मनोहर महाजन, मुंबई:
आज का दिन हिंदी सिनेमा के इतिहास का एक बहुत ही महत्वपूर्ण और खास दिन है। क्योंकि आज के दिन सन् 1931 में रिलीज हुई थी हिंदुस्तान की पहली बोलती फिल्म आलम आरा। जिसमें पहली बार हिंदी दर्शकों ने पर्दे पर कलाकारों को बोलते, हंसते, गाते, नाचते, चलते देखा। यह एक जबरदस्त अनुभव रहा सभी दर्शकों के लिए। फिल्म में आलम आरा की भूमिका निभाई थी अभिनेत्री "ज़ुबैदा" ने और उनके अलावा इस फिल्म में मास्टर विट्ठल और पृथ्वीराज कपूर जैसे कलाकार भी थे। फ़िल्म 'आलम आरा' और उससे जुड़ी सभी हस्तियों की फ़िल्म इतिहास में हमेशा एक ख़ास जगह रहेगी। आइये इस फ़िल्म की नायिका की 33वीं पुण्यतिथि पर उन्हें क़रीब से जानने का प्रयास करें।
गुजरात के सूरत शहर में जन्मी ज़ुबैदा एक मुस्लिम राजकुमारी थीं, जो 'सचिन स्टेट' के नवाब सिदी इब्राहिम मुहम्मद याक़ूत ख़ान और फ़ातिमा बेगम की बेटी थीं। उनकी दो बहनें 'सुल्ताना' और 'शहजादी' भी अभिनेत्रियाँ थींं। तीनों बहनें उन कुछ लड़कियों में से थीं, जिन्होंने कम उम्र में फिल्मों में प्रवेश किया था, जब इसे लड़कियों के लिए सम्मानजनक पेशा नहीं माना जाता था। 1920 के दशक के दौरान ज़ुबैदा महज़ 12 साल की उम्र में अपनी बहन सुल्ताना के साथ फिल्मों में प्रवेश किया। उनकी डेब्यू फिल्म थी 'कोहिनूर' । दोनों बहनों ने जिन फिल्मों में काम किया उनमें से एक थी: 1924 में बनी फिल्म 'कल्याण खजीना।' ज़ुबैदा की पहली 'ब्लॉकबस्टर' फ़िल्म थी 'वीर अभिमन्यु।' जिसमें दोंनो बहनों ने भी स्क्रीन साझा किया था। इसमें उनकी माँ, फ़ातिमा बेगम भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
1925 में ज़ुबैदा की 9 फिल्में रिलीज़ हुईं, जिनमें 'काला चोर', 'देवदासी' और 'देश का दुश्मन' शामिल हैं। एक साल बाद उन्होंने अपनी मां की फिल्म 'बुलबुल-ए-परिस्तान' में अभिनय किया। 1927 'लैला मजनू', 'ननद भोजई' और 'बलिदान' उनकी बेहद यादगार सफल फिल्में थीं। ज़ुबैदा ने ऐसी कई सफलतम मूक फिल्मों में अभिनय किया। फिर आई वो घड़ी जो उनके करियर का 'टर्निंग-पॉइंट' साबित हुई। वो थी भारत की पहली बोलती फ़िल्म: 'आलमआरा', जिसमें उनकी प्रमुख भूमिका थी। इस फ़िल्म ने अचानक उनकी मांग अत्यधिक बढ़ा दी। फिल्म उद्योग में एक महिला के लिए मानकों से अधिक वेतन प्राप्त किया। 30 और 40 के दशक की शुरुआत में उन्होंने जाल मर्चेंट के साथ एक हिट टीम बनाई और कई सफल 'पौराणिक-फिल्मों' में 'सुभद्रा', 'उत्तरा' और 'द्रौपदी' जैसे पात्रों की भूमिका निभाई। वह भी इस तरह के इज़रा मीर की फ़िल्म में ज़रीना नामक एक सर्कस गर्ल के रूप में इतना बिंदास जीवंत अभिनय और स्क्रीन पर चित्रित उसके चुम्बनों ने सेंसरशिप को पशोपेश में डाल दिया था।
जुबैदा उन चंद अभिनेत्रियों में से एक थीं, जिन्होंने मूक युग से टॉकीज युग में एक सफल परिवर्तन किया। 1934 में उन्होंने नानुभाई वकील के साथ 'महालक्ष्मी मूवी-टोन' की स्थापना की और 'गुल-ए-सनोबर' और 'रसिक-ए-लैला' में बॉक्स-ऑफिस पर शानदार प्रदर्शन किया। ज़ुबैदा 1949 तक साल में एक या दो फिल्मों में दिखाई देती रहीं। 'निर्दोश अबला' उनकी अंतिम फिल्म थी। ज़ुबैदा ने हैदराबाद के महाराज नरसिंगिर धनराजगीर ज्ञान बहादुर से शादी की। वह हुमायूं धनराजगीर और धुरेश्वर धनराजगीर की मां हैं। धुरेश्वर मॉडल रिया पिल्लई की मां हैं। ज़ुबैदा ने अपने जीवन के आख़िरी साल परिवार के बॉम्बे पैलेस, धनराज महल में बिताए। 20 सितंबर 1988 को उनकी मृत्यु हो गई और छत्रपति शिवाजी महाराज मार्ग, अपोलो बंदर, कोलाबा, दक्षिण मुंबई में उनके बच्चों और पोते-पोतियों के बीच उन्हें दफ़नाया गया। वह अपने पीछे अपने बेटे हुमायूँ और पोते निखिल धनराजगीर, अशोक धनराजगीर, रिया पिल्लई और करेन नीना और उनके बेटे जेम्स माइकल के भरे-पूरे परिवार को छोड़ गईं। भारतीय टॉकी फिल्मों की पहली फ़िल्म "आलमआरा" (1931) की इस पहली 'नायिका' को उनकी 33वीं पुण्यतिथि पर हम श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।
(मनोहर महाजन शुरुआती दिनों में जबलपुर में थिएटर से जुड़े रहे। फिर 'सांग्स एन्ड ड्रामा डिवीजन' से होते हुए रेडियो सीलोन में एनाउंसर हो गए और वहाँ कई लोकप्रिय कार्यक्रमों का संचालन करते रहे। रेडियो के स्वर्णिम दिनों में आप अपने समकालीन अमीन सयानी की तरह ही लोकप्रिय रहे और उनके साथ भी कई प्रस्तुतियां दीं।)
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