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हंसमुख के साथ अब एक फिल्म में तीन पद्मश्री फ़नकार- आज ख़ुशी के साथ दौड़ेगी 'गाड़ी लोहरदगा मेल' 

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द फॉलोअप टीम, रांची:

नवंबर 1907 में पुरुलिया और रांची के बीच छोटी लाइन पर रेलगाड़ी दौड़ी थी। चौथे साल यानी 1911 में लाइन को लोहरदगा तक बढ़ा दिया गया था। ट्रेन ने जनवरी 2004 में अपनी अंतिम यात्रा की, जिसके बाद इसे एक ब्रॉड-गेज में बदल दिया गया। इसी साल फिल्म आई- गाडी लोहरदगा मेल। जिसमें छुक-छुक चलती रेल और हिंडोले खाते महज़ डिब्बे ही नहीं है, यादों का ऐसा हिचकोला है, जो हर स्टाॅपेज पर आपको गुदगुदाता है, हंसाता है और रुलाता भी है। झारखंड की ठेठ ग्रामीण जिंदगी इसमें जीवंत होती है। जिसमें गीत है, तो बोल भी। इस फिल्म की आज चर्चा क्यों कर रहा हूं। चलिये उसपर भी बात कर ली जाए।

 



इस फिल्म को रांची के दो अंतर्राष्ट्रीय फिल्मकार मेघनाथ और बीजू टोप्पो ने बनाया था। वहीं अपने अभिनय से झारखंड की प्रमुख हस्तियां मुकुंद नाइक, राम दयाल मुंडा, और मधु मंसूरी "हंसमुख" के अलावा अश्विनी पंकज और पूनम केरकेट्टा ने सजाया था। मधु मंसूरी का चर्चित गीत गांव छोड़ब नाहीं..भी इसके मार्फत दुनिया में मशहूर हुआ।

 



आज मधु मंसूरी को राष्ट्रपति ने पद्मश्री से सम्मान से अलंकृत किया। इनसे पहले 2010 में डॉ. रामदयाल मुंडा और 2017 में मुकुंद नायक को पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। इस प्रकार फिल्म गाड़ी लोहरदगा मेल से जुड़े ये तीनों संस्कृतिकर्मी पद्मश्री सम्मान से सम्मानित हो गए। अखड़ा टीम की ओर से मधुमंसूरी हंसमुख को बहुत बधाई दी गई है।