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लोकसभा विशेष : पहाड़ काटकर गांव वालों के लिए 15 KM लंबी सड़क बनाने वाले झारखंड के 'माउंटेन मैन' के पास पक्का मकान नहीं है

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द फॉलोअप डेस्क, रांची:

मकान मिट्टी का, आंगन मिट्टी की, खिड़कियां और दरवाजे भी माटी के और चूल्हा भी मिट्टी का। ये आशियाना है झारखंड के माउंटेन मैन चंद्रधन सिंह का। जिस आदमी ने पहाड़ का सीना चीरकर घने जंगलों के बीच एक फावड़े के सहारे पत्थर काटकर 15 किमी रास्ता बना दिया ताकि गांव वालों को सहूलियत हो जाए। जिस आदमी ने पिछले 3 साल में दिन और रात का फर्क भूलकर, पहाड़ काटा और रास्ता बनाया ताकि सरकार और प्रशासन के वादों और घोषणाओं में कैद विकास, उनके गांव तक पहुंच सके, वही माउंटेन मैन बुनियादी सुविधाओं से महरूम है। इस आदमी ने विकास के लिए पहाड़ काटकर रास्ता बनाया लेकिन विकास, वो तो गांव तक ही नहीं पहुंच पाया तो फिर चंद्रधन सिंह का घर क्या ढूंढ़ पाता। 

गांव में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है
न्यू इंडिया, डिजिटल इंडिया, अभूतपूर्व प्रगति, पक्के मकान, पक्की सड़कें और 5 ट्रिलियन की इकोनॉमी के साथ विश्व गुरु का टैग सब सुनने में अच्छा लगता है। थोथे गौरव के लिए भी अच्छा है। बैनर और पोस्टर में लिखने में भी सुंदर लगता है लेकिन हकीकत। हकीकत तो चंद्रधन सिंह का ये कच्चा मकान है जिसमें न तो ढंग की दीवारें हैं और ना ही मजबूत खिड़कियां। जिस मकान में ना तो बिजली पहुंची और न ही पेयजल की सुविधा है। 21वीं सदी के डिजिटल इंडिया में चंद्रधन सिंह के टूटे फूटे मकान में आज भी मिट्टी के चूल्हे पर लकड़ी जलाकर खाना पकता है। कहीं तो दावा देश के आखिरी व्यक्ति तक पीएम आवास योजना के तहत पक्के मकान बनवा देने का है तो कहीं 3 कमरों वाले आबुआ आवास का शोर है लेकिन सच क्या है, आप देख ही रहे हैं। 

चंद्रधन सिंह को नहीं मिली सरकारी सुविधायें
केंद्र या राज्य, कभी प्रधानमंत्री तो कभी मुख्यमंत्री दावा करते हैं कि उनकी सरकार का लक्ष्य है कि झारखंड के अंतिम आदमी तक जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ पहुंचे। हुक्मरानों से बस ये पूछना था कि चंद्रधन सिंह, वो अंतिम व्यक्ति हैं या नहीं। सरकारें कहती हैं कि विकसित झारखंड का रास्ता इसके गांवों से होकर जाता है। मैं जानना चाहता हूं कि पलामू का बांसडीह गांव झारखंड सरकार के उस दायरे में आता है या नहीं जिन्हें मजबूत करके राज्य को विकास पथ पर दौड़ाना है। लगता तो है कि नहीं आता। यदि आता तो, चंद्रधन सिंह के कच्चे मकान की छत में सुराखें नहीं होती जिससे कभी तीखी धूप, कभी धूल तो कभी मानसून में पानी की मोटी धार बेरोक टोक अंदर आ जाती है। यदि, ये वही गांव होता जिसके सहारे विकसित झारखंड बनाने का दावा हो रहा है तो यहां बिजली होती, अंधेरा नहीं। पक्की सड़क होती, पथरीला कच्चा रास्ता नहीं। 

प्रशासन से लेकर राजनेता तक लगा चुके हैं गुहार
चंद्रधन सिंह एक अदद पक्के मकान की आस में बीडीओ, सीओ, डीसी, डीडीसी और मुख्यमंत्री तक से गुहार लगा चुके हैं। सरकारी ऑफिस के टेबल में आवेदन का अंबार लगा चुके हैं। सड़क, बिजली, पानी और आवास जैसी बुनियादी सुविधाओं की मांग वाला फाइल लेकर न जाने कितने ही प्रशासनिक अधिकारियों और सफेदपोशों का दरवाजा खटखटा चुके हैं लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई। सोचिए जरा। 5 ट्रिलियन इकोनॉमी, विश्व गुरू, झारखंड में अभूतपूर्व विकास जैसे सरकारी वादों के बीच एक व्यक्ति को बिजली, पानी और घर जैसी बुनियादी सुविधायें तक नहीं मिली है। यदि आप जानना चाहते हैं कि पूरी बेशर्मी  से आंखों में आंखें डालकर झूठ बोलना क्या होता है तो बस सरकारी वादा और घोषणा सुन लीजिए। सब क्लियर हो जायेगा।

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