंडल प्रभारी, पलामू हैं)

(नोट- इस लेख में आये  विचार लेखक उनके अपने औऱ निजी है, इनका  द फॉलोअप से लेनादेना नहीं है)


 

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