द फॉलोअप डेस्कः
झारखंड का नियोजन नीति हमेशा से ही विवादों में रहा है। नियोजन नीति झारखंड हाईकोर्ट से रद्द होने के बाद से ही घमाशान जारी है। 22 सालों में अब तक एक ढंग की नियोजन नीति नहीं बन सकी है जिसका खामियाजा छात्र भुगत रहे हैं। झारखंड विधानसभा का बजट सत्र 27 फरवरी से शुरू होने वाला है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है सरकार शायद इस बार नियोजन नीति सदन में लेकर आए। विपक्ष पूरी तरह से सरकार को नियोजन नीति के मुद्दे पर घेरने को तैयार है। लेकिन सत्ता पक्ष की गलियारों में ऐसी सुगबुगाहट है कि सत्र शुरू होने से पहले वह नियोजन नीति लेकर आयेंगे। सरकार ने युवाओं के साथ फोन पर नियोजन नीति को लेकर बात भी की है। युवाओं से राय मशवरा किया गया है। ऐसे में संभावना है कि सरकार जल्द ही एक नियोजन नीति पेश करे। इस बार का बजट सत्र 27 मार्च तक चलेगा।
बाबूलाल के समय बनी नियोजन नीति
बता दें कि राज्य गठन के बाद सर्वप्रथम बाबूलाल की सरकार ने 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति लागू की थी। जिसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई और जिसे कोर्ट मे संवैधानिक बताते हुए नई नीति बनाने का निर्देश दिया था। इसी तरह नियोजन नीति बनाते हुए बाबूलाल मरांडी सरकार ने 73 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की थी। मामला जब हाई कोर्ट में गया तो उसने इसे असंवैधानिक बताकर रद्द कर दिया था।
रघुवर की नियोजन नीति भी असंवैधानिक
बाबुलाल की नीति खारीज होने के बाद लंबे समय तक राज्य में जैसे जैसे नियुक्तियां होती रही। इस दौरान नियुक्ति प्रक्रिया में बरती गई अनियमितता का खामियाजा झारखंड के युवा आज तक झेल रहे ह। इसके बाद रघुवर दास की सरकार स्थानीय नीति और नियोजन नीति लेकर आई। 14 जुलाई 2016 को रघुवर सरकार की ओर से नियोजन नीति लागू की गई। नियोजन नीति के अंतर्गत 13 जिलों को अनुसूचित और 11 जिलों को गैर अनुसूचित जिला घोषित कर दिया गया। इस नियोजन नीति के अंतर्गत अनुसूचित जिलों की ग्रुप सी और डी की नौकरियों में उसे जिला के निवासियों के नियुक्ति का प्रावधान किया गया। यह प्रावधान 10 वर्षों के लिए किया गया था। इस नियोजन नीति के तहत जैसे ही राज्य सरकार की ओर से नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की गई यह विवादों में आने लगी। प्रार्थी सोनी कुमारी ने हाईकोर्ट में चुनौती देकर इसे समानता के अधिकार के खिलाफ बताते हुए न्याय की गुहार लगाई। इसके बाद कोर्ट में सुनवाई करते रघुवर सरकार के नियोजन नीति को भी रद्द कर दिया। कोर्ट का मानना था कि किसी भी स्थिति में कोई भी पद शत प्रतिशत आरक्षित नहीं किया जा सकता।
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