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जेपी स्मृति-2: बापू ने कहा था, जयप्रकाश और लोहिया भारत की आत्मा 

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कनक तिवारी, रायपुर:
भारतीय राजनीति में नेहरू युग के बाद के सबसे प्रखर राजनेता को नेहरू ने लाड़ में (और शायद गम्भीरता में भी) अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। जयप्रकाश नारायण ने कई बार नेहरू की मुखालिफत की। संविधान सभा की सदस्यता से भी उनकी अगुआई में समाजवादियों ने बहिष्कार किया था। 1974 में गुजरात के नवनिर्माण आन्दोलन को आशीष देकर जेपी ने तीन बरस में ही कांग्रेस को धूल चटा दी। नेहरू की बेटी को सड़कें नापनी पड़ीं। जेपी करिश्मा थे। ‘भारत छोड़ो‘ आन्दोलन के दौरान देश की तरुणाई में बगावत के शोले भर गए थे। जयप्रकाश और लोहिया भूमिगत होकर गिरफ्तारी से बचने नेपाल की ओर भागे। उनके गिरफ्तार हो जाने पर बापू ने ब्रिटिश हुकूमत को ललकारा। यहां तक कहा कि जेपी और लोहिया भारत की आत्मा हैं। जयप्रकाश की याद अब रस्मअदायगी है। समाजवाद संविधान का जीवित लक्ष्य होकर भी देश की अर्थव्यवस्था से गायब है। वर्ल्ड बैंक से गुलामी की पैरोकारी देश कर ही रहा है। पंचायती राज का बेड़ा गर्क है। जयप्रकाश गिने चुने नेताओं में गांधी के ग्राम स्वराज के साथ थे। विनोबा के भूदान-आंदोलन में शामिल हो गए थे। उनका वैराग्य भारतीय राजनीति का दुखद परिच्छेद है। उन जैसा कद्दावर काठी का करिश्माई नेता राजनीति से बेदखल हो गया। इसी दौरान लोहिया ने उन्हें मर्मस्पर्शी पत्र लिखे थे। वे चाहते थे जेपी सक्रिय राजनीति की धुरी बनें। बकौल लोहिया यही सार्थक भूमिका लिए भारत के इतिहास को मोड़ सकते थे। जयप्रकाश ने लोहिया के असामयिक निधन के दस वर्ष बाद उनकी भविष्यवाणी को अल्पकालीन तौर पर सही सिद्ध तो किया। 
 हिन्दू-मुस्लिम इत्तहाद के सबसे बड़े समर्थक जयप्रकाश का भारत-पाक महासंघ बल्कि एकीकरण का भी सपना था। आज उनके विचारों और आदर्शो की परीक्षा की घड़ी है। दुनिया में भारत अकेला देश है जहां राजनीति और संविधान का मुख्य आदर्श धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिन्दू-मुसलमान सामंजस्य है। समग्र सभ्यता-बोध के महान देश हिन्दुस्तान में जाति या धर्म के आधार पर राजनीतिक फलसफा या एजेंडा कभी तैयार नहीं किया गया। हिन्दुस्तान में मजहब के आचरण की वजह से खलबली है। धर्म या मजहब के नाम पर हिन्दुस्तान से छिटका पाकिस्तान आतंकवादी मुस्लिम सभ्यता का प्रतीक बन चुका है। एक आतंकवादी का प्रमाण पत्र जब धर्म या देश को मिलता है तब वह समूची सभ्यता के लिए कैंसर बन जाता है। पाकिस्तान में आतंकवादी प्रशिक्षण की इतिहास ने ताईद कर दी है। 

 

जब जयप्रकाश नारायण ज़िंदा थे और अस्पताल के बाहर उनकी मौत का हल्ला मच गया था  - When Prime Minister of India Morarji Desai Declared Jayprakash Narayan  dead long before he actually

 

कश्मीर के भविष्य को लेकर जेपी उदारवादी थे। अपने देश में ही उनकी कड़ी आलोचना की गई थी। कश्मीर की बुरी हालत है। पीढ़ियां आतंकवाद के साये में पल रही हैं। कत्लेआम को जेहाद कहा जा रहा है। कश्मीर में फौजी ही अमन कायम कर रहे हैं। जेपी को शऊर था। वे इस्लाम की बारीकियों को आत्मसात कर चुके थे। उन जैसे प्रज्ञा पुरुषों की कुर्बानी से भारत में पंथनिरपेक्षता का महान राष्ट्रीय आदर्श रचा जा सका। जयप्रकाश राजनीति नहीं छोड़ते तो मुमकिन है, नेहरू के बाद प्रधानमंत्री बनते। यदि उन्हें नियति ने पंद्रह वर्षों का प्रधानमंत्रित्व भी दिया होता, तो देश की प्राथमिकताओं में भ्रष्टाचार, भाई भतीजावाद, महंगाई, विलासिता, धर्मांधता, अशिष्टता वगैरह कुछ समय के लिए हाशिये पर होते। शायद उसके एक दशक बाद देश अमेरिकी अर्थव्यवस्था के सामने घुटने नहीं टेकता। जेपी होते तो अमेरिकी हमलों की ताईद नहीं करते। यह जेपी की कुर्बानी का नतीजा है कि जनता पार्टी के नाम पर संघ परिवार के तमाम लोग उस भवन में भारी संख्या में घुस पाए जिसे लोकसभा कहते हैं। मौजूदा प्रधानमंत्री के राजनीतिक अभ्युदय का एक बड़ा श्रेय जेपी के खाते में जाता है। जयप्रकाश नारायण की वजह से जमावड़ा सत्तानशीन है। जेपी को सत्ता की परवाह नहीं थी तो सत्ता की श्रद्धांजलि की क्यों कर होगी? लेकिन कुछ मर्यादाएं तो होनी चाहिए। 

 

आज़ादी के महान योद्धाओं की उत्तर-नेहरू युग की पीढ़ी के नियामक मूल्यों के प्रणेता जयप्रकाश नारायण ही थे। नरेन्द्रदेव, लोहिया, अशोक मेहता, कृपालानी, अच्युत पटवर्धन, हरिविष्णु कामथ वगैरह कांग्रेस के नैसर्गिक विकल्प की तरह जनमानस पर हावी रहे। जेपी सर्वाधिक प्रखर थे। गांधी और जयप्रकाश ने सत्ता से निरपेक्ष रहकर राजनीति को मूल्यहीनता के दलदल में जाते देखा। बिस्मार्क या मैजिनी के बदले यदि वे वाशिंगटन या लेनिन बनते तो आज हिन्दुस्तान की फिजा ही कुछ और होती। अमेरिका और पूंजीवाद को लेकर जयप्रकाश भारत का पक्ष सैद्धांतिक आधारों पर इस तरह रखते कि देश का चेहरा उजला होता। हजारों निर्दोष लोगों के मारे जाने पर जेपी ने राष्ट्रीय उपवास आयोजित कराया होता। मुसलमान उनसे अपनी देह पर उगे अविश्वास और आत्मा के जख्म के लिए मलहम ले आते। आजादी पर प्रतिबंध, कर्फ्यू के आदेश, देखते ही गोली मारने के करतब, पूरी कौम के प्रति अविश्वास, मजहब के आधार पर राष्ट्रों का निर्माण, अमेरिकी हथियारों की निर्मम खरीदी, अमेरिका को इक्कीसवीं सदी का संस्थापक नायक बनाने की गलती जेपी के सक्रिय रहते नहीं हो पाती। जेपी ने बहुत गलतियां भी की थीं लेकिन वे सब उनकी महान उदारता के कारण। आज भी धरती और आकाश याद कर रहे हैं। उनका नाम सदैव अमर है।

 

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(गांधीवादी लेखक कनक तिवारी रायपुर में रहते हैं।  छत्‍तीसगढ़ के महाधिवक्‍ता भी रहे। कई किताबें प्रकाशित। संप्रति स्‍वतंत्र लेखन।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।