नई दिल्ली :
देश के सरकारी अस्पतालों का हाल आए दिन सुखियों में बना रहता है। यह कोरोना में और भी ज्यादा चर्चा में रहा। लाखों लोगो ने अस्पताल में संसाधनों की कमी या वहां की कुव्यवस्था से दम तोड़ दिया। अब देश के सरकारी अस्पताल पर हुए सरकारी सर्वे ने इसे फिर से चर्चा की वजह बना दिया है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -5 के आकड़ो से यह खुलासा हुआ है कि देश के आधे परिवार (49 .5 फीसदी ) सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ लेने से कतराते है।हालांकि यह आकड़ा साल 2015-16 में हुए सर्वे के मुकाबले कम है। साल 2015 -16 में यह आकड़ा 55 .1 प्रतिशत था।
सेवाओं का लाभ न लेने के अलग -अलग कारण
सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में रूचि नहीं होने का लोग अलग-अलग कारण देते है। देश के 50 फीसदी परिवारों का मानना है कि मरीजों की उचित देखभाल सरकारी अस्पतालों में नहीं की जाती। इसके अलावा कुछ परिवारों का कहना है कि उपलब्ध सेवाओं का लाभ लेने के लिए अस्पतालों में लम्बी कतार में वक़्त बर्बाद होता है। इस वजह से वह जरूरत पड़ने पर सरकारी स्वास्थ्य तंत्र को तरजीह नहीं देते।
राज्यवार आकड़ो में बिहार और यूपी सेवाओं में फिस्सडी
सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार बिहार और यूपी के लोग सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था को सबसे ज्यादा खराब मानते है। वे सरकारी तंत्र से अलग निजी स्वास्थ्य तंत्र की सेवाएं लेने में अव्वल है। बिहार के 80 प्रतिशत तो उत्तरप्रदेश के 75 प्रतिशत परिवार सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ लेने से कतराते हैं,वे मौजूदा व्यवस्था को ठीक नहीं मानते। यह आकड़ा लद्दाख और लक्ष्यद्वीप में बिल्कुल बदल जाता है। यहाँ के 95 फ़ीसदी से अधिक लोग सरकारी स्वास्थ्य सेवाओ का लाभ लेते हैं। रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि शहरो में रह रहे लोग ग्रामीण इलाको के लोगो की अपेक्षा सरकार द्वारा दिए जाने वाले स्वास्थ्य सुविधाओं पर कम भरोसा करते हैं।