भारतीय समाज, राजनीति और धर्म को सबसे अधिक प्रभावित करने वाले अहम व्यक्तित्व से फॉलोअप रुबरू कराना चाहता है। साबरमती का संत नाम से 50 क़िस्त के मार्फत महात्मा गांधी को समझने की कोशिश की गई थी। वहीं सदी के महाचिंतक स्वामी विवेकानंद पर केंद्रित करीब 20 क़िस्त भी आपने पढ़े होंगे। धुर समाजवादी लीडर डॉ .राममनोहर लोहिया के बारे में आप तीन किस्त पढ़ चुके हैं। गांधीवादी वरिष्ठ लेखक कनक तिवारी की क़लम से नियमित आपको पढ़ना मयस्सर होगा। आज पढ़िये 7वीं क़िस्त-संपादक
कनक तिवारी, रायपुर:
लोहिया, नरेन्द्रदेव और जयप्रकाश नारायण सहित कुछ नामचीन समाजवादियों को संविधान सभा की बैठकों में नामांकित या प्रस्तावित होने पर शामिल होना चाहिए था जिन्हें बाद में चाहने पर भी नहीं लिया गया। संविधान सभा अपनी कुल बहसों के हासिल बतौर जनसांस्कृतिक संविधान का चाहने पर भी चेहरा उकेर नहीं पाई। आईन की इबारतों के अमल को लेकर अवाम के सोच में ऊष्मा, तरलता, चिंता और ज़िद और जिरह करने का संवैधानिक तेवर दिखाई नहीं पड़ता। संविधान में यह कर्तव्य भी नहीं उपजा कि नागरिक-जीवन को देशज संस्कृति- की नजर से संपन्न बनाने राज्यसत्ता की जिम्मेदारियां तयशुदा हों। यह बांझ समझ बेमतलब है कि संविधान की कोई जन-संस्कृति नीति नहीं हो सकती थी या राज्य सत्ता लोकसांस्कृतिक सरोकारों से खुद को सक्रिय रूप से प्रतिबद्ध नहीं करे। खारिज हो चुकी कई यूरोपीय अवधारणाएं संविधान के पाठ में अंतधर्वनि की तरह पैठकर उसे भरमाती रहती हैं। इंग्लैंड और अमेरिका जैसे कई देशों में मसलन शासन और जनसंस्कृति की अंतर्भूत पारस्परिकता को लेकर धर्मबहुलता का भारत जैसा राष्ट्रीय अनुभव नहीं है। जनसंस्कृति संबंधी व्यापकताओं का विवेचन करते करते संविधान बमुश्किल अल्पसंख्यकों के अधिकारों तक ही रुक गया। राज्य के नीति निदेशक तत्वों की सूची के भविष्य आचरण के तहत भी राष्ट्रीय सांस्कृतिक अहसास का संकेत उभारा नहीं जा सका। यह अकेले और सबसे ज्यादा लोहिया हैं जिन्होंने संविधान के मूल कर्तव्यों, बिटिया के दहेज जैसे नीति निदेशक तत्वों और भारत के हम लोग वाले मुखड़े के तेवरों में सांस फूंकी। वह अकेले और सबसे ज्यादा लोहिया ने किया।
भारत के संविधान का अनुच्छेद 19 और 21 संविधान की आत्मा है। अनुच्छेद 19 तथा 21 इस तरह है 19, वाक्-स्वातंत्र्य आदि विषयक अधिकारों का संरक्षण-(1) सभी नागरिकों को-
(क) वाक्-स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य का,
(ख) शांतिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन का,
(ग) संगम या संघ {या सहकारी समिति} बनाने का,
{घ} भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का,
{ड.} भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में निवास करने और बस जाने का, {और}
{च} {’’’}
(छ) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारबार करने का, अधिकार होगा।
प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण-किसी व्यक्ति को, उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं। लोहिया ने 4 जुलाई 1954 को उ0प्र0 स्पेशल पावर्स ऐक्ट, 1932 के प्रावधानोें का कथित उल्लंघन करते हुए किसानों से आग्रह किया था कि वे अवैध रूप से बढ़ाए गए नहर टैक्स को देने से मना कर दें। पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने नागरिक आजादी और अधिकार के लोहिया द्वारा व्याख्यायित आसमान की संभावनाओं से सहमति व्यक्त की। अदालत ने साफ कहा कि सरकारों के खिलाफ इस तरह के बयान या भाषण देने से अभिव्यक्ति की आज़ादी की स्वायत्ता को सरकारी कानूनों का तैश बताकर नष्ट नहीं किया जा सकता।
लोहिया की सहयोगी और स्वतंत्रता संग्राम सैनिक रही उषा मेहता ने यह टिप्पणी की है “Dr. Lohia was one leader who had occasions to offer satyagraha both against the foreign and the Indian Governments. In free India too, he was perhaps more in prison than out of it. He shared Thoureau’s belief that “any Government that acts unjustly, the only place for a just man is in prison.”।
(जारी)
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(गांधीवादी लेखक कनक तिवारी रायपुर में रहते हैं। छत्तीसगढ़ के महाधिवक्ता भी रहे। कई किताबें प्रकाशित। संप्रति स्वतंत्र लेखन।)
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।