दुमका:
दुमका (Dumka) जिला के मसलिया प्रखंड (Masaliya Block) का रांगा और आमगाछी-पहाड़ गांव (Amgachipahar Village) मूलभूत सुविधाओं की कमी से जूझ रहा है। गांव में बिजली, पानी और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। मुख्य मार्ग से गांव तक जाना हो तो कच्ची मिट्टी और पत्थरों के सहारे बनाई गई यही पगडंडी एकमात्र साधन है।
255 परिवारों के लिए एक भी चापाकल नहीं
गौरतलब है कि रांगा गांव (Ranga Village) में कुल पांच टोला हैं। इसमें 255 मकान हैं। गांव में कई साल पहले पीसीसी सड़क का निर्माण कराया गया था लेकिन हर मानसून में ये सड़क थोड़ी-थोड़ी धुलती गई और अब केवल पत्थर और मिट्टी ही बची है। 255 परिवारों की प्यास बुझाने के लिए गांव में महज 1 सोलर टंकी है। लोगों को पेयजल सहित अन्य जरूरतों के लिए करीब 2 किमी दूर जाकर पानी लाना पड़ता है। रांगा मोड़ से आमगाछीपहाड़ गांव तक जाने के लिए 5 किमी लंबा रास्ता कच्चा और पथरीला है।
यहां बड़े वाहनों की आवाजाही नहीं हो सकती। बरसात का मौसम हो तो एंबुलेंस भी यहां जाने से कतराते हैं। गांव के मरीजों या गर्भवती महिलाओं को हॉस्पिटल पहुंचाने में खासी मशक्कत करनी पड़ती है। कई बार मरीजों की जान पर बन आई है।
विधानसभा में किया गया वादा पूरा नहीं किया गया
आमगाछीपहाड़ गांव में 80 परिवार रहते हैं। इनका कहना है कि विधानसभा चुनाव के समय खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) और विधायक बसंत सोरेन (Basant Soren) ने सड़क बनाने का भरोसा दिया था। पूर्व मंत्री लुईस मरांडी (Lewis Marandi) और मौजूदा सांसद सुनील सोरेन (Sunil Soren) ने भी आश्वासन दिया था कि पक्की सड़क का निर्माण कराया जायेगा लेकिन आज तक ये वादा पूरा नहीं हुआ।
दुमका डीसी को लिखित आवेदन भी दिया गया था
ग्रामीण बताते हैं कि 9 महीने पहले उन्होंने दुमका डीसी (Dumka DC) को सड़क की मांग को लेकर आवेदन दिया था। विभाग के लोगों ने 2 बार गांव का दौरा भी किया लेकिन परिणाम कुछ नहीं निकला। ग्रामीण कहते हैं कि आजादी के 75 वर्ष बीत गये।
आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है लेकिन हमें अभाव, वंचना और मुश्किलों से कब आजादी मिलेगी। दिसंबर 2021 को आपके अधिकार, आपकी सरकार आपके द्वार कार्यक्रम में स्थानीय विधायक बसंत सोरेन को बिजली की मांग से संबंधित लिखित आवेदन दिया था। सात महीने बीतने को हैं। आज तक उस पर सुनवाई नहीं हुई।
पेयजल के लिए 2 किमी लंबा सफर तय करना पड़ता है
गांव में पेयजल की भी घोर किल्लत है। सैकड़ों की आबादी की प्यास बुझाने के लिए ना तो चापाकल की सुविधा है और ना ही सोलरयुक्त जलमीनार ही लगा है। गांव वाले झारखंड गठन के 22 साल बाद भी चुआड़ी, डोभा और झरने के पानी से प्यास बुझाते हैं।
दूषित पानी पीने से लोग टाइफाईड, कालाजार, डायरिया और हैजा जैसी बीमारियों की चपेट में भी आते हैं। यही नहीं, गांव वालों को जिन रास्तों से गुजरकर पानी लाना पड़ता है वो बारिश के मौसम में फिसलन भरा हो जाता है। अक्सर दुर्घटना की आशंका बनी रहती है।
कच्चा कुआं से पानी लाना भी कम जोखिम भरा नहीं है। यहां अक्सर सांप या किसी अन्य जहरीले जीव द्वारा काट लिए जाने का खतरा बना रहता है। गांव वाले काफी आक्रोशित हैं और न्याय चाहते हैं।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से शिकायत करेंगे ग्रामीण
गांव वालों का कहना है कि वे लोग मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक और उपायुक्त तक से गुहार लगा चुके हैं। अपनी समस्याओं से अवगत करा चुके हैं, लेकिन किसी ने उनकी समस्याओं के निराकरण पर ध्यान नहीं दिया। अब वे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को आवेदन देने की तैयारी में हैं। गांव वालों का मानना है कि चूंकि अब देश की राष्ट्रपति एक आदिवासी महिला हैं तो आदिवासियों की समस्याओं को समझेंगी और इसके निराकरण की दिशा में जरूर सकारात्मक प्रयास करेंगी।
रिपोर्ट: मोहित कुमार/दुमका