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भूख की तड़प और चश्मा की रंगत सियासी- दो नाटकों के मंचन से उपजी बात

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द फॉलोअप टीम, रांची:

गोरे-गोरे मुखड़े पे काला-काला चश्मा...ऐसे कई गीत लोगों की जुबान पर रहे। लेकिन आजकल चश्मे का जिक्र सियासी मुहावरे में किया ही जा रहा है। वहीं कमोबेश चश्मे का इस्तेमाल इधर के सालों में जमकर बढ़ा है। लालटेन टाइटल नाटक मनोरंजक ढंग से ऐसे कई सवाल उठाता है। दिन-ब-दिन लोगों की आंखों पर चढ़ते हुए चश्मे पर कटाक्ष करता है। रविवार की शाम झारखंड फिल्म एंड थियेटर एकेडमी के मिनी सभागार में दो अलग-अलग नाटकों का मंचन किया गया, जिसमें "लालटेन" प्ले भी शामिल रहा। नाटक के केंद्र में डॉक्टर सूरदास की क्लीनिक है। जिसके माध्यम से लेखक के पी सक्सेना ने अपनी बात कही है।

 

नाटक "लालटेन" और "शून्यकाल" मंचन

थिएटर फेस्टिवल के दौरान दूसरा नाटक "शून्यकाल"  का मंचन किया गया। लेखक थे जय विजन। नाटक में दिखाया गया कि कैसे भूख से तड़पते -तड़पते एक इंसान कोमा में चला जाता है। उसके इर्द-गिर्द समाज के हर वर्ग के लोग उसे अपना मुद्दा बनाकर सरकार तक को हिलाने की कोशिश में जुट जाते हैं। जबकि उस भूखे व्यक्ति को कुछ भी हासिल नहीं होता और आखिरकार उसके जीवन की कहानी खत्म हो जाती है।

दोनो ही नाटकों का निर्देशन राजीव सिन्हा ने किया। नाटकों को अपने अभिनय से सर्वेश करण, चिरंजीवी सिद्धार्थ, मन्नु कुमार, निशा गुप्ता, श्रुति जयसवाल, मयंक शेखर, सौरभ मेहता, रंजन गुप्ता, शिवेंद्र, रितिक राज और सुबोध गुप्ता ने जीवंत किया।